मस्कटः भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मस्कट में आयोजित आठवें हिंद महासागर सम्मेलन में हिस्सा लिया। इस दौरान जयशंकर ने उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। वह "समुद्री साझेदारी के नए क्षितिज" विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने हिंद महासागर को क्षेत्र को एक वैश्विक महत्वपूर्ण जीवन रेखा बताया। इसके साथ ही उन्होंने क्षेत्र के अन्य देशों से एक-दूसरे का समर्थन बढ़ाने, ताकत बढ़ाने और विकास, कनेक्टिविटी, समुद्री हितों और सुरक्षा को आगे बढ़ाने की नीतियों पर जोर दिया।
इस सम्मेलन के उद्घाटन संबोधन के दौरान उन्होंने कहा कि " हिंद महासागर वास्तव में एक वैश्विक जीवनरेखा है। इसका उत्पादन, उपभोग, योगदान और कनेक्टिविटी आज के समय में चल रही दुनिया के केंद्र में है।"
समान समर्पण करता है एकजुट
उन्होंने आगे कहा "नए क्षितिजों की हमारी यात्रा हिंद महासागर के समन्वित बेड़े के रूप में सबसे अच्छी तरह से की जाती है। हम इतिहास, भूगोल, विकास, राजनीति या संस्कृति के संदर्भ में स्पष्ट रूप से एक विविध समूह हैं। लेकिन जो चीज हमें एकजुट करती है वह हिंद महासागर क्षेत्र की भलाई के लिए एक समान समर्पण है।''
सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने आगे कहा कि “अस्थिर और अनिश्चित युग में हम आधार रेखा के रूप में स्थिरता और सुरक्षा चाहते हैं। लेकिन इसके परे कुछ महत्वाकांक्षाएं और आकांक्षाएं भी हैं जिन्हें हासिल करने के लिए हम प्रयास करते हैं। जब हम एक-दूसरे का ख्याल रखेंगे, अपनी ताकत को पूरक करेंगे और अपनी नीतियों में समन्वय करेंगे तो उन तक पहुंचना आसान हो जाएगा।''
बदलाव के दौर से गुजर रहा है विश्व
जयशंकर ने कहा कि दुनिया इस समय बदलाव के दौर से गुजर रही है जिससे वैश्विक रूप से परिवर्तन देखने को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व/पश्चिम एशिया में चल रहे संघर्ष के कारण तीव्र व्यवधान हो रहा है। उन्होंने कहा कि यह काफी गंभीर संघर्ष है और इसके बढ़ने और जटिल होने की संभावना है।
उन्होंने कहा इसकी दूसरी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भी बढ़ते तनाव और तीव्र प्रतिद्वंद्विता का अनुभव हो रहा है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ग्लोबल साउथ के अन्य हिस्सों की तरह हिंद महासागर के देशों को भी आर्थिक रूप से समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
कुछ देश अपने सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो वहीं कुछ मामलों में कर्ज़ एक बड़ी चिंता का विषय है। मंत्री ने कहा कि इनमें से कुछ मुद्दे वैश्विक आर्थिक दबावों की उपज हैं जबकि कुछ के पीछे अविवेकपूर्ण उधारी और अव्यवहार्य परियोजनाएं जिम्मेदार हैं।