बेंगलुरु: पिछले 15 महीने में कर्नाटक में 1182 किसानों ने आत्महत्या की है और सबसे ज्यादा केस राज्य के बेलगावी, हावेरी और धारवाड़ जैसे तीन जिलों में देखने को मिला है। राज्य के राजस्व विभाग की डेटा के अनुसार, कर्नाटक में बढ़ रही किसानों की आत्महत्या के पीछे कई कारण हैं जिसमें से गंभीर सूखा, फसलों का नुकसान और भारी कर्ज प्रमुख कारक हैं।
पिछले 15 महीने में कर्नाटक के चिक्कमगलूर में 89, कलबुर्गी में 69 और यादगिरी में 68 किसानों ने आत्महत्या की है।
मु्द्दे को लेकर भाजपा ने कर्नाटक की कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा है। बीजेपी सांसद राजीव चंद्रशेखर ने किसानों की आत्महत्या के पीछे सिद्धारमैया सरकार के आर्थिक प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया है।
राजस्व विभाग के मुताबिक, राज्य के कुल 27 जिलों में से केवल छह जिले ऐसे हैं जहां पर 10 से कम किसानों ने आत्महत्या की है। वहीं बाकी 21 जिलों में 30 या फिर उससे भी अधिक किसानों की मौत हुई है।
कर्नाटक सरकार द्वारा पहले ही 236 तालुकों में से 223 को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया है। इन तालुकों में से 196 तालुकों को गंभीर सूखाग्रस्त और 27 को सूखाग्रस्त के रूप में लिस्ट किया गया है।
जानाकारों ने क्या कहा है
भारत में किसानों की आत्महत्या को लेकर शोधकर्ता रितु भारद्वाज, एन कार्तिकेयन और इरा देउलगांवकर ने कुछ राज्यों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इन लोगों ने किसान आत्महत्या और जलवायु परिवर्तन के बीच के संबंध को अध्ययन करने के लिए छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तेलंगाना के 2014-2021 के आकड़ों का अध्ययन किया है।
उनके अध्ययन से यह पता चला है कि जिन सालों में बारिश कम हुई है उन वर्षों में ज्यादा आत्महत्या के केस सामने आए हैं। शोध में यह भी पता चला है कि जिन राज्यों में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है वहां पर कपास जैसे फसलो की ज्यादा खेती होती है।
ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी खेती के लिए बीज, कीटनाशकों और कीटनाशकों में महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता होती है जिसके लिए उन्हें कर्ज लेना पड़ता और जब बारिश कम होती है तो उन्हें सही से मुनाफा नहीं होता है जिससे उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ता है।
दुनिया के सबसे अधिक जल संकट वाले क्षेत्रों में से एक कर्नाटक के कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने साल 2016 और 17 में एक नीति लाई थी। सरकार सूखा से प्रभावित किसानों को कर्ज वसूली से बचाने के लिए यह नीति लाई थी। लेकिन साल 2020 में भाजपा की सरकार ने इस नीति को वापस ले लिया था।
सरकार ने किसानों के लिए क्या कदम उठाया है
साल 2023-24 में कर्नाटक की सरकार ने 38.78 लाख किसानों को सूखा राहत प्रदान किया है और इस मुआवजे के लिए 4,047 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। यही नहीं प्रभावति किसानों के लिए सरकार ने पहली बार आजीविका के नुकसान के लिए उन्हें मुआवजा भी दिया है।
इस संबंध में राजस्व मंत्री कृष्णा बायरा गौड़ा ने कहा है कि मुआवजे के तौर पर 531 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं जिससे 17.8 लाख किसानों को फायदा हुआ है।
एक्सपर्ट की क्या राय है
जानकारों ने कहा है कि किसानों को किसी दूसरे फसलों का खेती करना चाहिए। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को किसानों को कपास, गन्ना और सुपारी जैसी ज्यादा पानी लगने वाले फसलों के बजाय बाजरा और फलियां जैसी जलवायु-अनुकूल फसलों की खेती करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए।
यही नहीं उनकी यह भी राय है कि सरकार को मनरेगा के समय को भी बढ़ाना चाहिए। उनका तर्क है कि मनरेगा के समय को बढ़ाने से किसानों को अधिक दिन के लिए काम मिलेगा और इससे उनकी रोजी-रोटी भी चलते रहेगी जिस कारण आत्महत्याओं की संख्या में काफी कमी देखने को मिलेगी।
राज्य की किसानों की मदद के लिए सरकार द्वारा मार्च 2021 में 25 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। यह फंड राज्य में फैल रही पीली पत्ती की बीमारी से निपटने के लिए उसके रिसर्च पर किया गया है।
यही नहीं कृषि मंत्रालय ने इस पत्तों में फैलने वाली बीमारी से निपटने के लिए और आगे की रणनीति को तैयार करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का भी गठन किया है।