नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार और प्रयागराज विकास प्राधिकरण (पीडीए) को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना घरों को 'अमानवीय और अवैध' तरीके से ध्वस्त करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। न्यायमूर्ति अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि "ये मामले हमारी अंतरात्मा को झकझोरते हैं। याचिकाकर्ताओं के आवासीय परिसर को जिस तरीके से मनमाने ढंग से ढहाया गया, वह पूरी तरह से अन्यायपूर्ण है, जैसा कि हम विस्तार से चर्चा कर चुके हैं।" 

सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को आदेश दिया कि वह इन घर मालिकों को छह हफ्ते के भीतर 10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करे। कोर्ट ने आगे प्राधिकरण को फटकार लगाते हुए कहा कि उसे यह याद रखना चाहिए कि आश्रय का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न हिस्सा है।' पीठ ने कहा कि हम प्रयागराज विकास प्राधिकरण को आदेश देते हैं कि वह याचिकाकर्ताओं को 10 लाख रुपये प्रति व्यक्ति मुआवजा दे।" यह पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को विध्वंस से प्रभावित व्यक्तियों को मुआवजा देने का आदेश दिया है, विशेष रूप से उस फैसले के बाद, जिसमें 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने विध्वंस के मामले में विस्तृत सुरक्षा उपायों को निर्धारित किया था।

क्या है मामला?

साल 2021 में, इलाहाबाद विकास प्राधिकरण ने प्रयागराज में एक वकील, एक प्रोफेसर और तीन अन्य लोगों के घरों को ढहा दिया था। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि बुलडोजर विध्वंस अभियान के दौरान उनके घरों को अवैध रूप से ध्वस्त किया गया, जबकि उनके जमीन को गैंगस्टर और राजनेता अतीक अहमद से जोड़कर गलत रूप से निशाना बनाया गया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विध्वंस के खिलाफ याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि निर्माण अवैध थे। अदालत ने यह नोट किया कि यह मामला 1906 में पट्टे पर दी गई नजूल भूमि का था। पट्टे की अवधि 1996 में समाप्त हो गई थी और 2015 और 2019 में फ्रीहोल्ड कन्वर्जन के लिए आवेदन खारिज कर दिए गए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कड़ा विरोध जताया कि जब तक उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया जाता, तब तक आवासीय संपत्तियों को नष्ट करना गलत है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस विध्वंस ने "हमारी अंतरात्मा को झकझोर दिया है।" कोर्ट ने पाया कि यह विध्वंस आदेश मिलने के 24 घंटे से भी कम समय में किया गया, जो पूरी तरह से अवैध था और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन था, जिसमें आवास का अधिकार निहित है।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण से कहा कि वह 2024 के सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करें, जिसमें विध्वंस के मामले में सुरक्षा उपायों और निर्देशों की सूची दी गई थी। अदालत ने प्राधिकरण को निर्देश दिया कि भविष्य में इस तरह के उल्लंघन को रोकने के लिए 'इन रे: डायरेक्शंस इन द मैटर ऑफ डिमोलिशन ऑफ स्ट्रक्चर्स' में निर्धारित दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन किया जाए। अदालत ने कहा-

  • बिना कारण बताने का नोटिस जारी किए बिना कोई विध्वंस नहीं किया जा सकता।

  • नोटिस में कम से कम 15 दिनों का समय दिया जाना चाहिए, और इसे अपील योग्य होना चाहिए।

  • नोटिस को जिला मजिस्ट्रेट को भेजा जाना चाहिए, ताकि तारीखों को पीछे न डाला जा सके।

  • नोटिस में अवैध निर्माण का प्रकार, उल्लंघन का विवरण और विध्वंस के कारण दिए जाने चाहिए।

  • व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए और मिनट्स रिकॉर्ड किए जाएं।

  • प्राधिकरण को यह बताना होगा कि विध्वंस एकमात्र विकल्प क्यों है।

  • अवैध निर्माण हटाने का अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।

  • विध्वंस का वीडियो रिकॉर्ड किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार और प्रयागराज विकास प्राधिकरण को आदेश दिया कि वे उन लोगों को जो बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के प्रभावित हुए हैं, 10 लाख रुपये का मुआवजा प्रदान करें। यह मुआवजा उन नागरिकों को मिलेगा, जिनके घरों को 2021 में बिना उचित प्रक्रिया के तोड़ा गया था। कोर्ट ने इसके लिए छह सप्ताह की समय सीमा निर्धारित की है।