बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण के लिए मुश्किलें बुधवार को और बढ़ गई जब सुप्रीम कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों के निरंतर प्रकाशन को लेकर जारी अवमानना नोटिस के जवाब में उनकी ओर से मांगी गई बिना शर्त माफी को खारिज कर दिया। कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, ‘उन सभी अज्ञात लोगों के बारे में क्या जिन्होंने उन बीमारियों को ठीक करने के लिए बताई गई पतंजलि की दवाओं का सेवन किया है जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता है?’
कोर्ट ने साथ ही इस पूरे मुद्दे पर उत्तराखंड के राज्य लाइसेंसिंग प्रधिकरण को भी निष्क्रियता के लिए कड़ी फटकार लगाई। हरिद्वार स्थित पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ राज्य लाइसेंसिंग प्रधिकरण की निष्क्रियता पर कोर्ट ने चेतावनी भरे लहजे में साफ कहा कि वह इसे हल्के में नहीं लेगी। जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस ए अमानुल्लाह की पीठ ने कहा कि मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी।
दरअसल, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के उल्लंघन के लिए पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। आखिर क्या है ये पूरा मामला और अब तक इस केस में क्या कुछ हुआ, आईए विस्तार से जानते हैं।
बाबा रामदेव और पतंजलि क्यों है विवादों में?
जून 2020 में पतंजलि की ओर से एक प्रोडक्ट ‘कोरोनिल’ को लॉन्च किया गया। दावा किया गया कि इससे कोविड का इलाज संभव है और इसने प्रभावित मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल में 100 प्रतिशत सकारात्मक नतीजे दिखाए हैं। इसे कोविड के इलाज के लिए प्रभावी बताते हुए प्रचारित करने पर तभी विवाद शुरू हो गया था। तब कुछ ही दिनों बाद भारत सरकार के हस्तक्षेप से इसे कोविड की दवा बताकर मार्केटिंग करने पर रोक लगा दी गई। हालांकि, भारत सरकार की ओर से कहा गया कि इसे ‘इम्यूनिटी बूस्टर’ बताकर बेचा जा सकता है।
बाद में साल 2021 की शुरुआत में कोविड के घातक डेल्टा लहर आने से ठीक पहले पतंजलि ने इसे फिर बड़े पैमाने पर लॉन्च किया। यहां भी इसे रामदेव और पतंजलि की ओर से ‘कोविड-19 के लिए पहला साक्ष्य-आधारित दवा’ बताया गया। सबसे अहम बात ये भी थी कि इस मेगा लॉन्च में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन जो खुद एक डॉक्टर भी है, शामिल हुए थे। प्रोडक्ट लॉन्च के पोस्टर में यहां तक दावा किया गया कि कोरोनिल के पास फार्मास्युटिकल उत्पाद का प्रमाण पत्र है और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिसस द्वारा मान्यता प्राप्त है।
हालाँकि, WHO ने बाद में साफ किया कि उसने COVID-19 के इलाज या रोकथाम के लिए किसी भी पारंपरिक दवा की समीक्षा या उसे प्रमाणित नहीं किया है।
इसे पूरे विवाद के बीच आईएमए ने कहा कि वह स्वास्थ्य मंत्री की मौजूदगी में अचानक लॉन्च की गई ‘दवा’ के लिए डब्ल्यूएचओ प्रमाणन संबंधी ‘बड़े झूठ’ की बात देखकर हैरान है। आईएमए की ओर से यह भी कहा गया इसे लेकर देश के स्वास्थ्य मंत्री को भी स्पष्टीकरण देना चाहिए।
इसके महीनों बाद रामदेव का एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें उन्हें यह कहते हुए सुना गया कि एलोपैथी एक ‘मूर्खतापूर्ण और दिवालिया विज्ञान’ है जो ‘लाखों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार है।’ उन्होंने कहा कि कोई भी आधुनिक दवा कोविड का इलाज नहीं कर रही है। इस पर आईएमए ने रामदेव को कानूनी नोटिस भेजकर माफी मांगने और बयान वापस लेने की मांग की। साथ ही एक बयान जारी कर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन से रामदेव के खिलाफ महामारी रोग अधिनियम के तहत कार्रवाई की भी अपील की। बहरहाल, आलोचनाओं के बीच पतंजलि योगपीठ ने जवाब दिया कि रामदेव केवल एक फॉर्वर्ड किए गए व्हाट्सएप मैसेज को पढ़ रहे थे और आधुनिक विज्ञान के प्रति उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं है।
पतंजलि के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा केस?
अगस्त 2022 में पतंजलि की ओर से समाचार पत्रों में ‘एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमी: फार्मा और मेडिकल उद्योग द्वारा फैलाई गई गलत धारणाओं से खुद को और देश को बचाएं’ शीर्षक से एक विज्ञापन प्रकाशित करने के बाद आईएमए एक्शन में आया और उसने पतंजलि के खिलाफ एक याचिका दायर की। अखबारों में दिए गए विज्ञापन में दावा किया गया था कि पतंजलि की दवाओं से लोगों को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, लीवर सिरोसिस, गठिया और अस्थमा जैसी बीमारियों से छुटकारा मिला है।
बहरहाल, आईएमए की याचिका में आधुनिक चिकित्सा पद्धति पर रामदेव की पिछली टिप्पणियों का भी उल्लेख किया गया था और कहा गया कि पतंजलि कंपनी लगातार गलत सूचना का प्रसार व्यवस्थित और बेरोकटोक तरीके से कर रही है। 21 नवंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को उन दावों के खिलाफ चेतावनी दी कि उसके उत्पाद मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों को पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं। साथ ही भारी जुर्माना लगाने की भी चेतावनी दी।
कोर्ट की सख्ती के बाद पतंजलि के वकील ने तब आश्वासन दिया कि अब से, किसी भी कानून- विशेष रूप से उत्पादों के विज्ञापन और ब्रांडिंग से संबंधित नियमों का उल्लंघन नहीं होगा।
पतंजलि केस: केस में अब क्या हो रहा है?
इसी साल 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को संबोधित एक पत्र मिला, जिसकी प्रतियां न्यायमूर्ति कोहली और अमानुल्लाह को भी भेजी गई थीं। पत्र में पतंजलि द्वारा लगातार जारी किए जा रहे भ्रामक विज्ञापनों का जिक्र किया गया था। आईएमए के वकील पीएस पटवालिया ने भी अदालत को 21 नवंबर, 2023 की चेतावनी के बाद के अखबारों के विज्ञापन और अदालत की सुनवाई के ठीक बाद रामदेव और बालकृष्ण की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की बातों को भी सामने रखा।
इस पर अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया उसकी राय यही है कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने उसके द्वारा दिए गए वचन का उल्लंघन किया है। साथ ही कोर्ट ने कंपनी से जवाब मांगा कि क्यों न अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए। कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए तब कहा था कि ‘देश को धोखा दिया जा रहा है।’ साथ ही कोर्ट ने कहा कि सरकार ‘अपनी आँखें बंद करके बैठी है।’
अगली सुनवाई में 19 मार्च, 2024 को कोर्ट को बताया गया कि पतंजलि ने अवमानना नोटिस का जवाब दाखिल नहीं किया है। इसके बाद कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा। इसके बाद बालकृष्ण की ओर से माफी की मांग की गई थी।
कोर्ट ने पतंजलि की ओर से बिना शर्त माफी को खारिज करते हुए खारिज करते हुए कहा कि वह मानता है कि आदेश का इस तरह उल्लंघन जानबूझकर किया गया। कोर्ट ने कहा, ‘अवमाननाकर्ताओं ने हमें पहले हलफनामा भेजना उचित नहीं समझा। इसे पहले मीडिया को भेजा गया। कल शाम 7.30 बजे तक यह हमारे लिए अपलोड नहीं किया गया था। साफ है वे पब्लिसिटी में विश्वास करते हैं।’