कर्नाटक में 90% बढ़ी मुस्लिमों और अनुसूचित जाति की आबादी, लिंगायत बस 8.5 फीसदी: सर्वे

इससे पहले वेंकटस्वामी आयोग ने 1984 में एक सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण किया था, जिसमें राज्य की 3.61 करोड़ आबादी के 91% लोगों को शामिल किया गया था।

Population


बेंगलुरु: कर्नाटक में अनुसूचित जातियों और मुसलमानों की जनसंख्या में 90% से अधिक की वृद्धि हुई है, जबकि वीरशैव-लिंगायतों की जनसंख्या में 1984 के बाद से एकल अंक की वृद्धि देखी गई है। इससे पहले 1984 में आखिरी बार ‘व्यापक’ सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण किया गया था।

1984 में, वीरशैव-लिंगायत समुदाय राज्य की आबादी का लगभग 17% था। नए सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण (जिसे जाति जनगणना भी कहा जा रहा है) के अनुसार, 2015 तक इनकी हिस्सेदारी 11% तक गिर गई है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पिछली सरकार में यह सर्वे (2015 में) कराया गया था। इसकी रिपोर्ट अभी तक आधिकारिक तौर पर सार्वजनकि नहीं की गई है लेकिन इसके आंकड़े पिछले कई दिनों से सामने आ रहे है।

1984 के सर्वे में चौथे स्थान पर थी मुसलमानों की संख्या

वेंकटस्वामी आयोग ने 1984 में एक सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण किया था, जिसमें राज्य की 3.61 करोड़ आबादी के 91% लोगों को शामिल किया गया। वीरशैव-लिंगायत तब पहले स्थान पर थे, उसके बाद अनुसूचित जाति और वोक्कालिगा थे। मुसलमान चौथे, फिर कुरुबा और ब्राह्मण सबसे आखिर स्थान पर थे। 

वहीं, 2015 के सर्वेक्षण में अनुसूचित जातियाँ सबसे बड़ा समूह बनकर उभरी हैं। इसके बाद मुसलमान हैं। वीरशैव-लिंगायत तीसरे स्थान पर और उसके बाद वोक्कालिगा, कुरुबा और ब्राह्मण हैं। 

नेशनल हेराल्ड की रिपोर्ट के अनुसार कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष सी एस द्वारकानाथ के अनुसार, वीरशैव-लिंगायतों को एक 'झटका' लगा है क्योंकि इनके समुदाय के सदस्यों ने उच्च आरक्षण प्राप्त करने के लिए एक अलग पहचान को प्राथमिकता दी थी।

द्वारकानाथ ने कहा, 'सदर लिंगायत हैं जो श्रेणी-3बी के अंतर्गत आते हैं, इनके पास 5% आरक्षण है। हिंदू सदर हैं जो श्रेणी-2ए के अंतर्गत आते हैं, जिसमें 15% आरक्षण है। आरक्षण की खातिर, लोगों ने लिंगायत नाम का उपयोग करने के बजाय खुद को हिंदू सदर, हिंदू गनीगा, हिंदू मदिवाला के रूप में लिखना शुरू कर दिया था, इसी कारण लिंगायत आबादी नहीं बढ़ सकी।' 

अप्रैल 1983 में रामकृष्ण हेगड़े सरकार ने वेंकटस्वामी आयोग की नियुक्ति की और इसकी रिपोर्ट मार्च 1986 में प्रस्तुत की गई थी। लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों के विरोध के बीच हेगड़े सरकार ने रिपोर्ट को खारिज कर दिया था।

2015 के सर्वे पर विवाद...रिपोर्ट सार्वजनिक करने की भी मांग

बहरहाल, यह देखना अभी बाकी है कि 2015 के सर्वेक्षण का क्या हश्र होता है। दरअसल, लिंगायत और वोक्कालिगा नेता, और यहां तक ​​कि कांग्रेस के भीतर भी, कई इसके खिलाफ हैं। उद्योग मंत्री एमबी पाटिल ने कहा, 'कैबिनेट में हम सात लिंगायत मंत्री हैं और हम सब एक साथ हैं।'

मांड्या से कांग्रेस विधायक रविकुमार गौड़ा (गनीगा) ने कहा कि वोक्कालिगा की संख्या एक करोड़ से ज़्यादा है। उन्होंने कहा, 'रिपोर्ट में कम संख्या दिखाई गई है। सुधार यह है कि रिपोर्ट सार्वजनिक होनी चाहिए ताकि लोग खुद देख सकें।'

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