नई दिल्लीः देश की शीर्ष अदालत ने हाल ही में एक निर्णय में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के सभी वर्तमान और भविष्य में नियुक्त होने वाले जज अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक करेंगे। यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट की आधिकारिक वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी।
यह फैसला ऐसे समय में आया जब न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ गंभीर आरोप लगे हैं। एक कथित आग की घटना के बाद उनके दिल्ली स्थित आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने की बात सामने आई थी, जिससे न्यायपालिका की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हुए थे।
पहले भी हुई थी ऐसी पहल लेकिन...
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के जजों को अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने की दिशा में कदम उठाया हो। 1997 में ‘द रेस्टेटमेंट ऑफ वैल्यूज ऑफ ज्यूडिशियल लाइफ’ नामक प्रस्ताव के तहत सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपनी संपत्ति की जानकारी मुख्य न्यायाधीश को देने की व्यवस्था की गई थी।
हाई कोर्ट के जजों को अपने संबंधित चीफ जस्टिस को जानकारी देनी थी। हालांकि ये विवरण सार्वजनिक नहीं किए जाते थे, केवल आंतरिक रिकॉर्ड के लिए होते थे। 2009 में, जनदबाव और आलोचना के बीच सुप्रीम कोर्ट ने जजों को संपत्ति की जानकारी स्वैच्छिक रूप से सार्वजनिक करने की अनुमति दी, लेकिन यह निर्णय पूरी तरह जज की इच्छा पर निर्भर रहा।
अब तक कितने जजों ने की है संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा?
बार एंड बेंच के अनुसार, 11 अप्रैल 2025 तक, देशभर के सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों में से सिर्फ 11.94% ने ही अपनी संपत्ति की जानकारी सार्वजनिक की है। सुप्रीम कोर्ट के 33 में से 30 जजों ने अपनी संपत्ति की जानकारी सीजेआई को दे दी है, लेकिन वेबसाइट पर अब तक तकनीकी कारणों से यह जानकारी प्रदर्शित नहीं हुई है।
हाईकोर्टों की स्थिति और चिंताजनक है। देशभर के 762 हाईकोर्ट जजों में से सिर्फ 95 (12.46%) ने ही अपनी संपत्ति की जानकारी वेबसाइट पर अपलोड की है। 18 हाई कोर्ट ऐसे हैं, जिनकी वेबसाइटों पर किसी भी जज की संपत्ति की कोई जानकारी नहीं है। इनमें इलाहाबाद हाईकोर्ट (81 वर्तमान जजों वाला देश का सबसे बड़ा हाई कोर्ट), बॉम्बे, कोलकाता, गुजरात और पटना हाई कोर्ट शामिल हैं।
केरल हाईकोर्ट सबसे आगे है, जहां 44 में से 41 जज (93%) ने हाल ही में संपत्ति की घोषणा की है। हिमाचल प्रदेश के 12 में से 11 और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के 53 में से 30 जजों ने जानकारी सार्वजनिक की है। दिल्ली हाईकोर्ट के 36 में से 7, मद्रास के 5 और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के केवल 1 जज ने ही अपनी संपत्ति की घोषणा की है।
कानून क्या कहता है?
सुप्रीम कोर्ट जज (वेतन और सेवाशर्त) अधिनियम, 1958 और हाईकोर्ट जज (वेतन और सेवाशर्त) अधिनियम, 1954 के तहत संपत्ति घोषित करना बाध्यकारी नहीं है। सभी घोषणाएं स्वैच्छिक हैं और केवल आंतरिक प्रस्तावों पर आधारित होती हैं। 2010 में, तत्कालीन यूपीए सरकार ने "न्यायिक मानक और जवाबदेही विधेयक" संसद में पेश किया था, जिसमें जजों, उनके जीवनसाथी और बच्चों की संपत्ति की घोषणा अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव था। लेकिन 15वीं लोकसभा के भंग होने के बाद यह विधेयक स्वतः समाप्त हो गया, और दोबारा कभी पेश नहीं हुआ।
अगस्त 2023 में संसद की एक स्थायी समिति ने स्पष्ट सिफारिश की थी कि सभी जजों को सालाना अपनी संपत्ति और देनदारियों का विवरण देना अनिवार्य किया जाए। समिति ने कहा था, “जब सुप्रीम कोर्ट यह मानता है कि चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों की संपत्ति की जानकारी जनता को जानने का अधिकार है, तो फिर जजों को इससे छूट क्यों?” इसने सिफारिश की कि सरकार को ऐसा कानून लाना चाहिए, जिससे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के लिए संपत्ति की वार्षिक घोषणा अनिवार्य हो।
सरकार और सुप्रीम कोर्ट की ताजा प्रतिक्रिया
27 मार्च 2025 को राज्यसभा में आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा के सवाल के जवाब में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि सरकार ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से बात की है। सुप्रीम कोर्ट ने जजों की एक समिति गठित की, जिसने बताया कि यह मुद्दा पहले ही 2020 में संविधान पीठ द्वारा सुलझाया जा चुका है और मौजूदा प्रक्रिया उसी के अनुरूप है। समिति ने सुझाव दिया कि सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर यह जानकारी दी जानी चाहिए कि किन जजों ने सीजेआई को अपनी संपत्ति की जानकारी दी है। सीजेआई द्वारा इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है और वेबसाइट पर संबंधित नाम प्रदर्शित कर दिए गए हैं।