नागपुरः नागपुर नगर निगम (एनएमसी) के आयुक्त अभिजीत चौधरी ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के समक्ष एक हलफनामा दायर कर दंगों के आरोपियों के घर तोड़ने को लेकर बिना शर्त माफी मांगी है।
उन्होंने कहा कि नगर निगम के अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की जानकारी नहीं थी, जिसमें किसी भी आरोपित की संपत्ति गिराने से पहले प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का पालन अनिवार्य किया गया है।
चौधरी ने अपने हलफनामे में यह भी कहा कि महाराष्ट्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को लेकर कोई भी सर्कुलर निगम को नहीं मिला, जबकि शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को निर्देशित किया था कि वे जिलाधिकारियों और स्थानीय प्रशासन को इस बाबत परिपत्र जारी करें।
क्या है मामला?
17 मार्च को औरंगजेब की मजार को हटाने की मांग को लेकर निकाले गए वीएचपी के प्रदर्शन के दौरान नागपुर में अफवाह फैल गई कि धार्मिक प्रतीक चिन्हों वाली एक 'चादर' जला दी गई है। इसके बाद शहर में हिंसा भड़क उठी।
मुख्य आरोपी फहीम खान और यूसुफ शेख के मकानों पर कार्रवाई की गई। 24 मार्च को हाईकोर्ट ने इन मकानों को गिराने पर रोक लगाई, लेकिन तब तक फहीम खान का दो मंजिला मकान ढहा दिया गया था। अदालत के निर्देश के बाद अन्य आरोपी यूसुफ शेख के घर के 'अवैध' हिस्सों को गिराने पर रोक लगा दी थी।
नगर निगम के अधिकारियों ने 20 मार्च को इस घर का निरीक्षण किया और पाया कि यह निर्माण महाराष्ट्र क्षेत्रीय एवं नगर योजना अधिनियम, 1966 का उल्लंघन करता है। 21 मार्च को नगर निगम ने नोटिस जारी किया जिसमें कहा गया कि 86.48 वर्ग मीटर में बना यह घर अवैध है, इसका नक्शा पास नहीं कराया गया है। नगर निगम ने कार्रवाई को लेकर कहा था कि फहीम खान को नोटिस जारी करते हुए उन्हें ढांचे को स्वयं हटाने का आदेश दिया गया था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, जिससे अब प्रशासन को खुद कार्रवाई करनी पड़ रही है।
'जानबूझकर नहीं किया गया'
हाईकोर्ट के समक्ष चौधरी ने कहा, "मैं बिना शर्त माफी मांगता हूं कि मेरी ओर से यह कोर्ट यह मानने को मजबूर हुई कि कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के फैसले के उल्लंघन में की गई।"
उन्होंने बताया कि नगर नियोजन विभाग तक को इस आदेश की जानकारी नहीं थी। चौधरी ने कहा कि "हमने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश जानबूझकर नहीं तोड़े, बल्कि जानकारी के अभाव में ऐसा हुआ। जोनल अधिकारियों तक निर्देश नहीं पहुंचे क्योंकि उन्हें कोई सरकारी सर्कुलर नहीं मिला।"
हलफनामे में नगर निगम प्रमुख ने कहा कि एनएमसी और उसके अधिकारियों ने याचिकाकर्ताओं और उनकी संपत्ति के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण इरादे से काम नहीं किया है, बल्कि मौजूदा स्थिति और स्लम अधिनियम, 1971 के वैधानिक प्रावधानों के अनुसार काम किया है।
उन्होंने कहा, जानकारी के अभाव और उस आशय के किसी परिपत्र के अभाव में, न तो सक्षम प्राधिकारी और न ही क्षेत्रीय अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन कर सके। न्यायाधीश नितिन सांबरे और न्यायाधीश वृषाली जोशी की खंडपीठ ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार से दो हफ्तों में जवाब मांगा है।