'Right to Privacy' नहीं है पूर्ण, राज्य को करना होगा हस्तक्षेप; मद्रास हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी

'Right to Privacy' को लेकर मद्रास हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी सुनाई है। सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा है कि सामाजिक नुकसान को रोकने के लिए सरकार इसमें हस्तक्षेप कर सकती है।

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निजता का अधिकार नहीं है पूर्ण Photograph: (bole bharat desk)

चेन्नईः मद्रास हाई कोर्ट ने निजता के अधिकार को लेकर अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह अधिकार पूर्ण नहीं है। हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य को सामाजिक नुकसान को रोकना होगा। दरअसल, हाई कोर्ट ने तमिलनाडु ऑनलाइन गेमिंग प्राधिकरण (रियल मनी गेम्स) विनियम, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। 

ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों ने नियमों को चुनौती दी। रियल मनी गेम्स विनियम 2025 के तहत आधी रात से सुबह पांच बजे तक गेमिंग पर प्रतिबंध और आधार-आधारित उपयोगकर्ता सत्यापन प्रणाली को अनिवार्य किया गया था। 

पीठ ने क्या कहा?

जस्टिस एसएम सुब्रमणयम और के राजशेखर की पीठ ने कहा कि ये नियम "उचित प्रतिबंध" हैं जो सभी मौलिक अधिकारों को नियंत्रित करते हैं। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान अहम टिप्पणी करते हुए कहा कि निजता के अधिकार को पूर्ण नहीं माना जा सकता और इसे जनहित के साथ संतुलित करने की आवश्यकता है। पीठ ने यह भी कहा कि "जब इसे तराजू पर रखा जाता है तो जनहित निजता के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।"

मद्रास हाई कोर्ट का यह निर्णय राज्य के आनलाइन गेमिंग खासतौर पर पैसे वाले गेम्स को विनियमित करने के अधिकार को मजबूत करता है ताकि सामाजिक नुकसान को रोका जा सके और कमजोर उपयोगकर्ताओं की रक्षा की जा सके। यह अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है जो ऑनलाइन गेमिंग से जुड़ी लत और नकारात्मक सामाजिक परिणामों की संभावना से जूझ रहे हैं। 

भले ही अदालत की यह टिप्पणी ऑनलाइन गेमिंग कंपनियों के नियमों से संबंधित है लेकिन संभावित रूप से यह निर्णय राज्यों को स्वास्थ्य और कल्याण की रक्षा के लिए समान विनियामक उपायों को लागू करने का अधिकार देता है। 

अदालत ने इस मामले में 30 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रखा था। इस दौरान अदालत ने कहा था कि राज्य सरकार खासतौर पर पैसे वाले ऑनलाइन गेम्स जो कि नशे की लत हैं और सामाजिक रूप से नुकसान पहुंचाते हैं तो राज्य सरकार इसमें हस्तक्षेप कर सकती है। साथ ही अदालत ने यह भी कहा था कि उपयोगकर्ताओं और गेमिंग कंपनियों के मौलिक अधिकारों के बीच संतुलन हो। 

गेमिंग कंपनियों ने क्या तर्क दिया?

वहीं, इस मामले में गेमिंग कंपनियों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और सज्जन पूवय्या पेश हुए थे। इन लोगों ने नियमों का विरोध किया था। गेमिंग कंपनियों की तरफ से पेश हुए वकीलों ने तर्क दिया कि केंद्र सरकार ने पहले ही ऐसे खेलों को विनियमित करने के नियम बना रखे हैं। वकीलों ने यह भी कहा कि राज्य सरकार यूजर्स को लत से बचाने की आड़ में अप्रत्यक्ष रूप से ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश कर रही है। 

तमिलनाडु के इन नियमों का विरोध प्ले गेम्स 24*7, हेड डिजिटल वर्क्स और जंगली गेम्स इंडिया सहित कई कंपनियों ने किया है। इसमें 18 से कम उम्र वाले यूजर्स को पैसे वाले ऑनलाइन गेम्स खेलने से रोकने और गेमिंग अकाउंट खोलने के लिए KYC कराने की बात की गई थी जिसका कंपनियों ने विरोध किया।

इसके अलावा गेमिंग प्लेटफॉर्म में पॉप-अप के रूप से सावधानी वाले मैसेज को भी चेतावनी दी। इसमें यह चेतावनी देने की बात की गई है कि ऑनलाइन गेम "नशे की लत" हैं। 

हालांकि, राज्य सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग की लत के बढ़ते स्तर का हवाला देते हुए इन नियमों का बचाव किया। राज्य सरकार ने कहा कि ऑनलाइन गेमिंर की लत में अक्सर नाबालिग भी शामिल होते हैं और यह लत उनके स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। 

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