बेंगलुरु: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से जुड़े मुडा (MUDA/मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण) घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने लोकायुक्त पुलिस की 'बी रिपोर्ट' पर सवाल उठाते हुए इसे विशेष जन प्रतिनिधि अदालत में चुनौती दी है। ईडी का कहना है कि यह रिपोर्ट जल्दबाजr में दाखिल की गई और उनकी जांच के तथ्यों को इसमें शामिल नहीं किया गया।
मंगलवार को अदालत में सुनवाई के दौरान ईडी के वकील ने बताया कि केंद्रीय एजेंसी ने अपनी जांच में जुटाए गए साक्ष्य लोकायुक्त पुलिस को सौंपे थे, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया। अब ईडी इस मामले में 27 दस्तावेज जमा करने की अनुमति मांग रही है, जिन्हें कोर्ट में पेश किया जाएगा।
'बी रिपोर्ट' को चुनौती देने का अधिकारः ईडी को
वकील ने दलील दी कि भले ही मूल भ्रष्टाचार मामले में लोकायुक्त ने 'बी रिपोर्ट' (क्लोजर रिपोर्ट) दाखिल कर दी हो, लेकिन ईडी एक स्वतंत्र जांच एजेंसी है और उसे इस रिपोर्ट को चुनौती देने का पूरा अधिकार है, खासकर जब मामला मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ा हो। सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपियों को आसानी से नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि ईडी इस मामले में स्वतंत्र शिकायत दायर नहीं कर सकती। अगर वह मौजूदा शिकायतकर्ताओं के समर्थन में अतिरिक्त साक्ष्य देना चाहती है, तो उसकी अनुमति दी जा सकती है। इसके बाद अदालत ने सुनवाई बुधवार तक के लिए टाल दी।
क्या है मुडा घोटाला मामला?
मुडा घोटाला लगभग 5000 करोड़ रुपये का बताया जा रहा है। इसमें मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उनकी पत्नी पार्वती के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं। आरोप है कि पार्वती को उनके भाई मल्लिकार्जुन ने मैसूर के कैसारे गांव में कुछ जमीन गिफ्ट की थी। बाद में मुडा ने इस जमीन का अधिग्रहण किया और बदले में उन्हें विजयनगर इलाके में 38,223 वर्गफीट का कीमती प्लॉट आवंटित कर दिया गया।
कहा जा रहा है कि विजयनगर के प्लॉट की कीमत कैसारे गांव की मूल जमीन से कहीं अधिक थी। इसी जमीन अदला-बदली को लेकर मुख्यमंत्री पर नियमों के उल्लंघन और भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं।