नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में दायर एक नई रिट याचिका में केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। याचिका में कहा गया है कि भारत सरकार ने 43 रोहिंग्या शरणार्थियों को अवैध रूप से हिरासत में लेकर म्यांमार वापस भेज दिया।
याचिका के अनुसार, इन शरणार्थियों में महिलाएं, बच्चे और बुज़ुर्ग शामिल थे और इन्हें पोर्ट ब्लेयर के रास्ते अंतरराष्ट्रीय जलसीमा में छोड़ दिया गया, जहां उन्हें अपनी जान जोखिम में डालकर तैरते हुए म्यांमार पहुंचना पड़ा।
सुनवाई में क्या हुआ?
यह मामला सुप्रीम कोर्ट की उस पीठ के समक्ष लाया गया है जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह शामिल हैं। यह पीठ रोहिंग्या शरणार्थियों की अवैध निर्वासन और उनके जीवन की परिस्थितियों से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही है।
8 मई को जब यह मामला सूचीबद्ध था, तब याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि 7 मई की देर रात दिल्ली पुलिस ने संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग कार्डधारियों के एक समूह को हिरासत में लिया और अगली सुबह उन्हें पोर्ट ब्लेयर भेज दिया गया। इसके बावजूद कि मामला अदालत में लंबित था, इन शरणार्थियों को कथित रूप से नौसेना के जहाजों पर हथकड़ी और आंखों पर पट्टी बांधकर चढ़ाया गया और फिर म्यांमार की दिशा में रवाना कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं की माँगें
दिल्ली में रह रहे दो रोहिंग्या शरणार्थियों द्वारा दाखिल जनहित याचिका में यह भी आरोप है कि इस पूरी प्रक्रिया में परिवारों को तोड़ दिया गया- बच्चों को माताओं से अलग कर दिया गया और बुजुर्गों को कोई सहारा नहीं दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है कि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग कार्डधारी किसी भी रोहिंग्या शरणार्थी को बिना वैधानिक प्रक्रिया के गिरफ्तार न किया जाए। उन्हें सम्मान और गरिमा के साथ रहने का अधिकार दिया जाए और उनके मानवाधिकारों की किसी भी प्रकार से अवहेलना न की जाए।
इसके अतिरिक्त, याचिका में प्रत्येक निर्वासित रोहिंग्या को 50 लाख रुपये मुआवजा देने की मांग की गई है और भारत की घरेलू शरणार्थी नीति के तहत UNHCR कार्डधारियों को फिर से रेजिडेंसी परमिट जारी करने की प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश देने की मांग की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस गंभीर मामले पर कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया और अगली सुनवाई की तारीख 31 जुलाई तय की है।