नई दिल्लीः भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनता दल (एनडीए) के कुछ सहयोगी दलों ने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के 45 सरकारी पदों को सीधी भर्ती के जरिए भरने के फैसले का विरोध किया है। बिहार के दो प्रमुख एनडीए सहयोगी दलों – जनता दल (युनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) – ने इस कदम का विरोध किया है।
सरकार का यह आदेश चिंता का विषयः जदयू
जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा, “हम एक ऐसा दल हैं जो शुरू से ही सरकारों से कोटे भरने की मांग करते रहे हैं। हम राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं। जब लोगों को सदियों से सामाजिक रूप से वंचित किया गया है, तो आप योग्यता क्यों खोज रहे हैं? सरकार का यह आदेश हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है।” जेडीयू प्रवक्ता ने कहा कि इस फैसले से सरकार ने विपक्षी इंडिया गठबंधन को मुद्दा थाली में परोस दिया।
लेटरल एंट्री से नाखुश चिराग पासवान, कहा- सरकार के सामने रखूंगा
एनडीए के सहयोगियों में एलजेपी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान भी खुश नहीं हैं। समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए चिराग ने कहा, किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए। इसमें कोई शक-शुबहा नहीं है।
चिराग ने आगे कहा, निजी क्षेत्रों में ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में कोई भी सरकारी नियुक्ति होती है, चाहे किसी भी स्तर पर हो, उसमें आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान रखना चाहिए। इसमें नहीं रखा गया है, यह हमारे लिए चिंता का विषय है। मैं खुद सरकार का हिस्सा हूं और मैं इसे सरकार के समक्ष रखूंगा। हां… मेरी पार्टी इससे कतई सहमत नहीं है।
हालांकि, भाजपा की दूसरी सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने इसका समर्थन किया है। आंध्र प्रदेश के मंत्री और टीडीपी के राष्ट्रीय महासचिव नारा लोकेश ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “इनमें से कई (सरकारी) विभागों को विशेषज्ञता की जरूरत है और हमें खुशी है कि लेटरल एंट्री लाई जा रही है। हम हमेशा से निजी क्षेत्र से विशेषज्ञता को सरकार में लाने के पक्ष में रहे हैं।”
सीधी भर्ती पर विवाद
18 अगस्त को यूपीएससी ने 45 पदों को अनुबंध आधार पर सीधी भर्ती के माध्यम से भरने का विज्ञापन दिया। इस महीने की शुरुआत में, राज्यसभा में राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले पांच वर्षों में सीधी भर्ती के माध्यम से 63 नियुक्तियां की गई हैं।
इस कदम की विपक्षी नेताओं और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भी ने आलोचना की। राहुल गांधी ने इसे ‘दलितों, ओबीसी और आदिवासियों पर हमला’ करार दिया। कहा कि ‘नरेंद्र मोदी संघ लोक सेवा आयोग की जगह ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ के जरिए लोकसेवकों की भर्ती कर संविधान पर हमला कर रहे हैं। मंत्रालयों में महत्वपूर्ण पदों पर लेटरल एंट्री के ज़रिए भर्ती कर खुलेआम एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग का आरक्षण छीना जा रहा है।
Lateral entry is an attack on Dalits, OBCs and Adivasis.
BJP’s distorted version of Ram Rajya seeks to destroy the Constitution and snatch reservations from Bahujans.
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 19, 2024
जवाब में, केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 1976 में सीधी भर्ती के माध्यम से वित्त सचिव बनाया गया था। मोंटेक सिंह अहलूवालिया जैसे लोगों को प्रशासनिक भूमिकाओं में शामिल किया गया।
क्या है लेटरल एंट्री?
विभिन्न मंत्रालयों में सचिव और उपसचिव की नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के जरिए होती है। यह देश की सर्वाधिक कठिनतम परीक्षाओं में शुमार है। प्रतिवर्ष इसमें लाखों अभ्यर्थी हिस्सा लेते हैं, लेकिन कुछ को ही सफलता मिल पाती है।
वहीं, केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री की व्यवस्था विकसित करने का फैसला किया है। इसके अंतर्गत बिना यूपीएससी एग्जाम दिए अभ्यर्थी इन पदों पर दावेदारी ठोक सकते हैं। साल 2018 में केंद्र सरकार ने इस व्यवस्था को विकसित करने का फैसला किया था। जिसके अंतर्गत कोई भी अभ्यर्थी मंत्रालयों में सचिव और उप सचिव जैसे पदों को हासिल कर सकता है।
सरकार का मानना है कि इससे नए विचार आएंगे और काम करने का तरीका बदलेगा। योग्य लोगों को तीन से पांच साल के लिए नियुक्त किया जाता है, और अच्छे काम करने पर सेवा बढ़ाई जा सकती है।
इसी को लेकर राजनीतिक संग्राम मचा हुआ है। विपक्षी दलों का कहना है कि इससे दलित, ओबीसी और आदिवासी समुदाय के लोगों के हितों पर कुठाराघात पहुंचेगा। ऐसे में इस व्यवस्था को जमीन पर उतारने से बचना चाहिए।