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नई दिल्लीः केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ बिल सोमवार को लोकसभा में पेश नहीं किया जाएगा। संसद की संशोधित कार्यसूची में भी यह विधेयक शामिल नहीं है। संसद के शीतकालीन सत्र का समापन 20 दिसंबर को होना है। ऐसे में, इस सत्र में ये विधेयक पेश किया जाएगा या नहीं, अभी तक साफ नहीं है। इस बीच, लोकसभा के सभी सांसदों को विधेयक की प्रतियां उपलब्ध कराई गई हैं ताकि वे इसका अध्ययन कर सकें।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 12 दिसंबर को हुई कैबिनेट बैठक में इस विधेयक को मंजूरी दी गई थी। इसमें दो मसौदा कानून शामिल हैं। एक विधेयक लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान संशोधन का प्रस्ताव करता है, जबकि दूसरा विधेयक तीन केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा चुनाव एक साथ कराने से संबंधित है।
अमित शाह ने संघीय ढांचे को कमजोर करने के आरोपों को खारिज किया
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर राजनीतिक गलियारों में तीखी बहस जारी है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक टीवी कार्यक्रम में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की वकालत की और इस पर संघीय ढांचे को कमजोर करने के आरोपों को खारिज किया। ‘एजेंडा आज तक’ कार्यक्रम में ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ के सवाल पर अमित शाह ने कहा कि यह कोई नई अवधारणा नहीं है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि “1952, 1957 और 1962 में देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हुए थे। हालांकि, 1957 में आठ राज्यों की विधानसभाओं को भंग कर एकसाथ चुनाव कराए गए थे। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू ने केरल में सीपीआई (एम) की सरकार गिराई और इंदिरा गांधी ने बड़े स्तर पर यही तरीका अपनाया। 1971 में लोकसभा को तय समय से पहले भंग कर दिया गया, जिससे अलग-अलग चुनाव कराने का सिलसिला शुरू हुआ।”
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ से भाजपा को होगा फायदा ?
‘वन नेशन वन इलेक्शन’ को राष्ट्रपति प्रणाली से जोड़ने और भाजपा को इसका फायदा मिलने के आरोपों पर शाह ने कहा, “यह पूरी तरह से गलत है। 2014 और 2019 में ओडिशा में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ हुए, लेकिन भाजपा हार गई। इसी तरह, 2019 में देशभर में भारी बहुमत मिलने के बावजूद हम आंध्र प्रदेश में हारे।”
वहीं, भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने इस पहल का समर्थन करते हुए कहा, “यह देश के हित में है। इससे विकास बाधित नहीं होगा और चुनावी खर्चों में कमी आएगी। संघीय ढांचे पर किसी तरह की चोट नहीं होगी। यह देश को मजबूत बनाएगा और विकास को गति देगा।”
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ पर विपक्षी नेताओं ने क्या कहा?
महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता हुसैन दलवई ने इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा, “भारत का संघीय ढांचा ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ जैसे प्रस्तावों से कमजोर होगा। केंद्र सरकार का यह कदम एक पार्टी का शासन लाने की ओर इशारा करता है, जो संविधान और देश की विविधता के खिलाफ है। लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे।”
एनसीपी नेता माजिद मेमन ने इस पर बयान देते हुए कहा कि यह एक जटिल मुद्दा है। उन्होंने बताया कि भारत में एक साथ चुनाव कराना मुश्किल है, क्योंकि देश में लाखों मतदाता हैं और राज्य व केंद्र सरकार के चुनाव एकसाथ कराना कठिन होगा। इसके अलावा, मेमन ने कहा कि यह प्रस्ताव राज्यों के अधिकारों को कमजोर करने का प्रयास हो सकता है और इससे अराजकता का माहौल बन सकता है। उन्होंने यह भी चिंता जताई कि चुनावों का एक साथ होना राज्यों की स्वतंत्रता और संविधानिक अधिकारों के लिए नुकसानदेह हो सकता है।