लखनऊः तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड (ओएनजीसी) उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हाइड्रोकार्बन के लिए ड्रिलिंग शुरू करेगा। ओएनजीसी यह ड्रिलिंग गंगा नदी के तट पर शुरू करेगा। इसकी शुरुआत फरवरी के दूसरे सप्ताह में होने की उम्मीद है।
इस ड्रिलिंग के बाद यदि परिणाम सकारात्मक रहते हैं तो प्रदेश के ईंधन और राजस्व में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। यह पहला मौका है जब बलिया में हाइड्रोकार्बन की खोज की जा रही है। ओएनजीसी ने ड्रिलिंग के लिए सभी संबंधित निकायों से पर्यावरण मंजूरी मांगी थी। ओएनजीसी को यह मंजूरी मिल भी गई है।
हाइड्रोकार्बन की ड्रिलिंग 302 वर्ग किमी में की जाएगी। खुदाई के लिए लाइसेंस की समय सीमा 1 अप्रैल 2026 तक है। निगम ड्रिलिंग के लिए 80 करोड़ रूपये खर्च करेगा। निगम द्वारा इस कुंए की खुदाई राष्ट्रीय राजमार्ग-31 और गंगा नदी के सागरपाली गांव के बीच की जाएगी।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने राष्ट्रीय भूकंपीय कार्यक्रम के तहत एक सर्वे कराया था। यह सर्वे गंगा-पंजाब बेसिन में कराया गया था। सर्वे के बाद हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिग नीति के तहत जमीन प्रदान की गई है।
3000 मीटर गहराई तक होगी खुदाई
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ओएनजीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि "एक खुली बोली के बाद पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय और इसकी नोडल एजेंसी हाइड्रोकार्बन निदेशालय ने ओएनजीसी को ब्लॉक प्रदान किया। हमारा काम कुआं खोदकर यह पता करना है कि हाइड्रोकार्बन है या नहीं। अगर हमें किसी भी रूप में हाइड्रोकार्बन मिलता है तो जांच के लिए 3000 मीटर गहराई तक ड्रिल करेंगे।"
अधिकारी ने बताया कि इसकी खुदाई करने में पांच से छह महीने लग सकते हैं। इस दौरान यदि हाइड्रोकार्बन के पर्याप्त संकेत दिखाई देते हैं तो कुंए का परीक्षण उत्पादन आवरण में छिद्र द्वारा किया जाएगा। सामान्यताय इस प्रक्रिया में 7 से 10 दिन लगते हैं।
52 कर्मचारी लगाए जाएंगे
इसके बाद यदि इसमें हाइड्रोकार्बन पाया जाता है तो भविष्य के लिए इसे बंद कर दिया जाएगा। इसकी खुदाई के लिए 52 कर्मी लगाए जाएंगे। इसके अलावा 25,000 लीटर रोजाना पानी इस्तेमाल किया जाएगा।
इस ड्रिलिंग के दौरान 6-8 मीटर क्यूब अवशिष्ट पानी उत्पन्न होगा। इसमें अवशिष्ट मिट्टी, रेत और अन्य पदार्थ मिलेंगे।