नई दिल्ली: भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गुरुवार को कहा कि एलएसी पर चीन के साथ सैनिकों की वापसी से संबंधित 75 प्रतिशत मुद्दे सुलझ चुके हैं। उन्होंने कहा कि अभी ‘बड़ा मुद्दा’ सीमा पर बढ़ता सैन्यीकरण है। पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच सैन्य गतिरोध को हल करने के लिए भारतीय और चीनी राजनयिकों द्वारा बातचीत में कुछ प्रगति के संकेत दिए जाने के करीब दो सप्ताह बाद एस जयशंकर का ताजा बयान आया है। यह पहली बार है कि जब विदेश मंत्री ने करीब चार साल की बातचीत के बाद वार्ता में प्रगति को लेकर ऐसा बयान दिया है। हालांकि मामले का पूरा समाधान अभी बाकी है।
रूस में अजीत डोभाल की सीपीसी सदस्य से मुलाकात
जिनेवा में जयशंकर के बयान के कुछ ही घंटों बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने रूस से सेंट पीटर्सबर्ग में ब्रिक्स एनएसए की बैठक के मौके पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के राजनीतिक ब्यूरो के सदस्य और केंद्रीय विदेश मामलों के आयोग के कार्यालय के निदेशक वांग यी (Wang Yi) से मुलाकात की।
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा गया कि ‘बैठक ने दोनों पक्षों को एलएसी से जुड़े शेष मुद्दों के शीघ्र समाधान की दिशा में किए गए हाल के प्रयासों की समीक्षा करने का अवसर दिया। इससे स्थिरता की स्थिति बनेगी और द्विपक्षीय संबंधों का पुनर्निर्माण हो सकेगा।’
बयान में आगे कहा गया, ‘दोनों पक्ष तत्परता से काम करने और बचे हुए क्षेत्रों में पूर्ण विघटन के लिए अपने प्रयासों को दोगुना करने पर सहमत हुए। एनएसए ने बताया कि द्विपक्षीय संबंधों में सामान्य स्थिति के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और एलएसी का सम्मान जरूरी है। दोनों पक्षों को द्विपक्षीय समझौतों, प्रोटोकॉल और दोनों सरकारों द्वारा अतीत में जिस समझ पर पहुंचा गया, उसका पालन करना चाहिए।’
पीएम मोदी और शी जिनपिंग की होगी मुलाकात?
ब्रिक्स नेताओं का शिखर सम्मेलन 22 से 24 अक्टूबर तक रूस के कजान में होने जा रहा है। इसमें भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के शामिल होने की उम्मीद है। ऐसे में संभव है कि दोनों नेताओं के बीच मुलाकात या शिखर सम्मेलन से इतर बैठक भी हो सकती है। हालांकि, इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है।
वहीं, विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि क्षेत्र और दुनिया के लिए भी महत्वपूर्ण है। दोनों पक्षों ने वैश्विक और क्षेत्रीय स्थिति पर भी विचारों का आदान-प्रदान किया।’
जेनेवा में क्या बोले एक जयशंकर
दूसरी ओर जिनेवा में ग्लोबल सेंटर फॉर सिक्योरिटी पॉलिसी में बोलते हुए जयशंकर ने कहा कि पूर्वी लद्दाख में समस्या का समाधान खोजने के लिए दोनों पक्षों के बीच बातचीत चल रही है।
उन्होंने कहा, ‘अभी वे वार्ताएं चल रही हैं। हमने कुछ प्रगति की है। मैं कहूंगा कि मोटे तौर पर आप कह सकते हैं कि सैनिकों की वापसी से संबंधित 75 प्रतिशत समस्याएं हल हो गई हैं। हमें अभी भी कुछ चीजें करनी हैं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘एक बड़ा मुद्दा यह है कि हम दोनों सेनाओं को करीब ले आए हैं और इस अर्थ में, सीमा का सैन्यीकरण हो रहा है। कोई इससे कैसे निपट सकता है? मुझे लगता है कि हमें इससे निपटना होगा। झड़प के बाद, इसने पूरे रिश्ते को प्रभावित किया है क्योंकि आप सीमा पर हिंसा होने के साथ-साथ फिर यह नहीं कह सकते हैं कि बाकी रिश्ते इससे अछूते हैं।’
विदेश मंत्री ने कहा, ‘हमें उम्मीद है कि अगर सैनिकों की वापसी का कोई समाधान निकलता है और शांति की वापसी होती है तो हम अन्य संभावनाओं पर विचार कर सकते हैं।’
गलवान घाटी झड़प के बाद तनाव चरम पर
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने भाषण में 2020 के गलवान घाटी झड़प का भी जिक्र किया, जिसके बाद से भारत और चीन के बीच तनाव बढ़ा हुआ है। उन्होंने कहा, ‘2020 में जो कुछ हुआ वह कई समझौतों का उल्लंघन था जो अभी भी हमारे लिए समझ से बाहर है। हम इस पर अटकलें लगा सकते हैं।”
विदेश मंत्री ने कहा, ‘चीनी वास्तव में सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बहुत बड़ी संख्या में सैनिकों को ले गए और स्वाभाविक रूप से इसकी प्रतिक्रिया में हमने अपने सैनिकों को आगे बढ़ाया। यह हमारे लिए बहुत मुश्किल था क्योंकि हम उस समय कोविड लॉकडाउन के बीच में थे।’
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उन्होंने आगे कहा, ‘अब हम समझ सकते हैं कि यह एक बहुत ही खतरनाक घटनाक्रम था क्योंकि इन चरम ऊंचाइयों और अत्यधिक ठंड में बड़ी संख्या में सैनिकों की मौजूदगी से ऐसी दुर्घटना हो सकती है। और ठीक वैसा ही हुआ।’ गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई इस झड़प में भारत के 20 जवान मारे गए। इनमें एक कर्नल भी थे। चीन के भी कई सैनिक मारे गए। हालांकि, उसकी ओर से कोई संख्या नहीं बताई गई।
विदेश मंत्री ने कहा कि भारत के लिए मुद्दा यह है कि चीन ने शांति क्यों भंग की और उन्होंने उन सैनिकों को क्यों आगे बढ़ाया और अब इस स्थिति से कैसे निपटा जाए।
एस जंयशंकर ने आगे कहा, ‘अब हम करीब चार साल से बातचीत कर रहे हैं और इसका पहला कदम है जिसे हम डिसइंगेजमेंट कहते हैं। उनके सैनिक अपने सामान्य अड्डों पर वापस चले जाएं और हमारे सैनिक वापस आ जाएं और, जहां जरूरी हो, हमारे पास गश्त करने की व्यवस्था है। हम दोनों उस सीमा पर नियमित रूप से गश्त करते हैं।’
एलएसी पर 50 से 60 हजार सैनिक हैं मौजूद
पिछले चार साल से जारी गतिरोध के बीच दोनों पक्षों (भारत और चीन) ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर लगभग 50,000 से 60,000 सैनिकों को तैनात किया हुआ है। गतिरोध की शुरुआत के बाद से गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिण तट सहित गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स जैसे क्षेत्रों में बफर जोन के निर्माण के साथ मुद्दों को लेकर कुछ समाधान देखा गया है।
हालांकि, पूर्वी लद्दाख में एलएसी के साथ कुछ संघर्ष वाले क्षेत्रों में मुख्य रूप से डेपसांग प्लेंस और डेमचोक जैसे बिंदु शामिल हैं। एलएसी पर आखिरी औपचारिक तौर पर सैनिकों की वापसी (डिसइंगेजमेंट) सितंबर 2022 में हुई थी जब दोनों पक्षों ने गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र में पेट्रोलिंग पॉइंट-15 से अपने सैनिकों को पीछे हटाया था।