धार्मिक आजादी का मतलब दूसरों का धर्मांतरण कराने की आजादी नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धर्मांतरण कराने के एक आरोपी की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि संविधान में सभी को अपना धर्म मानने और प्रचार की अनुमति है। कोर्ट ने कहा कि हालांकि इसे अवैध धर्मांतरण की आजादी नहीं मानना चाहिए।

एडिट
High Court said that conversion activity is going on on a large scale in entire UP (file photo)

धार्मिक आजादी का मतलब दूसरों का धर्म बदलने की आजादी नहीं है: इलाहाबाद हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

लखनऊ: अवैध तरीके से धर्मांतरण कराने के आरोपी एक शख्स को जमानत देने से इनकार करते हुए, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि संविधान नागरिकों को स्वतंत्र रूप से अपने धर्म को मानने की आजादी देता है। इसका अभ्यास और प्रचार करने का भी अधिकार देता है लेकिन इसे धर्मांतरण कराने की आजादी नहीं मान लेना चाहिए।

यह आदेश जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने महाराजगंज के श्रीनिवास राव नायक की जमानत याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। नायक पर उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम, 2021 की धारा 3 और 5 (1) के तहत मामला दर्ज किया गया था।

आदेश पारित करते हुए अदालत ने कहा कि संविधान अंतरात्मा की स्वतंत्रता का व्यक्तिगत अधिकार सुनिश्चित करता है। संविधान यह सुनिश्चित करता है प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक मान्यताओं को चुनने, अभ्यास करने और व्यक्त करने की स्वतंत्रता है।

'धार्मिक आजादी का मतलब धर्मांतरण की आजादी नहीं'

अदालत के अनुसार अंतरात्मा और धर्म की स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को दूसरों को अपने धर्म में परिवर्तित करने के प्रयास करने का अधिकार नहीं समझना चाहिए। कोर्ट ने कहा, 'धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार धर्म परिवर्तन करने वाले व्यक्ति और धर्मांतरित होने की चाह रखने वाले व्यक्ति दोनों के पास समान रूप से है।'

यह भी पढ़ें: ‘देश की बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी अगर…’, धर्मांतरण पर इलाहाबाद हाई कोर्ट की बड़ी टिप्पणी

आरोप है कि 15 फरवरी, 2024 को धर्मांतरण के मामले की सूचना देने वाले शख्स को विश्वनाथ के घर पर आमंत्रित किया गया था। यहां कई और ग्रामीण इकट्ठा हुए थे, जिनमें ज्यादातर अनुसूचित जाति समुदाय के थे। वहां बृजलाल, श्रीनिवास और रवींद्र भी मौजूद थे।

उन्होंने कथित तौर पर तमाम मुश्किलों से राहत और बेहतर जीवन का वादा करते हुए वहां मौजूद लोगों से हिंदू धर्म छोड़ने और ईसाई धर्म अपनाने को कहा। कुछ ग्रामीणों ने ईसाई धर्म स्वीकार भी कर लिया और प्रार्थना शुरू कर दी। वहीं, मामले की सूचना देने वाला वहां से भाग गया और पुलिस को घटना की सूचना दी।

कोर्ट में आरोपी श्रीनिवास के वकील ने क्या कहा?

श्रीनिवास के वकील ने दलील दी है कि उनका कथित धर्मांतरण से कोई संबंध नहीं है। वकील के अनुसार वह आंध्र प्रदेश के रहने वाले और मामले में अन्य आरोपियों में से एक का घरेलू नौकर था। श्रीनिवास का कहना है कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया है। यह भी तर्क दिया गया कि ईसाई धर्म अपनाने वाला कोई भी व्यक्ति शिकायत दर्ज कराने के लिए आगे नहीं आया।

दूसरी ओर, राज्य के वकील ने प्रस्तुत किया कि आवेदक के खिलाफ धर्मांतरण विरोधी अधिनियम 2021 के तहत मामला बनाया गया था। उन्होंने कहा कि आवेदक महाराजगंज आया था जहां धर्म परिवर्तन हो रहा था। राज्य के वकील के अनुसार आरोपी धर्मांतरण कराने में सक्रिय रूप से भाग ले रहा था, जो कानून के खिलाफ है।

अदालत ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि 2021 के एक्ट की धारा 3 स्पष्ट रूप से गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और प्रलोभन के आधार पर एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन पर रोक लगाती है।

इससे पहले पिछले हफ्ते भी अवैध धर्मांतरण के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि यूपी में धर्मांतरण की गैरकानूनी गतिविधि बड़े पैमाने पर चल रही है। कोर्च ने साथ ही कहा था कि जिन धार्मिक सभाओं में धर्मांतरण हो रहा है, उन्हें रोका जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसी सभाओं की अनुमति दी गई तो देश की ‘बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक हो जाएगी।’

यह मामला यूपी के हमीरपुर का था। एक शख्स पर आरोप थे वह गांव से लोगों को दिल्ली ले जाकर धर्मांतरण कराता है। शख्स जेल में था और कोर्ट ने उसकी भी जमानत की याचिका खारिज करते हुए धर्मांतरण को लेकर ये टिप्पणियां की थी।

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article