NCERT ने किताबों के इंग्लिश नाम बदलकर रखे हिंदी में नाम, केरल शिक्षा मंत्री ने बताया तर्कहीन; वापस लेने की मांग की

केरल के शिक्षा मंत्री वी शिवकुट्टी ने एनसीईआरटी के इंग्लिश मीडियम की किताबों के लिए हिंदी नाम रखने के फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, 'यह भारत की भाषाई विविधता को कमजोर करने वाला कदम है।'

केरल के शिक्षा मंत्री वी शिवकुट्टी

केरल के शिक्षा मंत्री वी शिवकुट्टी Photograph: (सोशल मीडिया)

तिरुवनंतपुरम: देश भर में छिड़े भाषा विवाद के बीच राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने कई किताबों के इंग्लिश नाम बदलकर हिंदी नाम रख दिए है। एनसीईआरटी के इस कदम के बाद नई बहस छिड़ गई है। भाषा विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी को बढ़ावा देने की कोशिश है। तमिलनाडु जैसे राज्य इसका पहले ही विरोध कर चुके हैं। वहीं, केरल के शिक्षा मंत्री वी शिवकुट्टी ने एनसीईआरटी के इंग्लिश मीडियम की किताबों के लिए हिंदी नाम रखने के फैसले की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, 'यह गंभीर तर्कहीनता है और भारत की भाषाई विविधता को कमजोर करने वाला कदम है।'

एनसीईआरटी पर भड़के केरल के शिक्षा मंत्री

उन्होंने इसे संस्कृति को थोपना बताया जो भारत की भाषाई विविधता को कमजोर करता है। शिवनकुट्टी ने तर्क दिया कि छात्रों में संवेदनशीलता और समझ को बढ़ावा देने वाले लंबे समय से चले आ रहे अंग्रेजी शीर्षकों को ‘मृदंगम’ और ‘संतूर’ जैसे हिंदी शीर्षकों से बदलना अनुचित है। उन्होंने कहा कि यह परिवर्तन भाषाई विविधता को संरक्षित करने और क्षेत्रीय सांस्कृतिक स्वायत्तता को प्राथमिकता देने की केरल की प्रतिबद्धता के विपरीत है। मंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) का निर्णय संघीय सिद्धांतों और संवैधानिक मूल्यों को कमजोर करता है।

उन्होंने कहा कि पाठ्यपुस्तकों के शीर्षक केवल लेबल नहीं होते; वे छात्रों की धारणाओं और कल्पना को आकार देते हैं। इसलिए, अंग्रेजी माध्यम के छात्रों को अपनी पाठ्यपुस्तकों में अंग्रेजी शीर्षक अवश्य रखने चाहिए। मंत्री ने एनसीईआरटी से इस निर्णय की समीक्षा करने और इसे वापस लेने का आह्वान किया तथा सभी राज्यों से इस प्रकार इसे थोपे जाने के खिलाफ एकजुट होने का आग्रह किया। शिवनकुट्टी ने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा को सशक्तीकरण और आम सहमति का साधन होना चाहिए, न कि थोपने का साधन।

क्यों शुरू हुआ ये विवाद

दरअसल, न्यू एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020) के तहत, स्टूडेंट्स को तीन भाषाएं सीखनी होंगी, हालांकि, इसमें किसी भाषा को अनिवार्य नहीं किया गया। ऐसे में राज्यों और स्कूलों के पास आजादी है कि वे कौन-सी तीन भाषाएं पढ़ाना चाहते हैं। किसी भी भाषा की अनिवार्यता का प्रावधान नहीं है। प्राइमरी क्लासेस (क्लास 1 से 5 तक) में पढ़ाई मातृभाषा या स्थानीय भाषा में करने की सिफारिश की गई है।

वहीं, मिडिल क्लासेस (क्लास 6 से 10 तक) में तीन भाषाओं की पढ़ाई करना अनिवार्य है। गैर-हिंदी भाषी राज्य में अंग्रेजी या एक आधुनिक भारतीय भाषा होगी। सेकेंडरी सेक्शन यानी 11वीं और 12वीं में स्कूल चाहे तो विदेशी भाषा भी विकल्प के तौर पर दे सकेंगे। कई नेता न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2020 से असहमत थे। वहीं, संसद के बजट सत्र के पहले दिन से डीएमके सांसदों ने नई शिक्षा नीति का विरोध किया था। प्रदर्शन करते हुए सांसद केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के करीब पहुंच गए थे और जमकर नारेबाजी की थी।

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