नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें चुनावी बॉन्ड योजना के जरिए राजनीतिक दलों को मिले चंदे की राशि जब्त करने का आदेश देने की मांग की गई है। यह याचिका खेम सिंह राठौर ने दायर की है। याचिकाकर्ता का कहना है कि 15 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने “एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया” मामले में फैसला सुनाते हुए चुनावी बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताया था।

कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 का उल्लंघन माना था। इसके अलावा, अदालत ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को यह भी निर्देश दिया था कि वे फैसले की तारीख से चुनावी बांड जारी करना बंद कर दें। साथ ही, 12 अप्रैल 2019 से लेकर फैसले की तारीख तक खरीदे गए बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया था।

चुनावी बॉन्ड के जरिए मिला पैसा न दान न स्वेच्छा से दिया गया चंदा

याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि "चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को जो रकम मिली, वह न तो 'दान' थी और न ही 'स्वेच्छा से दिया गया चंदा'। बल्कि यह विभिन्न व्यापारिक घराना से 'दाल-बदल' में लिया गया 'पैसा' था, जिसके बदले में सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाकर अनुचित लाभ दिया गया।"

याचिका में वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया द्वारा यह दावा किया गया है कि चुनावी बांड खरीदने और भुनाने का विवरण स्पष्ट रूप से दिखाता है कि कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को चुनावी बांड के माध्यम से दिया गया धन, "या तो आपराधिक मुकदमे से बचने के लिए या अनुबंध या अन्य नीतिगत मामलों के माध्यम से मौद्रिक लाभ प्राप्त करने के लिए दिया गया था।"

सत्तारूढ़ दल ने चुनावी बॉन्ड को गुप्त तरीके से लागू कराया

याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि "सत्तारूढ़ दल ने अपनी स्थिति का गलत इस्तेमाल किया और चुनावी बॉन्ड योजना को गुप्त तरीके से लागू कराया। इस योजना का इस्तेमाल उन्होंने कंपनियों से पैसे लेने के लिए किया. बदले में सरकार ने या तो उन कंपनियों पर चल रहे मुकदमे कमजोर कर दिए या उन्हें सरकारी फायदे पहुंचाए. यह सब जनता के खजाने से चुराए गए पैसों और जनहित के खिलाफ है."

याचिकाकर्ता ने और क्या मांग की है?

याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाए। यह समिति सरकारी विभागों द्वारा दानकर्ताओं को दिए गए कथित "अवैध लाभों" की जांच करेगी।

याचिका में एक वैकल्पिक मांग भी रखी गई है। याचिकाकर्ता चाहता है कि इनकम टैक्स विभाग को निर्देश दिया जाए कि वह वित्तीय वर्ष 2018-2019 से 2023-2024 के बीच राजनीतिक दलों (प्रतिवादी संख्या 4 से 25) का फिर से आकलन करे। साथ ही इन दलों को इनकम टैक्स अधिनियम, 1961 की धारा 13A के तहत मिले आयकर छूट को रद्द कर दिया जाए। इसके अलावा चुनावी बॉन्ड के जरिए मिले चंदे की राशि पर आयकर, ब्याज और जुर्माना लगाया जाए।

गौरतलब है कि चुनावी बॉन्ड को लेकर इससे पहले अप्रैल में एक जनहित याचिका दायर की गई थी। जिसमें शीर्ष अदालत के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अगुवाई में तथाकथित "चुनावी बॉन्ड घोटाले" की जांच विशेष जांच दल (एसआईटी)  से कराने की मांग की गई थी।

अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया था कि शीर्ष अदालत के निर्देशों पर सामने आये चुनावी बॉन्ड के आंकड़े दिखाते हैं कि इसका बड़ा हिस्सा कॉर्पोरेट्स द्वारा राजनीतिक दलों को अनुबंध, लाइसेंस और सरकारों या प्राधिकारियों से पट्टे प्राप्त करने के बदले प्रत्युपकार के रूप में दिया गया है।

याचिका में यह भी कहा गया था कि कॉर्पोरेट्स द्वारा राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड अनुकूल नीतिगत बदलावों के लिए और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर या केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी एजेंसियों द्वारा कार्रवाई के करीब दिए गए थे।