चंडीगढ़ः पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने शनिवार को अकाल तख्त और तख्त श्री केसगढ़ साहिब के दो जत्थेदारों को हटाए जाने की कड़ी आलोचना की और इसे ‘बदलाखोरी’ (बदले की भावना से किया गया कार्य) करार दिया।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने शुक्रवार को अकाल तख्त के जथेदार ज्ञानी रघबीर सिंह और तख्त श्री केसगढ़ साहिब के जत्थेदार ज्ञानी सुल्तान सिंह को उनके पदों से हटा दिया। इसके साथ ही, सिख विद्वान ज्ञानी कुलदीप सिंह गर्गज को तख्त श्री केसगढ़ साहिब का नया जथेदार नियुक्त किया गया, जो तब तक अकाल तख्त के कार्यकारी जत्थेदार के रूप में भी सेवाएं देंगे, जब तक स्थायी नियुक्ति नहीं हो जाती। वहीं, संत बाबा टेक सिंह को तख्त श्री दमदमा साहिब का जत्थेदार बनाया गया है
अकाल तख्त (अमृतसर) और तख्त श्री केसगढ़ साहिब (आनंदपुर साहिब, रूपनगर) सिख धर्म की पाँच महत्वपूर्ण धार्मिक सत्ता की गद्दियों में शामिल हैं, जिनका सिख समुदाय में बेहद सम्मान है।
भगवंत मान ने एसजीपीसी की कार्रवाई पर उठाए सवाल
सीएम मान ने एसजीपीसी की इस कार्रवाई पर सवाल उठाते हुए कहा, "यह धार्मिक मामला है। होना तो यह चाहिए कि राजनीति धर्म से सीख ले, लेकिन यहां उल्टा हो रहा है— राजनीति अब धर्म को सिखाने लगी है।" उन्होंने यह भी दोहराया कि एसजीपीसी के आम चुनाव कराए जाने चाहिए ताकि गुरुद्वारा प्रबंधन की सही लोकतांत्रिक व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके।
उन्होंने शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के नेताओं, खासतौर पर सुखबीर सिंह बादल पर निशाना साधते हुए कहा, "आपने अपनी सारी गलतियों को स्वीकार किया, 'तनखाह' (धार्मिक दंड) तक भुगती। और अब आप कहते हैं कि हम जत्थेदारों को हटा देंगे? यह बदले की कार्रवाई जैसी लगती है।"
विवाद की पूरी पृष्ठभूमि क्या है?
गौरतलब है कि 2 दिसंबर 2023 को अकाल तख्त ने 2007 से 2017 के बीच पंजाब में शिअद सरकार की गलतियों के लिए पार्टी नेताओं, जिनमें सुखबीर सिंह बादल भी शामिल थे, को धार्मिक दंड सुनाया था। इस आदेश को पांच सिख धर्मगुरुओं ने जारी किया था, जिनमें ज्ञानी रघबीर सिंह, ज्ञानी सुल्तान सिंह और ज्ञानी हरप्रीत सिंह शामिल थे।
हाल ही में 10 फरवरी को एसजीपीसी ने ज्ञानी हरप्रीत सिंह को तख्त श्री दमदमा साहिब के जथेदार पद से हटा दिया था। शुक्रवार को ज्ञानी रघबीर सिंह को हटाने के फैसले को लेकर एसजीपीसी ने बयान दिया कि उनकी नेतृत्व क्षमता पंथ (सिख समुदाय) को मार्गदर्शन देने में "अपर्याप्त" पाई गई और उनकी "अस्थिर कार्यशैली" ने "पंथ की एकता को कमजोर किया।"
एसजीपीसी के इस कदम की कई राजनीतिक और धार्मिक नेताओं ने आलोचना की। तख्त श्री दमदमा साहिब के पूर्व जथेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने इसे "सिख समुदाय के लिए काला दिन" करार दिया। इसके अलावा, कई राजनीतिक नेताओं ने भी इस फैसले पर नाराजगी जताई और एसजीपीसी के कुछ नेताओं पर "राजनीतिक लाभ के लिए" अकाल तख्त को खुली चुनौती देने का आरोप लगाया।