मुंबईः बॉम्बे हाई कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पुणे पोर्शे हादसे में आरोपी किशोर को भी सदमा लगा है और उसे कुछ समय दिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति भारती डांगरे और मंजूषा देशपांडे की पीठ ने पुणे पुलिस के उस दृष्टिकोण की ओर इशारा करते हुए यह बात कही, जिसमें नाबालिग को पहले जमानत दी गई और फिर अचानक, बढ़ते जन दबाव के बीच उसे पर्यवेक्षण गृह में डाल दिया गया।
बॉम्बे हाईकोर्ट शुक्रवार आरोपी किशोर की चाची द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। किशोर की चाची ने पर्यवेक्षण गृह से उसकी रिहाई की मांग करते हुए याचिका दायर की थी। अदालत ने कहा कि “दो लोगों की जान चली गई है। मगर बच्चे (किशोर) को भी सदमा लगा है। उसे थोड़ा समय दिया जाए।”
19 मई को किशोर कथित तौर पर नशे की हालत में बहुत तेज गति से पोर्श कार चला रहा था। इसी दौरान उसने एक बाइक को पीछे से टक्कर मार दी, जिसमें दो सॉफ्टवेयर इंजीनियर अनीश अवधिया और अश्विनी कोष्टा की मौत हो गई। किशोर को उसी दिन किशोर न्याय बोर्ड ने सड़क सुरक्षा पर 300 शब्दों का निबंध लिखने का आदेश देते हुए जमानत दे दी।
बाद में लोगों के बीच आक्रोश को देखते हुए पुलिस ने जमानत आदेश में संशोधन की मांग करते हुए बोर्ड के समक्ष एक आवेदन दायर किया। 22 मई को बोर्ड ने लड़के को हिरासत में लेने और उसे पर्यवेक्षण गृह में भेजने का आदेश दिया।
किस प्रावधान के तहत आरोपी को जमानत देने के आदेश में संसोधन हुआ?
शुक्रवार सुनवाई के दौरान पीठ ने पुलिस से पूछा कि कानून के किस प्रावधान के तहत पुणे पोर्शे दुर्घटना मामले में आरोपी किशोर को जमानत देने के आदेश में संशोधन किया गया और उसे किस तरह से कारावास में रखा गया।
किशोर की चाची का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता आबाद पोंडा ने कहा कि पुलिस ने जमानत आदेश को चुनौती नहीं दी है या इसे रद्द करने की मांग नहीं की है, बल्कि इसमें संशोधन करने का प्रयास किया है, जो कि अवैध है। पोंडा ने आगे कहा कि लड़के के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया है।
एक नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कुचला गया
उन्होंने कहा, “एक नागरिक की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कुचला गया है। क्या किसी बच्चे को हिरासत में लिया जा सकता है, जब उसे जमानत दी गई हो और जमानत आदेश लागू हो?” पोंडा ने कहा कि कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत जमानत आदेश की ऐसी समीक्षा की मांग की जा सके और उसे पारित किया जा सके।
पीठ ने कहा कि पुणे पुलिस द्वारा आवेदन पेश किए जाने के बाद जमानत आदेश में संशोधन किया गया और लड़के को हिरासत में लिया गया और तब से उसे तीन बार निगरानी गृह में भेजा गया है।
अदालत ने पुलिस से पूछा, “यह किस तरह की रिमांड है? रिमांड की शक्ति कहां है? यह किस तरह की प्रक्रिया है, जिसमें किसी व्यक्ति को जमानत दी गई है और फिर उसे हिरासत में लेकर रिमांड पारित किया गया है।” पीठ ने कहा कि लड़के को उसके परिवार के सदस्यों की देखभाल और निगरानी से दूर ले जाया गया और उसे अवलोकन गृह में भेज दिया गया, जो कि कानून का उद्देश्य नहीं है।
जमानत रद्द करने के लिए पुलिस ने आवेदन क्यों नहीं किया?
पीठ ने पुणे पुलिस का प्रतिनिधित्व करने वाले मुख्य लोक अभियोजक हितेन वेनेगांवकर से पूछा, “वह एक ऐसा व्यक्ति है जिसे जमानत दी गई है, लेकिन अब उसे अवलोकन गृह में रखा गया है। क्या यह कारावास नहीं है? हम आपकी शक्ति के स्रोत को जानना चाहेंगे।”
पीठ ने सवाल किया कि पुलिस ने जमानत रद्द करने के लिए आवेदन क्यों नहीं किया। वेनेगांवकर ने कहा कि बोर्ड द्वारा पारित रिमांड आदेश सभी वैध थे और केवल गार्जियनशिप में बदलाव हुआ है। माता-पिता के बजाय, वह अब एक परिवीक्षा अधिकारी के अधीन है।
वेनेगांवकर ने कहा कि 19 मई को बोर्ड ने जमानत का आदेश दिया, “सही या गलत” लेकिन तब से बहुत कुछ हुआ है और सबूतों से छेड़छाड़ की गई है। वेनेगांवकर ने पीठ से कहा कि गलत काम करने वाले अधिकारियों और डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। हमने उन्हें सबक सिखाया है। समाज को एक कड़ा संदेश दिया जाना चाहिए कि आप सिर्फ 300 शब्दों का निबंध लिखकर बाहर नहीं निकल सकते। राज्य को अपना कर्तव्य निभाना होगा।
किशोरी फिलहाल 25 जून तक निगरानी गृह में है। पीठ ने भी चाची की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा और कहा कि 25 जून को आदेश पारित किया जाएगा।
पुणे सड़क हादसे में अब तक 11 लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है। कार से कुचलकर 19 मई को दो इंजीनियरों की मौत के केस में नाबालिग आरोपी के खून का नमूना बदलने के मामले में उसकी माँ शिवानी विशाल अग्रवाल को गिरफ्तार किया गया है। पोर्श हादसे से ही जुड़े अन्य मामलों में नाबालिग आरोपी के पिता और दादा को भी पुलिस गिरफ्तार कर चुकी है।