पीलीभीत में सपा कार्यालय पर प्रशासन ने लगाया ताला, खाली कराने की कार्रवाई के दौरान बवाल, 15 हिरासत में

साल 2006 में नगर पालिका ने यह भवन समाजवादी पार्टी को कार्यालय संचालन के लिए आवंटित किया था। लेकिन साल 2020 में इसकी अवधि समाप्त हो गई, बावजूद इसके पार्टी कार्यालय चलता रहा। नगर पालिका ने कार्यालय को खाली करने के लिए कई बार नोटिस भी दिया।

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Photograph: (X)

पीलीभीतः शहर के नकटादाना चौराहे पर स्थित नगर पालिका ईओ आवास में संचालित समाजवादी पार्टी (सपा) के जिला कार्यालय को बुधवार सुबह प्रशासन ने भारी पुलिस बल की मौजूदगी में खाली करा लिया। इस दौरान सपा नेताओं और कार्यकर्ताओं ने विरोध करते हुए हंगामा किया, जिसके बाद जिलाध्यक्ष जगदेव सिंह जग्गा सहित 15 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया। नगर पालिका ने भवन पर कब्जा लेकर वहां अपना ताला जड़ दिया।

साल 2006 में नगर पालिका ने यह भवन समाजवादी पार्टी को कार्यालय संचालन के लिए आवंटित किया था। लेकिन साल 2020 में इसकी अवधि समाप्त हो गई, बावजूद इसके पार्टी कार्यालय चलता रहा। नगर पालिका ने कार्यालय को खाली करने के लिए कई बार नोटिस भी दिया। 10 जून को अंतिम चेतावनी जारी की गई और 16 जून तक कार्यालय को खाली करने को कहा गया। सपा नेताओं ने इस कार्रवाई को रोकने के लिए स्थानीय अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उनकी याचिका खारिज कर दी।

कार्रवाई के दौरान धक्का-मुक्की

बुधवार सुबह करीब 10 बजे नगर मजिस्ट्रेट विजय वर्धन तोमर और अधिशासी अधिकारी संजीव कुमार भारी पुलिस बल (200 पुलिसकर्मियों से ज्यादा) के साथ मौके पर पहुंचे और कार्यालय खाली कराने की कार्रवाई शुरू कर दी। सपा कार्यालय से सटे एक अन्य कमरे का ताला भी तोड़ा गया। सूचना मिलते ही सपा जिलाध्यक्ष जगदेव सिंह जग्गा, युवजन सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजकुमार राजू, यूसुफ कादरी, पिंटू यादव समेत कई पदाधिकारी वहां पहुंच गए और विरोध करने लगे।

इस दौरान सपा नेताओं की अफसरों से तीखी बहस हुई और पुलिस से धक्का-मुक्की भी। प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रित करते हुए सभी प्रमुख पदाधिकारियों को पुलिस लाइन भेज दिया।

कार्रवाई के दौरान नकटादाना चौराहे पर काफी देर तक अफरातफरी का माहौल बना रहा। सपा कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह कार्रवाई राजनीतिक द्वेष से प्रेरित है और प्रशासन ने विपक्ष की आवाज दबाने का काम किया है। वहीं प्रशासन का कहना है कि कार्यालय की आवंटन अवधि समाप्त होने और अदालत से राहत न मिलने के बाद यह कार्रवाई कानून के दायरे में की गई है।

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