राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने मंगलवार को आरोप लगाया कि पिछले साल 'पूरी तरह से सांप्रदायिक' टिप्पणी करने के बावजूद केंद्र सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव को बचाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने सवाल किया कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने न्यायाधीश यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए दिए गए नोटिस पर कोई कदम क्यों नहीं उठाया?

वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने कहा कि पूरे मामले में 'पक्षपात' की बू आती है क्योंकि एक तरफ राज्यसभा के महासचिव ने भारत के प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा कि यादव के खिलाफ आंतरिक जांच को आगे न बढ़ाएं क्योंकि उच्च सदन में उनके खिलाफ एक याचिका लंबित है, जबकि न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में उन्होंने ऐसा नहीं किया। 

क्या बोले सिब्बल?

सिब्बल ने कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और जब संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति, जो पदानुक्रम में दूसरे नंबर पर है, छह महीने में संवैधानिक दायित्वों को पूरा नहीं करता है तो सवाल उठना लाजमी है। उन्होंने कहा, '13 दिसंबर, 2024 को हमने राज्यसभा के सभापति को महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था।  इस पर 55 सांसदों के हस्ताक्षर थे।  छह महीने बीत गए, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया।'

सिब्बल ने कहा, 'मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं जो संवैधानिक पदों पर बैठे हैं, उनकी जिम्मेदारी केवल यह सत्यापित करना है कि हस्ताक्षर हैं या नहीं? क्या इसमें छह महीने लगने चाहिए?'उन्होंने कहा कि एक और सवाल उठता है कि क्या यह सरकार 'पूरी तरह से सांप्रदायिक' टिप्पणी करने वाले शेखर यादव को बचाने की कोशिश कर रही है। 

जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ जांच 

सिब्बल की यह प्रतिक्रिया ऐसे वक्त आई है जब एक ओर सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ जांच न करने का फैसला किया है तचो वहीं दूसरी ओर जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ आगामी मानसून सत्र में महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। 

बता दें हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने शेखर यादव के भाषण पर आंतरिक जांच को रोक दिया है।  रिपोर्ट के मुताबिक राज्यसभा सचिवालय से पत्र मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच शुरू करने के काम पर रोक लगी।