जम्मू: इन दिनों विश्व बैंक की ओर से नियुक्त न्यूट्रल एक्सपर्ट माइकल लिनो (Michel Lino) और उनकी टीम कई पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ जम्मू-कश्मीर के दौरे पर है। पाकिस्तानी टीम में मुख्य रूप से कई इंजीनियर हैं। ये सभी 17 जून को केंद्र शासित प्रदेश पहुंचे और 28 जून तक यहां रहेंगे।
इस 12 दिनों के दौरे के दौरान न्यूट्रल एक्सपर्ट लिनो और उनकी टीम के अन्य सदस्य 330 मेगावाट की किशनगंगा जलविद्युत परियोजना (KHEP) का दौरा करेंगे। किशनगंगा परियोजना बांदीपोरा जिले की गुरेज तहसील में स्थित है। यह परियोजना कुछ साल पहले पूरी हो गई थी। 19 मई, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन किया था।
अब सवाल है कि पाकिस्तान और न्यूट्रल एक्सपर्ट की टीम भारत क्यों पहुंची है? भारत के जम्मू-कश्मीर में पनबिजली परियोजनाओं को पाकिस्तानी दल और न्यूट्रल एक्सपर्ट क्यों देखना चाहते हैं? इस पूरे विवाद की कहानी क्या है? पाकिस्तान क्यों बार-बार जम्मू-कश्मीर में भारत की पनबिजली परियोजनाओं पर अड़ंगा लगाता रहता है? सिंधु जल संधि से इसका क्या कनेक्शन है? इन सभी विषयों पर हमने वरिष्ठ पत्रकार संत शर्मा से बात की। इन इलाकों को लंबे समय से कवर कर रहे संत शर्मा ने विस्तार से पूरे मुद्दे को हमें समझाया। साथ ही उन्होंने अंग्रेजी में विस्तार से एक आर्टिकल भी हमें भेजा, जिसका अनुवाद हमने किया है।
किशनगंगा प्रोजेक्ट पर जब पाकिस्तान ने लगाया था अड़ंगा
मामले पर आगे बढ़ने से पहले एक बार किशनगंगा प्रोजेक्ट और इस पर पाकिस्तान ने कैसे अड़ंगा लगाने की कोशिश की थी, इस बारे में जान लेते हैं। दरअसल, इस प्रोजेक्ट के उद्घाटन के मौके पर भी पाकिस्तान ने ऐतराज जताया था और कहा था कि इससे पाकिस्तान में बहने वाला पानी इस परियोजना की वजह से प्रभावित होगा। भारत ने हालांकि इसका निर्माण पूरी तरह से सिंधु जल संधि के तहत तय शर्तों के अनुसार ही किया है। वैसे पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि इस क्षेत्र में भारत ने जब-जब ऐसी कोई परियोजना तैयार की, वह विरोध जताता रहा है। इससे इन परियोजनाओं में अक्सर देती होती रही है।
पीएम मोदी ने तब उद्घाटन के मौके पर श्रीनगर में कहा था, ‘यह क्षेत्र न केवल बिजली के मामले में आत्मनिर्भर बन सकता है बल्कि देश के अन्य क्षेत्रों के लिए भी उत्पादन कर सकता है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए हम पिछले चार वर्षों में यहां विभिन्न परियोजनाओं पर काम कर रहे हैं।’
पाकिस्तान के विरोध की वजह से किशनगंगा प्रोजेक्ट में भी कई सालों की देरी हुई। आखिरकार 2013 में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ अर्बिटरेशन (International Court of Arbitration) में फैसला भारत के पक्ष में आया और यहां काम आगे बढ़ सका। यह अब पूरी तरह से ऑपरेशनल है।
रतले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट पर भी पाकिस्तान ने उठाए हैं सवाल
बहरहाल, अभी आई न्यूट्रल एक्सपर्ट टीम जम्मू क्षेत्र के किश्तवाड़ जिले में स्थित निर्माणाधीन 850 मेगावाट रतले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (आरएचईपी) का भी दौरा करेगी। रतले परियोजना पहली बार 2013 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा शुरू किया गया था। इस दौरान सोनिया गांधी, गुलाम नबी आजाद, जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और राज्यपाल रहे एनएन वोहरा भी मौजूद रहे थे। इसे 2018 के अंत तक पांच साल में पूरा किया जाना था लेकिन इस परियोजना को बीच में ही छोड़ दिया गया।
कुछ साल पहले, मोदी सरकार ने रतले परियोजना को फिर से शुरू किया। इस तरह एक बार फिर निर्माण शुरू हुआ। रतले परियोजना के निर्माण का ठेका निजी क्षेत्र की एक कंपनी जीवीके (GVK) को दिया गया था जो हवाई अड्डों जैसी परियोजनाओं में विशेषज्ञता रखती है। हालांकि, कंपनी ने काफी पैसा खर्च करने के बाद इस जलविद्युत परियोजना से हाथ खींच लिया।
पाक दल और न्यूट्रल एक्सपर्ट क्यों हैं दौरे पर?
पाकिस्तान के दल के साथ न्यूट्रल एक्सपर्ट की यह यात्रा दरअसल सिंधु जल संधि (IWT)- 1960 के तहत विवाद को सुलझाने के लिए है। यह संधि 19 सितंबर 1960 को हुई थी और कराची में तब भारत के प्रधानमंत्री रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। इस अवसर पर भारत और पाकिस्तान के अलावा संधि को अमलीजामा पहनाने में अहम भूमिका निभाने वाले विश्व बैंक के अधिकारी भी उपस्थित थे।
ऐसे में कई मौकों पर विवाद के निपटारे के लिए विश्व बैंक की भूमिका अहम हो जाती है। बहरहाल, मौजूदा विवाद के समाधान की पहल भारत की ओर से की गई थी और पाकिस्तान मामलों में प्रतिवादी है। भारत के अनुरोध पर विश्व बैंक की ओर से न्यूट्रल एक्सपर्ट को नियुक्त किया गया है। इसका मकसद भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू-कश्मीर में दो पनबिजली परियोजनाओं – गुरेज में किशनगंगा और किश्तवाड़ में रतले परियोजना को लेकर मतभेदों का निपटारा करना है।
इनमें किशनगंगा पूरी तरह से नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉरपोरेशन (एनएचपीसी) के स्वामित्व में है और यह काम करना शुरू कर चुका है। वहीं, निर्माणाधीन रतले में एनएचपीसी की 51 प्रतिशत हिस्सेदारी है जबकि ज्वाइंट वेंचर के तहत जेकेएसपीडीसी के पास 49 प्रतिशत की हिस्सेदारी है।
IWT-1960 के तहत क्या है विवाद के निपटारे का तरीका?
1960 में हुए सिंधु जल संधि (IWT) के तहत सूबे में पूर्वी नदी कही जाने वाली सतलज, ब्यास और रावी को पूरी तरह से भारत के उपयोग के लिए दी गई थीं। वहीं, पश्चिमी नदियां चिनाब, झेलम और सिंधु को पाकिस्तान को दी गई। हालांकि, भारत के पास पाकिस्तान को मिली पश्चिमी नदियों पर भी रन ऑफ रिवर (RoR) हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स लगाने का अधिकार है क्योंकि ये नदियां भारत से ही होकर पाकिस्तान की ओर बहती है।
इसी संधि के तहत विवादों के निपटारे के लिए तीन अलग-अलग चरण के तरीके भी तय किये गये हैं। यह ऐसी स्थिति में होगा जब नदियों को लेकर कोई विवाद होता है और भारत-पाकिस्तान आपसी सहमति इसका हल नहीं निकाल पाते हैं।
पहला चरण: इसमें पर्मानेंट इंडस कमिशन या स्थायी सिंधु आयोग (पीआईसी) की भूमिका अहम है। असल में भारत और पाकिस्तान के सिंधु आयुक्त मिलकर पर्मानेंट इंडस कमिशन का गठन करते हैं। यदि दोनों पक्ष किसी बात पर सहमत नहीं होती हैं तो कहा जाता है कि एक QUESTION उठ गया है। इसे आप कूटनीतिक टर्म मान सकते हैं। इसके बाद इस क्वेश्चन (QUESTION) पर पीआईसी स्तर पर चर्चा की जाती है और समाधान निकालने की कोशिश होती है।
दूसरा चरण: इसके तहत न्यूट्रल एक्सपर्ट की भूमिता आती है। यदि भारत और पाकिस्तान के दोनों सिंधु आयुक्त अपने मतभेदों को सुलझाने में नाकाम होते हैं, तो मामला बढ़ जाता है। फिर इसे अंतर (Difference) कहा जाता है। इसके बाद इसे विश्व बैंक द्वारा नियुक्त न्यूट्रल एक्सपर्ट के सामने रखा जाता है। न्यूट्रल एक्सपर्ट एक जलविद्युत विशेषज्ञ होता है जो दोनों पक्षों से अलग होता है। वह इनकी बात सुनता है, अपने हिसाब से विषय को जांचता और जानकारी लेता है और फिर अपना फैसला देता है। हालांकि, यहां इसे फैसला या किसी की हार-जीत नहीं बल्कि award (अवॉर्ड) कहा जाता है।
तीसरा चरण: इसके तहत मध्यस्थता न्यायालय या कोर्ट ऑफ अर्बिटरेशन (सीओए) की भूमिका आती है। यदि दोनों पक्ष न्यूट्रल एक्सपर्ट के फैसले पर भी सहमत नहीं हो पाते हैं तो मामले को तीसरे चरण यानी कोर्ट ऑफ अर्बिटरेशन में ले जाया जाता है।
पाकिस्तान की वजह से बन गई है अजब स्थिति
सिंधु जल संधि के तहत किसी भी विवाद के समाधान के लिए तीन चरणों वाली प्रक्रिया तय है, जिसे हमने बताया। हालांकि, पाकिस्तान ने अब अजीबोगरीब स्थिति पैदा कर दी है। उसने किशनगंगा और रतले दोनों परियोजनाओं के मामले में दूसरे चरण की प्रक्रिया पूरी किए बिना ही तीसरे चरण की शुरुआत कर दी है।
अब इससे ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि भारत ने सीओए की कार्यवाही का ही बहिष्कार कर दिया है। ऐसे में मामले में सीओए के समक्ष कार्यवाही एकतरफा (भारत की भागीदारी के बिना) ही जारी है।
दूसरी ओर न्यूट्रल एक्सपर्ट जम्मू-कश्मीर के दौरे पर हैं। पाकिस्तान का दल भी साथ है। मामले पर अपना ‘अवॉर्ड’ देने से पहले न्यूट्रल एक्सपर्ट दोनों पक्षों को सुनेंगे और दोनों साइटों KHEP और RHEP का दौरा करेंगे। इसके बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकेगा। न्यूट्रल एक्सपर्ट की सुनवाई, एक तरह से बहुत विशिष्ट तकनीकी अदालत के समक्ष सुनवाई की तरह है।
सिंधु जल संधि क्या टूटने की राह पर है?
पिछले साल यानी 25 जनवरी, 2023 को भारत ने सिंधु जल संधि के अनुच्छेद XII (3) के तहत पाकिस्तान को नोटिस दिया। इसका मतलब ये है कि भारत की ओर से पाकिस्तान से संधि पर फिर से बातचीत करने को कहा गया है। भारत दरअसल अब इस संधि में संशोधन की बात कर रहा है। 1960 में हुए संधि के बाद यह पहली बार है कि भारत ने अनुच्छेद XII (अंतिम प्रावधान) को लागू करने की बात कही है जिसका सीधा मतलब संधि में संशोधन करने से है। ऐसे में अगर पाकिस्तान अपना अड़ियल रवैया जारी रखता है तो माना जा रहा है कि धीरे-धीरे दोनों देश संधि तोड़ने की ओर बढ़ रहे हैं।
अब बात इसकी कि भारत क्यों इस संधि में बदलाव करने की बात कह रहा है? जानकार इसे लेकर कुछ ठोस वजहें गिनाते हैं। संभव है कि भारत भी इन बातों को रख सकता है। ये वजहें कुछ इस प्रकार हैं-
1. सिंधु जल संधि (IWT) लगभग एक सदी पहले 1920 और 1925 के बीच छह नदियों में पानी के प्रवाह के एकत्र आंकड़ों पर आधारित एक संधि है। सिंधु जल समझौते के लिए प्रयास की शुरुआत 1951 में हुई थी और 1960 में यह लागू हुआ। ऐसे में तब भारत और पाकिस्तान के इंजीनियरों ने जिन आंकड़ों पर गौर किया, वे केवल 25 साल पुराने थे।
2. करीब 100 साल पुराने उस डेटा के अनुसार, सभी छह नदियों- सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब, झेलम और सिंधु में कुल उपलब्ध पानी 168 एमएएफ (मिलियन एकड़ फीट) था।
3. पूर्वी नदियों सतलुज, ब्यास और रावी में कुल प्रवाह केवल 33 एमएएफ था और यही भारत को मिला।
4. इसकी तुलना में पश्चिमी नदियों चिनाब, झेलम और सिंधु में कुल प्रवाह 136 एमएएफ था। इस तरह यह पूर्वी नदियों की तुलना में चार गुना अधिक था।
5. इस लिहाज से देखा जाए तो सिंधु जल संधि के तहत भारत को 19.48% पानी मिला और पाकिस्तान को नदियों का 80.52% पानी मिला।
न्यूट्रल एक्सपर्ट की बैठकें
ताजा मामले पर न्यूट्रल एक्सपर्ट ने सितंबर 2023 में भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडलों के साथ पहली बैठक की थी। इसके बाद नवंबर 2023 में भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडलों के साथ दूसरी बैठक हुई थी। न्यूट्रल एक्सपर्ट टीम KHEP और RHEP दोनों साइटों के पहले दौरे के लिए भारत में हैं। इसके बाद न्यूट्रल एक्सपर्ट दोनों देशों से उनका मत लेंगे। जरूरत पड़ी तो न्यूट्रल एक्सपर्ट फिर एक बार बाद में इन साइटों का दौरा कर सकते हैं। हालांकि इसे लेकर समय बाद में तय किया जाएगा। यह भी अहम है कि न्यूट्रल एक्सपर्ट और प्रतिनिधिमंडल आदि के सभी पत्राचार और वाद-विवाद अंग्रेजी में ही आयोजित किए जाते हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार संत शर्मा से बातचीत और उनसे मिले विस्तृत आर्टिकल के आधार पर)