लखनऊ: प्रयागराज में मौनी अमावस्या के दिन महाकुंभ के दौरान हुई भगदड़ की घटना की न्यायिक जांच के सिलसिले में शुक्रवार को लखनऊ स्थित केंद्रीय अस्पताल के चिकित्सकों और पीड़ित परिवारों के सदस्यों ने आयोग के समक्ष अपने बयान दर्ज कराए।
बांदा के जिला अस्पताल में ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञ के रूप में तैनात डॉ. विनय ने बताया कि, "बयान गोपनीय प्रक्रिया का हिस्सा हैं, इसलिए फिलहाल कुछ भी सार्वजनिक रूप से साझा नहीं किया जा सकता। यह वही घटना है जो 29 जनवरी को महाकुंभ के दौरान हुई थी।"
उन्होंने बताया कि उस दिन उनकी तैनाती सेंट्रल हॉस्पिटल, प्रयागराज में थी और बयान के लिए एनेस्थीसिया, ऑर्थोपेडिक और इमरजेंसी विभाग के प्रमुखों को बुलाया गया था। उन्होंने कहा, “हम आज पहली बार न्यायिक आयोग के सामने पेश हुए। एसआईटी के समक्ष पहले ही बयान दर्ज हो चुके हैं।”
तीन सदस्यों की टीम ने किए सवाल
डॉ. विनय के अनुसार, आयोग के सामने पूछताछ सुबह 10 बजे से शुरू हुई और एक-एक व्यक्ति से करीब आधा-आधा घंटे तक बातचीत की गई। उन्होंने कहा, "तीन सदस्यों की टीम ने हमसे सवाल किए, खासकर यह जानने के लिए कि इमरजेंसी में कितने मरीज आए थे। मरीजों की सूची के बारे में भी पूछा गया, लेकिन वह हमारे पास नहीं थी।"
इस दौरान अस्पताल से कुल सात लोग पेश हुए, जिनमें तीन डॉक्टरों के अलावा फार्मासिस्ट, वार्ड बॉय, स्टाफ नर्स और मैट्रन शामिल थे। आयोग के समक्ष पीड़ितों के परिवारों के पांच से छह सदस्य भी पेश हुए, जिन्होंने अपने बयान दर्ज कराए।
क्या है मामला?
गौरतलब है कि प्रयागराज के महाकुंभ 2025 के दौरान मौनी अमावस्या (29 जनवरी) के दिन भारी भीड़ के कारण भगदड़ मच गई थी, जिसमें 30 लोगों की मौत हो गई थी और 60 से अधिक लोग घायल हुए थे।
घटना के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया था, जिसकी अध्यक्षता इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति हर्ष कुमार कर रहे हैं। आयोग में सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी डी.के. सिंह और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी वी.के. गुप्ता भी शामिल हैं।
एक महीने में रिपोर्ट देने का था निर्देश
आयोग को एक महीने के भीतर अपनी जांच रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपनी थी। अधिसूचना के अनुसार, आयोग न केवल भगदड़ के कारणों और परिस्थितियों की जांच करेगा, बल्कि भविष्य में इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के उपाय भी सुझाएगा।
समाचार एजेंसी आईएएनएस इनपुट