जम्मू: गृह मंत्रालय ने जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम को संशोधित किया है। मंत्रालय ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर इसकी जानकारी दी है। यह संशोधन 12 जुलाई से प्रभावी हो गया है जिसके तहत जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल (एल-जी) को और अधिक शक्ति मिल गई है।
इस संशोधन के बाद उपराज्यपाल को अखिल भारतीय सेवाओं, सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस व्यवस्था को लेकर ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। यही नहीं संशोधन के बाद अब एडवोकेट जनरलों और अन्य कानून अधिकारियों की नियुक्तियों के लिए भी मुख्य सचिव को उपराज्यपाल की मंजूरी लेना जरूरी हो गया है।
दिल्ली की तरह जम्मू-कश्मीर में भी एलजी का फैसला होगा अहम
इस संशोधन के बाद जिस तरीके से दिल्ली में होता है उसी तरीके से अब जम्मू-कश्मीर में भी होगा जहां सरकारी अफसरों की पोस्टिंग या फिर उनके ट्रांसफर को लेकर उपराज्यपाल की मंजूरी जरूरी हो जाएगी।
इस के बाद चाहे जम्मू और कश्मीर में किसी भी पार्टी की सरकार बने या फिर कोई भी सीएम बने, लेकिन अहम फैसले अब उपराज्यपाल के हाथों में ही रहेंगे।
सितंबर में हो सकते हैं जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव
गृह मंत्रालय द्वारा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 की धारा 55 के तहत संशोधन कर नई धाराएं जोड़ी गई हैं जिससे उपराज्यपाल को अधिक पावर दिया गया है।
सितंबर में जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले, केंद्र सरकार ने उपराज्यपाल की शक्तियों को बढ़ाकर बड़े संकेत दे दिए हैं कि सरकार किसी की भी बने, लेकिन अंतिम निर्णय लेने की शक्ति उपराज्यपाल के पास ही होगी।
जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल को मिली है यह शक्तियां
यह संशोधन ट्रांजैक्शन ऑफ बिजनेस रूल्स में किए गए हैं। यह संशोधन जम्मू-कश्मीर में उपराज्यपाल को सीएम से अधिक पावर देता है। इस नए संशोधन में 42 ए और 42 बी दो नए पॉइंट जोड़े गए हैं। ऐसे में आइए पॉइंट में समझते हैं कि इस संशोधन के बाद उपराज्यपाल का अधिकार कैसे बढ़ा है।
– इस संशोधन के बाद अब वित्त विभाग की मंजूरी की जरूरत वाले सभी प्रस्तावों को मुख्य सचिव के जरिए उपराज्यपाल के पास भेजना अवश्यक हो जाएगा।
– यही नहीं एडवोकेट जनरलों और अन्य कानून अधिकारियों की नियुक्तियां भी उपराज्यपाल के मंजूरी के बिना संभव नहीं हो पाएगा।
– इसके अलावा अभियोजन और अन्य कानूनी मामलों को मंजूरी देने या अस्वीकार करने के प्रस्तावों पर भी उपराज्यपाल की मंजूरी लेनी होगी।
– जेल, अभियोजन और फोरेंसिक लैब से जुड़े प्रस्ताव को भी उपराज्यपाल के पास भेजना जरूरी हो जाएगा।
– प्रशासनिक सचिवों की नियुक्ति या ट्रांसफर और अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों से संबंधित मामले को भी मुख्य सचिव के जरिए उपराज्यपाल को भेजना जरूरी होगा।
विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर लिया गया फैसला-भाजपा नेता
गृह मंत्रालय के इस फैसले पर बोलते हुए बीजेपी नेता कविंदर गुप्ता ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए यह फैसला लिया गया है। उन्होंने कहा है कि इस फैसले का उद्देश्य निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना है। गुप्ता ने यह भी कहा है कि जम्मू-कश्मीर को जल्द एक राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
उमर अब्दुल्ला ने दी है प्रतिक्रिया
गृह मंत्रालय के इस कदम पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा है कि इस कदम से पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही चुनाव होंगे। उनका मानना है कि इससे नए सीएम शक्तिहीन हो जायेंगे।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता ने कहा है कि “ये एक और संकेत है कि जम्मू-कश्मीर में जल्दी चुनाव होने वाले हैं। यही वजह है कि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण, अविभाजित राज्य का दर्जा बहाल करने की समयसीमा तय करने की दृढ़ प्रतिबद्धता इन चुनावों के लिए एक शर्त है।”
उमर अब्दुल्ला ने आगे कहा है कि,”जनता एक शक्तिहीन, रबर स्टाम्प मुख्यमंत्री से बेहतर की हकदार है, जिसे अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए एलजी से भीख मांगनी पड़ेगी।”
2019 में पारित हुआ था जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम
बता दें कि 5 अगस्त 2019 को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम संसद में पारित किया गया था। ऐसा करके जम्मू-कश्मीर को दो भागों में विभाजित कर उसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया था।
इसमें पहला जम्मू-कश्मीर और दूसरा लद्दाख है। अपने इस फैसले को जमीन पर उतारने से पहले केंद्र ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था।
समाचार एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ