1 जुलाई से लागू होने वाले आपराधिक कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका, जानें किन प्रावधानों पर हैं आपत्तियां?

इन तीनों नए कानूनों के खिलाफ अंजली पटेल और छाया मिश्रा ने याचिका दायर की है। याचिका में अदालत से यह निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है कि इन तीनों कानूनों की व्यवहारिकता का आकलन और मूल्यांकन करने के लिए तुरंत एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए।

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Union Home Minister Amit Shah releasing reference books on criminal justice laws (30 December 2023). Photo: @AmitShah/X

आपराधिक न्याय कानूनों पर संदर्भ पुस्तकों का विमोचन करते केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह (30 दिसंबर 2023). फोटोः @AmitShah/X

नई दिल्लीः भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पिल) दायर की गई है। इस याचिका में नए लागू होने वाले आपराधिक कानूनों को रोकने की मांग की गई है, जो कि लागू होने के सिर्फ दो दिन पहले दायर की गई है। याचिका में यह गुहार लगाई गई है कि इन कानूनों को लागू करने पर रोक लगाई जाए, जब तक कि शीर्ष न्यायालय द्वारा बनाई गई एक समिति इन कानूनों का अच्छी तरह से अध्ययन न कर ले।

ये तीन नए कानून हैं - भारतीय न्याय संहिता 2023 (बीएनएस), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 (बीएनएसएस) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 (बीएसए), जिन्हें 1 जुलाई से लागू किया जाना है। इन तीनों नए कानूनों के खिलाफ दिल्ली निवासी अंजली पटेल और छाया मिश्रा ने याचिका दायर की है। याचिका में विधेयक हिरासत, पुलिस हिरासत और हथकड़ी के उपयोग से संबंधित प्रावधानों में संशोधन की बात कही गई है।

नए कानूनों में किन प्रावधानों पर हैं आपत्तियां?

याचिका में अदालत से यह निर्देश जारी करने का आग्रह किया गया है कि इन तीनों कानूनों की व्यवहारिकता का आकलन और मूल्यांकन करने के लिए तुरंत एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि इन नए कानूनों के नाम ही गलत हैं और इन कानूनों में विरोधाभास और अस्पष्टताएं हैं।

छोटे संगठित अपराध भी अपराध की श्रेणी में सूचीबद्ध

याचिका में बताया गया है कि "भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में तो ज्यादातर अपराध वही हैं जो पहले से भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में थे। साथ ही, इस नए कानून में छोटे पैमाने पर संगठित अपराध को भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है। इसमें गाड़ी चोरी, जेबकतरी, परीक्षा के पेपर बेचना और इसी तरह के गिरोह द्वारा किए जाने वाले संगठित अपराध शामिल हैं।"

15 दिन की पुलिस हिरासत पर भी सवाल

याचिका में यह भी चिंता जताई गई है कि नए "भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस)" के तहत पुलिस को 15 दिन तक हिरासत में रखने का अधिकार दिया गया है। ये 15 दिन, शुरुआती 40 या 60 दिनों की न्यायिक हिरासत (जो कुल 60 या 90 दिन हो सकती है) के दौरान अलग-अलग हिस्सों में लिए जा सकते हैं। याचिका में दलील दी गई है कि अगर पुलिस ने पूरे 15 दिन की हिरासत का इस्तेमाल नहीं किया, तो भी पूरी अवधि के लिए जमानत मिलने में परेशानी हो सकती है।

आर्थिक अपराधों में हथकड़ी के इस्तेमाल पर भी आपत्ति

साथ ही, इस याचिका में कहा गया है कि "आम असुरक्षा की भावना" को स्पष्ट रूप से नहीं बताया गया है और "गिरोह" को परिभाषित नहीं किया गया है। संसदीय समिति ने इस कानून को फिर से लिखने का सुझाव दिया था। याचिका में इस बात का भी विरोध किया गया है कि नए कानून आर्थिक अपराधों सहित कई मामलों में हथकड़ी के इस्तेमाल की अनुमति देते हैं।

याचिका में कहा गया है, "हथकड़ी लगाने की शक्ति अभियुक्त की व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन कर सकती है।" याचिका में दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले फैसलों में हथकड़ी को अंतिम उपाय के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति है, जबकि बीएनएसएस की धारा 43 पुलिस को आदतन अपराधी, बार-बार अपराधी या गंभीर अपराधों, आतंकवादी कृत्यों या आर्थिक अपराधों के आरोपी को गिरफ्तार करते समय हथकड़ी लगाने का अधिकार देती है।

बिना सही बहस के कानून पारित किया गया

साथ ही याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि इन कानूनों को संसद में बिना सही बहस के पारित कर दिया गया क्योंकि उस समय ज्यादातर सांसद निलंबित थे। याचिका में ये भी बताया गया है कि ये नए कानून वकीलों को भी कई तरीकों से प्रभावित कर सकते हैं और उनके लिए कई तरह की चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं।

गौरतलब है कि 2023 के शीतकालीन सत्र में संसद द्वारा कानूनों पर विचार किया गया और उन्हें पारित किया गया। लोकसभा से कुल 37 सांसदों और राज्यसभा से 40 सांसदों ने बहस में भाग लिया था। जब 25 दिसंबर को लोकसभा में संबंधित विधेयक पारित किए गए, तो 141 ​​विपक्षी सांसद (दोनों सदनों से) निलंबित थे।

नए कानूनों के बारे में लोगों को प्रशिक्षित किया गया

सरकार इन कानूनों को लागू करने की तैयारी कर रही है। 40 लाख से ज्यादा जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को इन कानूनों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए प्रशिक्षित किया गया है। यह जागरूकता खासकर महिलाओं और बच्चों पर इन कानूनों के असर को लेकर है। इसके अलावा, 5.65 लाख से ज्यादा पुलिस, जेल, फॉरेंसिक, न्यायिक और अभियोजन अधिकारियों को भी इन नए कानूनों के बारे में प्रशिक्षित किया गया है।

भारत में 1 जुलाई से लागू होने वाले इन तीन नए कानूनों को क्रमशः भारतीय दंड संहिता (IPC), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 को बदलने के लिए लाया गया है। पिछले साल 30 दिसंबर को तीनों नए कानूनी पुस्तकों का गृहमंत्री अमित शाह ने विमोचन किया था जिनका प्रकाशन लेक्सिस नेक्सिस प्रकाशन कंपनी ने किया है।

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने क्या कहा था?

एक्स पर इसकी तस्वीर शेयर करते हुए उन्होंने लिखा था, हाल ही में पारित तीन महत्वपूर्ण आपराधिक न्याय कानूनों पर संदर्भ पुस्तकों का विमोचन करते हुए मुझे खुशी हो रही है। इन तीनों कानूनी पुस्तकों में सभी हितधारकों के लाभ के लिए नए कानूनों में किए गए सभी परिवर्तनों को बहुत ही सरल तरीके से उजागर किया गया है। प्रकाशन कंपनी लेक्सिस नेक्सिस के प्रबंध निदेशक श्री उदित माथुर और बिक्री निदेशक श्री महेंद्र चतुर्वेदी को पुस्तकों को शीघ्रता से जारी करने के लिए बधाई। नई प्रकाशित पुस्तकें कानूनों की प्रभावी समझ को बढ़ाएंगी।

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