चंडीगढ़ः एक ओर जहां जनसंख्या के आधार पर परिसीमन को लेकर दक्षिणी राज्यों में चर्चा तेज है तो वहीं अब पंजाब में भी इसको लेकर चिंता जताई जा रही है। 

पंजाब कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने सभी पार्टियों के नेताओं से परिसीमन के पक्ष और विपक्ष को लेकर चर्चा करने का आग्रह किया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि यदि जरूरत पड़े तो इसका विरोध भी करें। 

मनीष तिवारी ने भी उठाया था मुद्दा

बाजवा से पहले चंडीगढ़ से कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने कहा था कि यदि परिसीमन एक नागरिक, एक वोट और एक मूल्य के आधार पर होगा तो उत्तरी राज्यों को भी नुकसान होगा क्योंकि लोकसभा और राज्यसभा में उनका कुल प्रतिशत कम हो जाएगा।

तिवारी के अनुसार, केवल जनसंख्या के आधार पर परिसीमन होता है तो पंजाब में लोकसभा की सीटें 18 होंगी जबकि अभी यह संख्या 13 है। उन्होंने कहा, "हालांकि... संसद की कुल संख्या के अनुपात के हिसाब से दोनों राज्य (हरियाणा और पंजाब) हार जाएंगे। किसी भी मामले में वे हाशिए पर हैं और आगे चलकर महत्वहीन हो जाएंगे।"

उन्होंने कहा कि इसका एकमात्र लाभ मध्य भारत को होगा तथा हरियाणा और पंजाब के बीच भी तनाव हो सकता है। उन्होंने ‘नए फॉर्मूले’ की मांग करते हुए कहा, ‘क्या पंजाब (लोकसभा) सीटों की संख्या में हरियाणा के साथ समानता स्वीकार करेगा?’ मौजूदा संसद में हरियाणा में 10 लोकसभा सीटें हैं।

पंजाब की तुलना में हरियाणा में जनसंख्या वृद्धि अधिक है, जिसका एक कारण अन्य राज्यों से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की ओर होने वाला प्रवास माना जाता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा हरियाणा में आता है।

बाजवा ने क्या कहा?

बाजवा ने कहा कि अगर संसद की सीटें बढ़कर 848 हो रही हैं तो पंजाब के हिस्से में वृद्धि “महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे अधिक जनसंख्या वाले राज्यों” की तुलना में मामूली होगी।

कांग्रेस नेता ने कहा कि भाजपा की इन राज्यों में मजबूत पकड़ है। उन्होंने कहा कि पंजाब एकमात्र सिख बहुल राज्य है जहां भाजपा अभी तक अपने दम पर पैठ बनाने में कामयाब नहीं हो पाई है। बाजवा ने कहा, ‘‘इसलिए भाजपा के पास परिसीमन के मौजूदा फार्मूले को जारी रखने का हर कारण है।’’

वहीं, पड़ोसी राज्य हरियाणा में कांग्रेस अभी तक जनसंख्या के आधार पर परिसीमन के खिलाफ नहीं आई है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि यह बहुत जल्दी है क्योंकि परिसीमन की प्रक्रिया अभी शुरू ही नहीं हुई है। हुड्डा ने कहा, "पहले इस मुद्दे को संसद में रखा जाएगा और फिर परिसीमन आयोग का गठन किया जाएगा। यह एक लंबी प्रक्रिया है और जनगणना के बाद ही हो सकती है।"