पुणे: महाराष्ट्र के पुणे में नशे में धुत एक किशोर द्वारा अपनी पोर्शो कार से दो आईटी इंजीनियर युवक-युवती को कुचलने का मामला सुर्खियों में है। किशोर की उम्र 17 साल 8 महीने है। यह हादसा इतना गंभीर था कि घटनास्थल पर ही बाइक पर सवार युवक और युवती की मौत हो गई। पुलिस ने इस मामले में अभी तक नाबालिग के पिता को गिरफ्तार किया है। साथ ही आरोपी किशोर ने जिस बार में शराब पी थी, उसके मालिक और मैनेजर को भी गिरफ्तार किया गया है। वहीं, आरोपी को घटना के बाद यातायत के नियमों पर निबंध लिखने समेत कुछ अन्य शर्तों पर जमानत मिल गई। इस फैसले को लेकर हंगामा मचा है और पुलिस ने भी कहा है कि वह आरोपी पर व्यस्क की तरह केस चलाने की मांग करेगी।
बहरहाल, इस मामले ने रोड सेफ्टी समेत शराब पीकर गाड़ी चलाने और गंभीर अपराध करने वाले किशोरों के खिलाफ उचित कार्रवाई को लेकर बहस छेड़ दी है। साथ ही बहस इस बात पर भी है कि आखिर एक नाबालिग को शराब कैसे मिल जाती है जबकि देश में शराब पीने को लेकर नियम हैं। अलग-अलग राज्यों में यह 18 से 25 साल के बीच है। महाराष्ट्र में शराब पीने-खरीदने के लिए कम से कम 25 साल की उम्र होना जरूरी है।
हालांकि, इन नियमों के बावजूद इन्हें ताक पर रखकर धड़ल्ले से पीने-पिलाने का कारोबार चलता है। अब सवाल उठता है कि शराब खरीदने आए ग्राहक की उम्र भला बार या पब वाले या फिर दुकानदार कैसे पता करें। इसके क्या कोई नियम हैं और क्या इनका कोई पालन होता है? आइए जानते हैं।
नाबालिग को शराब देने पर क्या कार्रवाई हो सकती है?
भारत के सभी राज्यों में शराब पीने और खरीदने के नियम तो हैं लेकिन इसका पालन सख्ती से हो रहा है, इसे देखने के लिए या इन पर नजर रखने के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं है। जुवेनाइल जस्टिस (JJ) एक्ट 2015 के अनुसार 18 साल से कम उम्र के बच्चों को शराब देना अपराध है। इस एक्ट की धारा 77 में कहा गया है कि नाबालिगों को ड्रग्स, तंबाकू या ऐसा कोई नशीला पदार्थ या शराब परोसने वाले को सात साल तक की जेल और/या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इसके अलावा बार-दुकान का लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है। यही वजह है कि पुणे पोर्शे कार हादसे वाले मामले में बार के मालिक और मैनेजर को गिरफ्तार किया गया है और उन पर मुकदमा चलेगा।
शराब खरीदने-पीने वाले की उम्र कैसे पता करेंगे
अब सवाल है कि आखिर बार वालों को ग्राहक के उम्र के बारे में कैसे पता चलेगा। असल में इसकी पूरी जिम्मेदारी शराब दुकानदारों और बार या पब मालिकों तथा मैनेजर पर ही है। फिर चाहे दिल्ली की बात करें या बेंगलुरु या फिर बिलासपुर की, यह जिम्मेदारी बार मैनेजर और मालिकों की है कि वे संदेह होने पर ग्राहक की आईडी/पहचान पत्र मांग सकते हैं और उनकी उम्र जान सकते हैं।
हालांकि, तथ्य यही है कि बहुत कम मौकों पर ही कोई बार मालिक या शराब दुकानदार ग्राहक से उसकी आईडी मांगने की जहमत उठाता है। कुछ बार या पब में एंट्री गेट पर ही संदेह होने पर नाबालिगों को एंट्री देने से मना करने की व्यवस्था होती है लेकिन इसे भी कई बार गंभीरता से फॉलो नहीं किया जाता है।
समाचार एजेंसी पीटीआई की साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार ने बार मालिकों को निर्देश जारी किए थे कि वे ग्राहकों की आईडी की डिजिटल कॉपी पर भरोस नहीं करें। बार मालिकों को आईडी की हार्ड कॉपी दिखाने पर ही शराब परोसा जाए। ऐसे ही 2022 में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में प्रशासन ने ऐसे ही निर्देश जारी किए थे कि बिना आईडी प्रूफ के शराब न बेचे जाएं और न परोसे जाएं। यह निर्देश दिए गए थे कि जो भी लोग शराब पीने के लिए आते हैं तो सबसे पहले उनका आई कार्ड चेक करना होगा। छत्तीसगढ़ में शराब पीने की उम्र 21 साल है।
यही नहीं पिछले साल सितंबर में बेंगलुरु में तीन पब मैनेजर को नाबालिगों को शराब परोसने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। नाबालिगों को शराब देने के मामले का खुलासा उस समय हुआ जब सेंट्रल क्राइम ब्रांच (सीसीबी) ने 701 जगहों पर औचक निरीक्षण किया। कुल मिलाकर व्यवस्था यही है कि अगर बार मालिक या दुकानदार गंभीर होते हैं तो नाबालिगों को शराब देने से रोका जा सकता है।
जानकार मानते हैं शराब सेवन के लिए न्यूनतम आयु को सख्ती से लागू करने में एक बुनियादी समस्या है। खरीददार की उम्र क्या है, इसकी जांच करने के बजाय अक्सर दुकानदार या बार मालिक बिक्री को प्राथमिकता देते हैं। कई वाइन स्टोर, बार और रेस्तरां के मालिक स्वीकार करते हैं कि हर उस युवा की जांच करना एक कठिन काम है। खासकर उलझन और बढ़ जाती है जब कोई कम उम्र का है लेकिन दिखता वैसा नहीं है कि आसानी से उसके बारे में अनुमान लगाया जा सके।
ड्रिक एंड ड्राइव पर क्या है कानून?
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 185 के अनुसार, यदि किसी शख्स के प्रति 100 मिलीलीटर खून में 30 मिलीग्राम से अधिक अल्कोहल होता है और फिर भी वह वाहन चलाता या चलाने का प्रयास करता पाया जाता है, तो उस पर कार्रवाई होगी।
पहली बार अपराध करने पर ड्राइवर को छह महीने तक की कैद या 10,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही उनका ड्राइविंग लाइसेंस एक निश्चित अवधि के लिए निलंबित की जा सकती है।
पहली सजा के तीन साल के भीतर ऐसा ही अपराध फिर सामने आया तो अपराधी को दो साल तक की कैद और/या 15,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यदि शराब पीकर गाड़ी चलाने से किसी अन्य व्यक्ति को चोट लगती है तो अपराधी को दो साल तक की कैद और/या 5,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है। वहीं, यदि शराब पीकर गाड़ी चलाने से किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो अपराधी को जुर्माने के साथ-साथ दो से सात साल तक की कैद की सजा हो सकती है।
दोषी किशोर हो तो क्या होगा?
मोटर वाहन अधिनियम की धारा 199ए के अनुसार अगर किसी किशोर ने अपराध किया है, वहां नाबालिग के अभिभावक या मोटर वाहन के मालिक को उल्लंघन का दोषी माना जाएगा और उन्हें सजा मिल सकती है। अभिभावक को तीन साल तक की कैद और 25,000 रुपये जुर्माने की सजा हो सकती है। इसके अलावा वाहन का पंजीकरण 12 महीने के लिए रद्द किया जा सकता है।
यही नहीं, दोषी पाए गए किशोर को धारा 9 के तहत ड्राइविंग लाइसेंस या धारा 8 के तहत लर्नर्स लाइसेंस तब तक नहीं दिया जाएगा जब तक कि वह 25 साल का न हो जाए। किशोर पर जुर्माना लगाया जा सकता है। वहीं, हिरासत की सजा को कानून के प्रावधानों के अनुसार संशोधित किया जा सकता है।
कानून में यह बदलाव एक संसदीय पैनल द्वारा यातायात संबंधी अपराधों के लिए ज्यादा दंड के सुझाव देने के बाद पेश किया गया था। दरअसल, पैनल ने शराब पीकर गाड़ी चलाने से होने वाली दुर्घटनाओं को ‘लापरवाही’ के मामलों के बजाय पूर्व-निर्धारित अपराध मानने की सिफारिश की थी।