नई दिल्ली: मुंबई स्थित आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (आईटीएटी) ने माना है कि पत्रकार राणा अय्यूब की ओर से कोविड-19 महामारी के दौरान ऑनलाइन डोनेशनल कैंपेन के जरिए जुटाए गए 2.7 करोड़ रुपये भारतीय आयकर कानून के तहत कर के दायरे में आता है।
वेबसाइट Law Beat की रिपोर्ट के अनुसार न्यायाधिकरण ने कहा कि क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म Ketto के माध्यम से जुटाई गई यह धनराशि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 56(2)(x) के तहत 'अन्य स्रोतों से आय' मानी जाएगी।
ITAT ने धारा 175 के तहत त्वरित कार्रवाई करने के आयकर विभाग के फैसले का भी समर्थन किया। यह एक विशेष प्रावधान है जिसका इस्तेमाल तब किया जाता है जब अधिकारियों को लगता है कि कोई व्यक्ति टैक्स से बचने के लिए अपनी संपत्ति हटाने का प्रयास कर सकता है।
क्या है राणा अय्यूब से जुड़ा टैक्स का ये मामला?
राणा अय्यूब ने 2020 और 2021 के बीच तीन ऑनलाइन डोनेशनल कैंपेन चलाए थे। इन कैंपेन से कुल 2.69 करोड़ रुपये जुटाए गए, जिनमें 80.5 लाख विदेशी मुद्रा में थे। इस कैंपेन का लक्ष्य कोविड-19 से पैदा हुए हालात के बीच लोगों को राहत प्रदान करना, प्रवासी श्रमिकों की सहायता करना और स्वास्थ्य सेवा एवं बाढ़ राहत कार्यों के लिए धन जुटाना था।
हालाँकि, आयकर विभाग ने इस कैंपेन के बाद प्राप्त धन के दुरुपयोग की शिकायतों के बाद एक जाँच शुरू की। जाँच में पता चला कि दान राहत कार्यों के लिए धन जुटाने के लिए किसी अलग खाते में लोगों से पैसे जमा नहीं कराए गए थे। इसे अय्यूब के निजी बचत खाते और उनके पिता और बहन के बचत खातों में जमा किया गया था। वहाँ से, बाद में बड़ी रकम अय्यूब के अपने खाते में वापस भेज दी गई। अधिकारियों ने पाया कि धनराशि का केवल एक छोटा सा हिस्सा, 28 लाख रुपये ही सीधे राहत कार्यों से जुड़ा हुआ पाया।
इसके अलावा अय्यूब के नाम पर 50 लाख रुपये फिक्स्ड डिपोजिट के तौर पर जमा कराए गए। साथ ही लगभग 19 लाख रुपये का इस्तेमाल कथित तौर पर निजी खर्चों के लिए किया गया था। जाँच के समय लगभग 2.4 करोड़ रुपये की राशि का कोई इस्तेमाल नहीं नजर आया और ये निजी खातों में पड़ी हुई थी।
जुलाई 2021 में, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने आयकर अधिनियम की धारा 175 लागू की, जो तत्काल टैक्स असेस्मेंट की अनुमति देती है, खासकर यदि संदेह हो कि कोई व्यक्ति संपत्ति किसी और को ट्रांसफर कर या छिपाकर देनदारियों से बचने की कोशिश कर रहा है। अय्यूब के वकीलों ने तर्क दिया कि विभाग को केवल अप्रैल और जुलाई 2021 के बीच प्राप्त आय पर ही कर लगाना चाहिए था, जो नोटिस जारी होने से पहले की अवधि थी।
हालांकि, ट्रिब्यूनल ने इस तर्क को खारिज कर दिया और वित्तीय पारदर्शिता की कमी और व्यक्तिगत व दान राशि के इस कथित घालमेल को देखते हुए धारा 175 के इस्तेमाल को उचित पाया। इसने इस बात पर भी जोर दिया कि दान की राशि प्रबंधन के लिए किसी धर्मार्थ ट्रस्ट या कानूनी संस्था का इस्तेमाल नहीं किया गया था, जो यह तय करने में एक महत्वपूर्ण कारक है कि कर छूट लागू होती है या नहीं।
वहीं, अय्यूब ने लगातार यह तर्क दिया है कि यह धनराशि राहत कार्यों के लिए एकत्र की गई थी और इसका इस्तेमाल निजी लाभ के लिए नहीं किया गया था। उन्होंने कहा कि इस धनराशि का एक हिस्सा प्रवासी मजदूरों की घर वापसी में मदद करने, चिकित्सा सहायता, भोजन और अन्य जरूरी चीजों पर खर्च किया गया।
FCRA का भी हुआ उल्लंघन
ट्राइब्यूनल ने मामले में 2010 के विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए), 2010 के संभावित उल्लंघन को भी बात कही है। एफसीआरए की धारा 3(1)(एच) के तहत, पत्रकारों को विदेशी डोनेशन प्राप्त करने की अनुमति नहीं है। न्यायाधिकरण ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय दान स्वीकार करने के लिए अपने पिता और बहन के खातों का उपयोग करके अय्यूब इस प्रतिबंध को जानबूझकर दरकिनार करने की कोशिश कर रही थी। आईटीएटी ने उल्लेख किया कि अय्यूब ने दान के लिए अलग खाते नहीं बनाए।
साथ ही राशि को लेकर कोई स्पष्ट खुलासा नहीं किया, और अपने खर्च का ब्यौरा इस तरह से नहीं रखा जिससे यह सत्यापित हो सके कि धन का उपयोग किस प्रकार किया गया। ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि ये धनराशि कर छूट के योग्य नहीं है और उस पर उसकी आय के रूप में कर लगाना उचित है।