राजस्थान के डीग में खुदाई में मिले 3500 साल पुराने सभ्यता के अवशेष, प्राचीन रिवरबेड भी दिखा, सरस्वती नदी से हो सकता है संबंध

यहां भट्टियों और धातु की वस्तुओं की खोज से पता चलता है कि निवासियों को धातु विज्ञान का उन्नत ज्ञान था। प्राचीन रिवर चैनल भी मिला है, जिसका संबंध सरस्वती नदी से हो सकता है।

asi 131

Photograph: (X)

जयपुर: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने राजस्थान के डीग जिले के बहाज गांव के 23 मीटर नीचे दबी एक पैलियोचैनल की खोज की है। पैलियोचैनल किसी नदी के पुराने रास्ते या रिवरबेड को कहते हैं। इसे रिवरचैनल भी कहा जा सकता है। इस खोज के बाद इतिहासकार और पुरातत्वविदों का एक वर्ग इसे ऋग्वेद में वर्णित पौराणिक सरस्वती नदी से जोड़ कर देख रहा है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल 2024 और इस साल मई के बीच किए गए उत्खनन के जो निष्कर्ष निकल रहे हैं वह यहां 3500 और 1000 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई बस्तियों के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। अधिकांश खोजें कुषाण, मगध और शुंग राजवंशों के समय की हैं। सबसे उल्लेखनीय खोजों में पैलियोचैनल है, जो भारतीय पुरातात्विक इतिहास में इस तरह की पहली खोज है। 

एएसआई, जयपुर के पुरातत्वविद् विनय गुप्ता ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में एक प्रेजेंटेशन में कहा, 'इस प्राचीन नदी प्रणाली ने प्रारंभिक मानव बस्तियों को पोषित किया और बहाज को बड़ी सरस्वती बेसिन संस्कृति से जोड़ता है।' 

मथुरा से 50 किमी दूर बहाज गांव में और क्या कुछ मिला?

बहाज गांव मथुरा से करीब 50 किलोमीटर दूर है। एएसआई ने संस्कृति मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी है, जो तय करेगी कि इस स्थल को कैसे संरक्षित किया जाए। अन्य खोजों में, परतदार दीवारों वाली खंदकें, मिट्टी के खंभों के साथ आवासीय संरचनाओं के अवशेष, भट्टियां और लोहे और तांबे की कई तरह की कलाकृतियां शामिल हैं। यहां मिले माइक्रोलिथिक उपकरण या छोटे पत्थर के औजारों से पता चलता है कि इसकी जड़ें पूर्व-होलोसीन युग तक जाती हैं।

विनय गुप्ता ने पिछले महीने डीग में मिले पुरावशेषों की एक प्रदर्शनी के दौरान कहा, 'भट्टियों और धातु की वस्तुओं की खोज से पता चलता है कि निवासियों को धातु विज्ञान का उन्नत ज्ञान था।' उत्खनन दल द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक अवशेषों में 15 यज्ञ कुंड, शक्ति पूजा के लिए बनाए गए पवित्र टैंक और शिव और पार्वती की टेराकोटा की प्रतिमाएं भी शामिल हैं। यग कम से कम 1000 ईसा पूर्व की हैं।

पुरातत्वविदों को चार कच्ची मुहरें भी मिलीं, जिनमें से दो पर ब्राह्मी अक्षर खुदे हुए थे। इन्हें उपमहाद्वीप पर ब्राह्मी लिपि के सबसे पुराना साक्ष्य माना जा रहा है। महाजनपद काल के यज्ञ कुंड भी खोजे गए हैं, जिनमें से अधिकांश रेतीली मिट्टी से भरे हुए थे। इसके अलावा छोटे बर्तनों में बिना लिखे तांबे के सिक्के थे। 

विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारत में सिक्कों की उत्पत्ति के बारे में मौजूदा समय-सीमाओं को चुनौती मिल सकती है। उत्खनन में हड्डी के औजार, शंख की चूड़ी आदि भी मिले हैं। गुप्ता ने कहा, 'बहाज उत्खनन में भारत के प्रारंभिक इतिहास के प्रमुख अध्यायों को फिर से नए सिरे से लिखने की क्षमता है।'

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article