मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को पुणे पोर्शे कार हादसे के नाबालिग आरोपी को ऑब्जर्वेशन होम से रिहा करने का आदेश दे दिया। पुलिस के मुताबिक नाबालिग आरोपी नशे में था और कार चला रहा था। 19 मई की सुबह उसने दोपहिया वाहन को टक्कर मार दी थी, जिसमें दो इंजीनियरों की मौत हो गई थी। इस हादसे के बाद, नाबालिग लड़के को पुणे स्थित एक ऑब्जर्वेशन होम में रखा गया था।
जस्टिस भारती डांगरे और जस्टिस मंजुषा देशपांडे की खंडपीठ ने जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) द्वारा जारी किए गए आदेशों को रद्द कर दिया था। बोर्ड ने ही इस नाबालिग लड़के को ऑब्जर्वेशन होम भेजा था। आरोपी लड़के की बुआ ने बॉम्बे हाईकोर्ट में उसकी जमानत को लेकर याचिका दायर किया था। बुआ का कहना था कि लड़के को गलत तरीके से हिरासत में रखा गया है और उसे तुरंत रिहा किया जाए।
बुआ की देखरेख में रहेगा नाबालिग आरोपी
कोर्ट ने कहा, “हम याचिका स्वीकार करते हैं और लड़के को रिहा करने का आदेश देते हैं। यह नाबालिग (CCL – Child in Conflict with Law) अपनी बुआ (paternal aunt) की देखरेख में रहेगा।
कोर्ट की खंडपीठ ने माना कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड का आदेश अवैध था और बिना अधिकार के दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि दुर्घटना के बाद गुस्से और जनता के दबाव में, नाबालिग की उम्र को नजरअंदाज कर दिया गया। अदालत ने यह भी कहा कि “यह लड़का 18 साल से कम उम्र का है। उसकी उम्र को जरूर ध्यान में रखना चाहिए था।”
बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाबालिग आरोपी को रिहा करने का आदेश देते हुए क्या कुछ कहा:
कानून का पालन जरूरी: कोर्ट ने कहा कि वो कानून, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट और उसके उद्देश्यों से बंधा है। इसलिए, इस लड़के के साथ किसी भी वयस्क अपराधी से अलग व्यवहार किया जाना चाहिए। भले ही अपराध कितना भी गंभीर क्यों ना हो।
उम्र का ध्यान रखना जरूरी: कोर्ट ने कहा कि बच्चों के साथ कानून अलग होता है। उनकी उम्र को ध्यान में रखना जरूरी है।
पुनर्वास पर ध्यान: कोर्ट ने माना कि इस लड़के का पहले से ही पुनर्वास किया जा रहा है, जो कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का मुख्य उद्देश्य है। कोर्ट ने बताया कि लड़के का पहले से ही एक मनोवैज्ञानिक से इलाज चल रहा है और ये इलाज जारी रहेगा।
पिछली सुनवाई में अदालत ने क्या कुछ कहा था?
पिछले शुक्रवार को भी हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी। अदालत ने कहा था कि हादसा दुर्भाग्यपूर्ण था लेकिन आरोपी किशोर को भी सदमा लगा है और उसे कुछ समय दिया जाना चाहिए। सुनवाई के दौरान पीठ ने पुलिस से पूछा था कि कानून के किस प्रावधान के तहत पुणे पोर्शे दुर्घटना मामले में आरोपी किशोर को जमानत देने के आदेश में संशोधन किया गया और उसे किस तरह से कारावास में रखा गया।
न्यायमूर्ति भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे की पीठ ने पुलिस से पूछा, “यह किस तरह की रिमांड है? रिमांड की शक्ति कहां है? यह किस तरह की प्रक्रिया है, जिसमें किसी व्यक्ति को जमानत दी गई है और फिर उसे हिरासत में लेकर रिमांड पारित किया गया है।” पीठ ने कहा कि लड़के को उसके परिवार के सदस्यों की देखभाल और निगरानी से दूर ले जाया गया और उसे अवलोकन गृह में भेज दिया गया, जो कि कानून का उद्देश्य नहीं है।
पीठ ने पुणे पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्य लोक अभियोजक हितेन वेनेगांवकर से पूछा था, “वह एक ऐसा व्यक्ति है जिसे जमानत दी गई है, लेकिन अब उसे अवलोकन गृह में रखा गया है। क्या यह कारावास नहीं है? हम आपकी शक्ति के स्रोत को जानना चाहेंगे।”
क्या है पूरा मामला?
19 मई की सुबह एक हादसा हुआ था, जिसमें नाबालिग आरोपी पर गाड़ी चलाते समय नशे में होने का आरोप है। उसकी कार के टक्कर से दो लोगों की मौके पर मौत हो गई थी। उसी दिन, जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ने लड़के को जमानत दे दिया। जमानत की शर्त के तहत, सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखना और उसे अपने माता-पिता और दादा जी की निगरानी में रहना था। बाद में, पुलिस ने वेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने अर्जी लगाई कि जमान के आदेश में बदलाव किया जाए।
22 मई को वेनाइल जस्टिस बोर्ड ने आदेश दिया कि लड़के को हिरासत में लिया जाए और एक ऑब्जर्वेशन होम भेज दिया जाए। लड़के की बुआ ने अदालत में याचिका दायर कर कहा कि जनता के गुस्से और राजनीतिक दबाव की वजह से, पुलिस ने नाबालिग लड़के के मामले में सही तरीके से जांच नहीं की। उन्होंने यह भी कहा कि इससे जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन) एक्ट का मकसद पूरा नहीं होता है।