1 जून 1984: ऑपरेशन ब्लू स्टार की हुई थी शुरुआत, 10 दिनों तक चले इस ऑपरेशन ने बदल दी थी पंजाब और भारत की राजनीति

इस बार एक जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार के 40 साल पूरे हो जाएंगे। पंजाब के पवित्र स्वर्ण मंदिर में छुपे आतंकियों को निकालने के लिए एक जून, 1984 को इस ऑपरेशन की शुरुआत हुई थी।

एडिट
June 1, 1984: Operation Blue Star was started (Photo- IANS)

एक जून 1984: ऑपरेशन ब्लू स्टार की हुई थी शुरुआत (फोटो- IANS)

अमृतसर: आधुनिक पंजाब के इतिहास की जब-जब बात होगी, एक जून और ऑपरेशन ब्लूस्टार का जिक्र आ ही जाएगा। 1 जून 1984, यही वो तारीख थी जब भारतीय सेना ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छुपे खालिस्तानी आतंकियों के खात्मे और उन्हें पकड़ने के लिए ऑपरेशन ब्लूस्टार की शुरुआत की। इसके बाद पंजाब ने लंबे समय तक खूनी घटनाएं देखी और फिर इसी ऑपरेशन के कुछ दिनों बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उन्हीं के दो सिख अंगरक्षकों ने हत्या कर दी।

वैसे ऑपरेशन ब्लू स्टार के कई सालों बाद एक जून, 2015 को सिखों के जीवित गुरु माने जाने वाले गुरु ग्रंथ साहिब (सरूप) की एक प्रति फरीदकोट के एक गुरुद्वारे से चोरी हो गई। इसके बाद भी हिंसा की घटनाएं देखने को मिली। इसे खोजने की काफी कोशिशें हुई लेकिन सबकुछ नाकाम रहा। इस घटना का भी पंजाब की राजनीतिक पर गहरा असर पड़ा।

बहरहाल, अक्टूबर 2015 में बरगारी गुरुद्वारे के बाहर सड़क के पास गुरु ग्रंथ साहिब के फटे हुए पन्ने मिले। माना गया कि वे उसी चोरी किए गए प्रति के हिस्से थे। इसके बाद फिर अशांति बढ़ी और बेहबल कलां में पुलिस गोलीबारी में दो प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। पिछले कुछ सालों में ग्रंथ साहिब की बेअदबी की 100 से अधिक घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें से कुछ में कथित आरोपियों की घातक हत्या तक हुई है।

2015 की घटना का पंजाब की राजनीति पर भी दिखा असर

बेअदबी का मुद्दा पंजाब में बेहद संवेदनशील रहा है। 2015 की घटना के बाद सत्ता में लगातार दो कार्यकाल बिताने वाले अकाली दल को नुकसान उठाना पड़ा। 2017 के चुनावों में बड़ी हार मिली। पार्टी विधानसभा की 117 सीटों में से केवल 15 सीटें जीत सकी। इसके बाद कांग्रेस के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भारी असंतोष का सामना करना पड़ा। साल 2021 में उनकी पार्टी के सहयोगी नवजोत सिंह सिद्धू ने उन पर 2015 के मामले में आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाया। कैप्टन को बाद में कुछ अन्य वजहों से कुर्सी तक छोड़नी पड़ी। चुनाव में भी विफलता मिली। दूसरी ओर पिछले दिसंबर में सुखबीर सिंह बादल ने अपने कार्यकाल के दौरान बेअदबी की घटनाओं के लिए माफी भी मांगी। यह मुद्दा आज भी संवेदनशील बना हुआ है। यही वजह है कि साल 2022 में 'आप' सरकार के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा ने एक विधेयक पारित किया जो गुरु ग्रंथ साहिब और अन्य धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी के लिए आजीवन कारावास का प्रावधान करता है।

एक जून: ऑपरेशन ब्लू स्टार की शुरुआत

1980 के दशक में पंजाब में खालिस्तानी आतंक तेजी से बढ़ने लगा था। इन्होंने अपना सुरक्षित गढ़ स्वर्ण मंदिर में बना लिया था। सरकार के लिए कोई कदम उठाना मुश्किल साबित हो रहा था। ऐसे में आखिरकार प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर में सैन्य अभियान को मंजूरी दे दी। उस समय कैबिनेट में मंत्री रहे प्रणब मुखर्जी सहित कुछ और मंत्रियों ने इसे नहीं करने की सलाह इंदिरा गांधी को दी लेकिन वे अपने फैसले पर अडिग रहीं।

इसके बाद 29 मई तक पैरा कमांडो और मेरठ में 9वीं इन्फैंट्री डिवीजन के सैनिक अमृतसर पहुंच गए थे। उनका मिशन आतंकी विचारक जरनैल सिंह भिंडरावाले और उसके अनुयायियों को बाहर निकालना था। इसके बाद 1 जून को आतंकवादियों और मंदिर के पास निजी इमारतों पर पोजिशन बना रहे सीआरपीएफ कर्मियों के बीच गोलीबारी शुरू हो गई। इसमें 11 नागरिकों की मौत हो गई। ऑपरेशन ब्लू स्टार 10 जून तक चला। इसका गहरा असर हुआ। सेना की रिपोर्ट में 554 मौतें दर्ज हैं, जिनमें चार अधिकारी और 79 सैनिक शामिल थे। हालांकि वास्तविक हताहतों की संख्या कहीं अधिक होने की आशंका है। इस ऑपरेशन में आखिरकार भिंडरावाले भी मारा गया।

ऑपरेशन ब्लू स्टार का असर

ऑपरेशन ब्लू स्टार का गहरा असर कुछ ही दिनों में पंजाब की राजनीति, पंजाब के समाज और भारत की राजनीति पर दिखने लगा था। 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों ने ही हत्या कर दी। इसके बाद भारत के कई हिस्सों में सिख विरोधी दंगे फैल गए। इन दंगों में कई लोगों की जानें गई। दिल्ली में 2,146 लोग मारे गए।

वहीं, 1985 में देश की सबसे पुरानी क्षेत्रीय पार्टी अकाली दल के नेता संत हरचंद सिंह लोंगोवाल की प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने के एक महीने के भीतर हत्या कर दी गई। इसके बाद पंजाब में हिंसा और अस्थिरता का लंबा दौर चला।

ऑपरेशन ब्लू स्टार की चर्चा भी पंजाब की राजनीति में होती रहती है। अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा भड़काने की कोशिश में हर चुनावी रैली में क्षतिग्रस्त हुए अकाल तख्त की तस्वीरें दिखा रहे हैं। दूसरी ओर 'आप' और 'भाजपा' मतदाताओं को इंदिरा की हत्या के बाद सिखों के खिलाफ हुई हिंसा का जिक्र करते रहते हैं।

यह भी पढ़ें
Here are a few more articles:
Read the Next Article