भारत में खाना बनाने वाले गंदे ईंधन के कारण शिशुओं, छोटे बच्चे और लड़कियों की हो रही ज्यादा मौत: रिपोर्ट

इस स्टडी को जर्नल ऑफ इकोनॉमिक बिहेवियर एंड ऑर्गनाइजेशन में प्रकाशित किया गया है जिसे 25 साल के गहन अध्ययन के बाद पब्लिश किया गया है।

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more infants young children and girls die In India due to dirty cooking fuel report claims

प्रतिकात्मक फोटो (फोटो- IANS)

नई दिल्ली: भारत में खाना बनाने वाले गंदे ईंधन के कारण शिशुओं और छोटे बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, हर एक हजार में से 27 शिशु और बच्चे ऐसे हैं जिनकी खराब और गंदे ईंधन के कारण मौत हो जाती है।

साल 2023 के विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में भारत का वायु प्रदूषण सबसे खराब है। रिपोर्ट में जिन 100 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की लिस्ट जारी हुई थी उसमें से 83 शहर भारत के ही हैं। बता दें कि इन शहरों में प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों से दस गुना अधिक है।

घर के वायु प्रदूषण भी ज्यादा जिम्मेदार

कॉर्नेल के एक नए शोध में इस बात पर जोर दिया गया है कि केवल बाहर का वायु प्रदूषण ही जानलेवा नहीं है बल्कि घर में होने वाले वायु प्रदूषण भी काफी खतरनाक हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अधिकतर लोग ज्यादा से ज्यादा समय घर में बिताते हैं इसलिए घर में होने वाले वायु प्रदूषण बाहर के वायु प्रदूषण से कहीं अधिक जानलेवा हैं।

शोध में क्या दावा किया गया है

कॉर्नेल के प्रोफेसर अर्नब बसु ने कहा है कि इस शोध से यह पता चलता है कि बायोमास ईंधन के कारण शिशुओं और छोटे बच्चे कैसे प्रभावित होते हैं। इस स्टडी को जर्नल ऑफ इकोनॉमिक बिहेवियर एंड ऑर्गनाइजेशन में प्रकाशित किया गया है जिसे 25 साल के गहन अध्ययन के बाद पब्लिश किया गया है।

शोध में यह खुलासा हुआ है कि खराब खाना बनाने वाले ईंधन से एक महीने के बच्चे ज्यादा प्रभावित होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उनके फेफड़ें सही से विकसित नहीं हो पाते हैं और वे हर समय अपने मां के गोद में होते जो ज्यादा समय खाना बनाने में बिताती हैं।

लड़कों के मुकाबले लड़कियां ज्यादा प्रभावित-रिपोर्ट

यही नहीं स्टडी में यह भी पाया गया है कि भारत में लड़कों के मुकाबले लड़कियों का मृत्यु दर ज्यादा है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब भारत में लड़कियां बीमार होती है तो उनकी बीमारी को इतना महत्व नहीं दिया जाता है जबकि लड़कों के बीमार होने पर उनका तुरंत इलाज कराया जाता है।

डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी खाना पकाने के लिए बायोमास ईंधन का उपयोग करती है जिसके चलते सालाना लगभग 3.2 मिलियन (32 करोड़) लोगों की जान जाती है।

बाहरी प्रदूषण के साथ घरेलू प्रदूषण पर ध्यान देना जरूरी

प्रोफेसर अर्नब बसु ने इस बात पर भी फोकस किया है कि स्वच्छ ईंधन पर स्विच करने से शिशुओं, छोटे बच्चे और लड़कियों में होने वाले मौत को कम किया जा सकता है। बसु का कहना है कि जिस तरीके से बाहरी प्रदूषण पर जोर दिया जाता है उसी तरीके से घरेलू प्रदूषण पर भी फोकस करना बहुत ही जरूरी बन जाता है।

बसु का कहना है कि जहां फसल जलाने के खिलाफ कानून और किसानों के लिए प्रोत्साहन आवश्यक हैं, वहीं घरेलू प्रदूषण को लेकर भी कुछ अहम कदम उठाना काफी अहम हो जाता है।

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