पुणे की एक अदालत ने साल 2013 में एक्टिविस्ट नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले में दो आरोपियों को दोषी पाया है। कोर्ट ने शुक्रवार को दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। साथ ही मुख्य आरोपी वीरेंद्र सिंह तावड़े सहित तीन अन्य को अदालत ने बरी कर दिया। पुणे की विशेष गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) कोर्ट ने इस मामले में सजा करीब 11 साल बाद सुनाई है। दाभोलकर की हत्या दो बाइक सवारों ने 20 अगस्त, 2013 को ओंकारेश्वर मंदिर के पास विठ्ठल रामजी शिंदे पुल गोली मारकर कर दी थी। वह 67 साल के थे।
अदालत ने मामले में सचिन अंदुरे और शरद कालस्कर को आजीवन कारावास और 5 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। सीबीआई की जांच के अनुसार इन दोनों ने दाभोलकर को गोली मारी थी। वहीं आरोपी तावड़े, संजीव पुनालेकर और विक्रम भावे को सबूतों के अभाव में छोड़ दिया गया। नरेंद्र दाभोलकर महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता और अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक थे।
दाभोलकर की हत्या के अगले कुछ वर्षों में कुछ ऐसी ही और घटनाओं को भी अंजाम दिया गया था। इसमें वामपंथी विचारधारा के नेता गोविंद पानसरे (16 फरवरी, 2015 को कोल्हापुर में), एमएम कलबुर्गी (30 अगस्त, 2015 को धारवाड़ में) और पत्रकार गौरी लंकेश (20 सितंबर, 2017 को बेंगलुरु में) की हत्या जैसी घटनाएं शामिल हैं।
नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड: सीबीआई ने 2014 में शुरू की थी जांच
नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के मामले की शुरुआत में पुणे पुलिस ने जांच की थी। बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के बाद 2014 में जांच को सीबीआई ने अपने हाथ में ले लिया था। इसके बाद इस मामले जून 2016 में हिंदू दक्षिणपंथी संगठन ‘सनातन संस्था’ से जुड़े वीरेंद्र सिंह तावड़े को गिरफ्तार किया गया। सुनवाई में अभियोजन पक्ष के अनुसार तावड़े हत्या के मास्टरमाइंड में से एक था।
तावड़े को इससे पहले 2015 में पानसरे हत्याकांड से जुड़े मामले में भी गिरफ्तार किया गया था। नरेंद्र दाभोलकर को गोली उस समय मारी गई थी, जब वे सुबह की सैर के लिए निकले थे। हत्या करने वाले पहले से छुपे हुए थे। इस हमले में दाभोलकर की मौत घटनास्थल पर ही हो गई थी। गौरतलब है कि मामले में दोषी ठहराए कालस्कर और अंदुरे की गिरफ्तारी के लिए जांच एजेंसी को सुराग परशुराम वाघमारे से मिला था। परशुराम को गौरी लंकेश की हत्या से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया गया था।