धर्म बदलने वाले दलितों को आरक्षण देने के खिलाफ राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, क्या है मामला?

किशोर मकवाना ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि धर्म बदलने वाले दलित लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने से धर्मांतरण को बढ़ावा मिलेगा और यह अनुसूचित जाति के मूल निवासियों के साथ अन्याय होगा।

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National Commission for Scheduled Castes against giving reservation to Dalits who change their religion dalits says chairman Kishor Makwana

राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) (फोटो- IANS)

नई दिल्ली: धर्म बदलने और अनुसूचित जाति का दर्जा बरकरार रखने का मामला फिर गरमा रहा है। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) के अध्यक्ष किशोर मकवाना ने साफ तौर पर कहा है कि वह इस्लाम और ईसाई धर्म को अपना लेने वाले दलितों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा दिए जाने का विरोध करेंगे।

किशोर का मानना है कि संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 के अनुच्छेद 341 के तहत केवल हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के लोगों को ही अनुसूचित जाति का लाभ मिल सकता है।

अंग्रेजी अखबार द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मकवाना ने स्पष्ट किया कि आरक्षण का सिद्धांत जातिगत भेदभाव और छूआछूत पर आधारित है, जो धर्म बदलने के बाद समाप्त हो जाता है। उनका कहना है कि धर्म बदलने के बाद व्यक्ति परंपरागत रूप से अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं रह जाता और इस प्रकार उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।

आयोग को हाल ही में मिला था एक्सटेंशन

किशोर का यह बयान उस समय आया जब केंद्र सरकार ने पूर्व मुख्य न्यायाधीश केजी बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग को एक साल का एक्सटेंशन दिया है। आयोग यह अध्ययन कर रहा है कि क्या धर्म बदलने वाले सभी दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाना चाहिए।

अक्टूबर 2022 में गठित यह आयोग ऐसे दलितों के एससी दर्जे को लेकर विभिन्न पहलुओं पर विचार कर रहा है, जिनकी धार्मिक पहचान बदल चुकी है। इस दौरान आयोग सामाजिक वैज्ञानिकों, इतिहासकारों और प्रभावित समुदायों के प्रतिनिधियों से भी राय ले रहा है ताकि धर्म बदलने के संदर्भ में जातिगत पहचान को समझा जा सके।

आयोग की रिपोर्ट इस साल 10 अक्टूबर तक पेश की जानी थी, लेकिन विस्तृत अध्ययन के लिए इसे एक वर्ष का अतिरिक्त समय दिया गया है।

एससी दर्जा देना संविधान की मूल भावना के खिलाफ-किशोर मकवाना 

मकवाना ने इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि धर्म बदलने वाले दलित लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने से धर्मांतरण को बढ़ावा मिलेगा और यह अनुसूचित जाति के मूल निवासियों के साथ अन्याय होगा।

किशोर का मानना है कि इससे डॉ. बाबासाहब अंबेडकर द्वारा अनुसूचित जातियों के लिए किए गए समझौतों और आरक्षण की मूल भावना को नुकसान पहुंचेगा। वे कहते हैं कि यह निर्णय संविधान की भावना के खिलाफ होगा और इससे अनुसूचित जाति समुदाय को नुकसान होगा।

इस्लाम और ईसाई धर्म में छुआछूत जैसी सामाजिक समस्याएं नहीं हैं

वहीं, कई दलित समूह और सामाजिक कार्यकर्ता धर्म बदलने वाले दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं। हालांकि, सरकार का मानना है कि इस्लाम और ईसाई धर्म में छुआछूत जैसी सामाजिक समस्याएं नहीं पाई जातीं, इसलिए इन धर्मों में जाने वाले दलितों को आरक्षण का लाभ देना उचित नहीं होगा।

इसके अतिरिक्त सरकार का तर्क है कि इन धर्मों के विदेशी मूल के कारण भी अनुसूचित जाति की सूची में इन्हें शामिल करना सही नहीं है। इस मुद्दे पर देश की विभिन्न अदालतों में भी कई मामले अभी लंबित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दो दशकों से चले आ रहे इस मामले पर निर्णय लेने की जरूरत बताई है।

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