चुनावी रण में पहली बार नवीन पटनायक की हार, 24 साल बाद सत्ता से बाहर...ओडिशा में भाजपा की जीत की कहानी

ओडिशा में नवीन पटनायक और बीजेडी के 24 साल के शासन का समापन हो गया है। विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में बीजेडी को लोगों ने नकारा है। विधानसभा में भाजपा की सरकार बनना अब तय है।

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BJD's crushing defeat in Odisha...BJP comes to power (Photo- IANS)

ओडिशा में बीजेडी की करारी हार...भाजपा को सत्ता (फोटो- IANS)

भुवनेश्वर: उड़िया अस्मिता का नैरेटिव जोरशोर से उठाते और आक्रामक शैली में कैंपेन करते हुए भाजपा आखिरकार ओडिशा में नवीन पटनायक का किला भेदने में कामयाब हो गई। लोकसभा चुनाव में तो सफलता मिली ही लेकिन सबसे बड़ी जीत विधानसभा चुनाव की रही। भाजपा की लहर ऐसी चली कि कभी उसकी सहयोगी रही बीजेडी आखिरकार ओडिशा में लगातार छठी बार सरकार बनाने से चूक गई।

बीजेडी: लोकसभा चुनाव में पहली बार नहीं खुला खाता

ओडिशा में भाजपा की जीत प्रचंड कही जा सकती है। ओडिशा में कुल 147 विधानसभा सीटों में भाजपा ने 78 पर जीत हासिल की। वहीं, 2000 से सत्ता पर काबिज बीजेडी केवल 51 सीट जीत सकी। यह पार्टी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है। लोकसभा चुनाव में भी भगवा लहर का परचम लहराया और भाजपा ने 21 में से 20 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस के पास एक सीट गई। ये दिलचस्प है कि बीजेडी के गठन के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव में उसका खाता नहीं मिला।

ओडिशा विधानसभा चुनाव में बीडेजी का वोट शेयर 40.22 प्रतिशत रहा। वहीं, भाजपा का वोट शेयर 40.07% रहा। वहीं, लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट शेयर 45.34 प्रतिशत और बीजेडी का 37.53 प्रतिशत रहा। जबकि 2019 में बीजेपी के 32.8% (23 सीटों) के मुकाबले बीजेडी का वोट शेयर 45.2% (112 सीटों के साथ) था। लोकसभा में बीजेडी के लिए यह 43.3% (12 सीटें) और भाजपा के लिए 38.9% (आठ सीटें) रहा था।

नवीन पटनायक की पहली चुनावी हार

भाजपा की लहर राज्य में ऐसी चली कि मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को पहली बार चुनावी हार का स्वाद चखना पड़ा। वे कांटाबांजी में भाजपा के लक्ष्मण बाग से 16,344 वोटों से हार गए। पटनायर ने इस बार कांटाबांजी को अपनी दूसरी सीट के तौर पर चुना था। पटनायक के लिए राहत की बात यही रही कि वे अपनी पारंपरिक सीट हिंजिली को जैसे-तैसे बचाने में कामयाब रहे और 4,636 वोटों से जीत हासिल की। इस सीट पर यह उनकी अब तक की सबसे कम अंतर वाली जीत है।

पटनायक के मंत्रिमंडल के 11 मंत्रियों और बीजीडे के कई दिग्गजों को विधानसभा और लोकसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा है। बीजेडी की हार के बाद अब पटनायक सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने के रिकॉर्ड से भी पीछे रह गए। पटनायक बुधवार को इस्तीफा दे सकते हैं। पटनायक सिक्किम के पूर्व मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग के 24 साल और 165 दिनों तक सीएम पद पर रहने रिकॉर्ड से 74 दिन पीछे रह गए।

भाजपा ने कैसे लिखी ओडिशा में जीत की कहानी?

ओडिशा में भाजपा की जीत के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने एक्स पर लिखा, 'धन्यवाद ओडिशा! यह सुशासन और ओडिशा की अनूठी संस्कृति का जश्न मनाने की एक शानदार जीत है। भाजपा लोगों के सपनों को पूरा करने और ओडिशा को प्रगति की नई ऊंचाइयों पर ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। मुझे हमारे सभी मेहनती पार्टी कार्यकर्ताओं पर उनके प्रयासों के लिए बहुत गर्व है।'

जानकारों का मानना है कि बीजेडी की हार बड़े पैमाने पर सत्ता विरोधी लहर के कारण हुई। हालांकि भाजपा के पास मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा नहीं था, लेकिन पीने के पानी की कमी, पक्के आवास की कमी जैसे मुद्दों पर पटनायक के खिलाफ गुस्से से भाजपा को फायदा हुआ।

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार संबलपुर विश्वविद्यालय के राजनीतिक विशेषज्ञ एसपी दास ने कहा कि 2019 के चुनावों के बाद पटनायक उम्मीदों पर खरा उतरने में विफल रहे। उन्होंने कहा, 'हालांकि पटनायक गरीबी, शिशु मृत्यु दर और महिला सशक्तिकरण सहित कई मापदंडों पर राज्य में सुधार करने में कामयाब रहे, लेकिन वह उन लोगों की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सके जो और भी बहुत कुछ चाहते थे। इसके अलावा उनका गिरता स्वास्थ्य भी एक मुद्दा था। लोगों को शायद लगा कि जब राज्य पर शासन करने की बात है तो पटनायक अब उतने अच्छे साबित नहीं हो सकते। 2020 में कोविड फैलने के बाद से वह राज्य सचिवालय में सीएम कार्यालय में नहीं आ रहे थे।'

वीके पांडियन को संभावित उत्तराधिकारी के रूप में खड़ा करने के पटनायक के फैसले ने भी पार्टी में असंतोष को बढ़ावा दिया। बीजेडी का पूरा चुनावी अभियान पांडियन के इर्द-गिर्द केंद्रित था जो एक बैठक से दूसरी बैठक में जाते रहे, जिससे अटकलें तेज हो गईं कि वह अगले सीएम बनने से सिर्फ एक कदम दूर हैं। दूसरी ओर पटनायक ने प्रचार तो किया लेकिन ज्यादातर बैठकों में कम ही बोले।

पांडियन की वजह से सत्तारूढ़ दल के भीतर नाराजगी को भांपते हुए भाजपा ने पटनायक के करीबी को उड़िया अस्मिता गौरव के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में पेश किया। भाजपा नेता सुरेश पुजारी के अनुसार, 'हालांकि ओडिशा के लोगों ने नवीन पटनायक पर भरोसा किया, लेकिन हमने महसूस किया कि उन्हें पांडियन के नेतृत्व वाली बीजेडी पर उतना भरोसा नहीं है। हमें मोदी की लोकप्रियता से भी मदद मिली जो ओडिशा में अपने चरम पर थी।'

ओडिशा की चार करोड़ जनता का आभार: धर्मेंद्र प्रधान

मतगणना के दिन आखिरी नतीजे आने से पहले ही केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सीनियर नेताओं के साथ मिलकर भुवनेश्वर में पार्टी ऑफिस में कार्यकर्ताओं को संबोधित किया। प्रधान ने कहा, 'यह हमारे राज्य ओडिया और देश के लिए गर्व का दिन है। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातों पर भरोसा जताने के लिए ओडिशा की साढ़े चार करोड़ जनता का आभार व्यक्त करता हूं। मैं प्रधानमंत्री का आभार व्यक्त करता हूं।'

इस दौरान भाजपा नेताओं ने चुनाव के दौरान पार्टी के अभियान का हिस्सा रहे 'उड़िया अस्मिता' का भी जिक्र किया। इस अभियान के तहत मुख्यमंत्री पटनायक के सहयोगी वीके पांडियन पर कई बार निशाना साधा गया था। पांडियन मूल रूप से तमिलनाडु से हैं और एक पूर्व नौकरशाह हैं। प्रधान ने बहरहाल कार्यकर्ताओं को संबोधित करने के दौरान अपने मोबाइल पर प्रसिद्ध कवि गोदावरीश महापात्र का एक गीत भी बजाया, जिसमें लोगों से जागने और राज्य के पुराने गौरव को याद करने की अपील की गई है।

करीब 15 साल बाद चुनावी लड़ाई में लौटे प्रधान ने वरिष्ठ बीजेडी नेता प्रणब प्रकाश दास को 1.17 लाख के अंतर से हराकर संबलपुर लोकसभा सीट पर जीत हासिल की। भाजपा 2009 में बीजेडी से नाता तोड़ने के बाद 10 से भी कम सीटों पर सिमट गई थी। हालांकि इस बाद उसने बीजेडी के गढ़ माने जाने वाले तटीय और आंतरिक इलाकों में भी सेंध लगा दी। नवीन पटनायक के गृह जिले और पार्टी के गढ़ गंजम तक में बीजेडी का सफाया हो गया। पार्टी को जिले की 13 में से 11 सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। 2019 में बीजेडी को गंजम से 12 सीटें मिली थी।

इन सीटों पर भी बीजेडी की अप्रत्याशित हार

हाई-प्रोफाइल अस्का लोकसभा सीट से भी चौंकाने वाले नतीजे आए। नवीन पटनायक ने 1997 में अपने पिता और पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक के निधन के बाद जनता दल के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ते हुए यहां से अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। हालांकि, बीजेडी को यहां अपनी पहली हार का सामना करना पड़ा।

बीजेपी की अनिता सुभद्राशिनी ने करीब 1 लाख वोटों से जीत दर्ज की। गंजम की एक और लोकसभा सीट बेरहामपुर में पटनायक के पूर्व करीबी सहयोगी प्रदीप पाणिग्रही ने भाजपा के टिकट पर 1.6 लाख के अधिक अंतर से जीत हासिल की। इन्हें नवंबर 2020 में बीजेडी से बर्खास्त कर दिया गया था। हालांकि, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल चंदबली विधानसभा सीट पर बीजेडी के ब्योमोकेश रे से 1,916 वोटों के अंतर से जरूर हार गए।

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