राज्य के दर्जे पर उमर अब्दुल्ला ने कहा- क्या हमारे भविष्य का फैसला आतंकी और उनके आका करेंगे?

मुख्यमंत्री का यह ऐलान सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी के ठीक एक दिन बाद आया है। सीजेआई बीआरगवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने गुरुवार कहा था कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने से पहले वहाँ के जमीनी हालात को समझना जरूरी है और पहालगम जैसी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने शुक्रवार को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक बड़ा ऐलान किया। उन्होंने घोषणा की कि वह और उनके सहयोगी जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा दिलाने के लिए घर-घर जाकर एक हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे। इस अभियान के बाद एकत्रित किए गए दस्तावेजों को केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट को अगली सुनवाई से पहले सौंपा जाएगा।

बख्शी स्टेडियम, श्रीनगर में दिए अपने भाषण में उमर ने कहा, "अब समय आ गया है कि हमें अपने दफ्तरों से बाहर निकलकर उन दरवाजों तक अपनी बात पहुंचानी होगी, जहाँ ये फैसले लिए जाते हैं।" यह जम्मू-कश्मीर के राज्य से केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद किसी निर्वाचित मुख्यमंत्री का पहला स्वतंत्रता दिवस का संबोधन था।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से नाराज उमर अब्दुल्ला

मुख्यमंत्री का यह ऐलान सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी के ठीक एक दिन बाद आया है। दरअसल, मुख्य न्यायाधीश बीआरगवई की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने से पहले वहाँ के जमीनी हालात को समझना जरूरी है और पहालगम जैसी घटनाओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने 14 अगस्त को जम्मू-कश्मीर की राज्य का दर्जा बहाली से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से 8 हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा। 

मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ कॉलेज शिक्षक जफूर अहमद भट और कार्यकर्ता खुर्शीद अहमद मलिक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि राज्य का दर्जा बहाल करने पर निर्णय लेते समय ज़मीनी हालात पर विचार करना ज़रूरी है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “आप पहलगाम में जो हुआ उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते।” 

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि चुनाव के बाद राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। उन्होंने कहा, “हमने चुनाव के बाद राज्य का दर्जा देने का आश्वासन दिया है। यह हमारे देश का एक विशेष परिस्थिति वाला हिस्सा है। नहीं समझ पा रहा कि अभी इस मुद्दे पर इतना विवाद क्यों है। फिर भी मैं निर्देश लूंगा, 8 हफ्ते का समय दिया जाए।”

याचिकाकर्ताओं का कहना था कि विधानसभा चुनाव राज्य का दर्जा बहाल करने से पहले कराना संघवाद के सिद्धांत के विपरीत है, जो संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष हुए विधानसभा चुनाव के दौरान ही यह आवेदन दायर किया गया था। उनका कहना है कि राज्य का दर्जा न बहाल होने से नागरिकों के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया कि 2023 में अनुच्छेद 370 हटाने को बरकरार रखने वाले फैसले में अदालत ने केंद्र सरकार के आश्वासन पर भरोसा करते हुए राज्य का दर्जा बहाली के मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं दिया था। उन्होंने कहा, “उस फैसले में सरकार पर भरोसा किया गया था कि चुनाव के बाद राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा। उस निर्णय को हुए 21 महीने हो चुके हैं।”

उमर अब्दुल्ला ने इस टिप्पणी पर निराशा जताते हुए इसे "दुर्भाग्यपूर्ण" बताया। उन्होंने सवाल किया, "क्या पहालगम के हत्यारे और पड़ोसी देश (पाकिस्तान) में बैठे उनके आका यह तय करेंगे कि हम एक राज्य होंगे या नहीं? जब भी हम राज्य का दर्जा हासिल करने के करीब होते हैं, वे इसमें बाधा डालने के लिए कुछ न कुछ करेंगे। क्या यह न्यायपूर्ण है? हमें उस अपराध की सजा क्यों दी जा रही है, जिसमें हमारी कोई भूमिका नहीं थी?"

हस्ताक्षर अभियान चलाएंगे उमर अब्दुल्ला

उमर अब्दुल्ला ने कहा कि वह और उनके सहयोगी सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्र को दिए गए आठ हफ्तों का सदुपयोग करेंगे। उन्होंने कहा, "आज से हम इन आठ हफ्तों का उपयोग राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों में घर-घर जाकर हस्ताक्षर अभियान चलाने के लिए करेंगे।"

उन्होंने कहा कि अगर लोग इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार नहीं होते हैं, तो वह अपनी हार स्वीकार कर लेंगे। लेकिन उन्हें पूरा विश्वास है कि आठ हफ्तों में वे लाखों हस्ताक्षर जमा कर लेंगे, जिन्हें केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट को सौंपा जाएगा।

यह लोगों के अधिकार का सवाल है: उमर

मुख्यमंत्री ने कहा कि यह अभियान किसी व्यक्तिगत या राजनीतिक लाभ के लिए नहीं है, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर के लोगों के अधिकारों और सम्मान का सवाल है। उन्होंने कहा, "क्या अपने अधिकार प्राप्त करना कोई अपराध है?" उन्होंने यह भी कहा कि अब तक वे अपनी बात रखने के लिए पत्र, प्रस्तावों और बैठकों का सहारा ले रहे थे, लेकिन अब उन्हें अपनी आवाज़ उन दरवाजों तक पहुंचानी होगी, जहाँ फैसले लिए जाते हैं।

गौरतलब है कि अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख- में विभाजित कर दिया गया था। वर्तमान में नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और कुछ निर्दलीय विधायकों के समर्थन से जम्मू-कश्मीर में सरकार चला रही है और उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री हैं।

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