नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गुरुवार को ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को मंजूरी दे दी। सूत्रों के हवाले से यह जानकारी सामने आई है। मौजूदा जारी शीतकालीन सत्र के बीच सरकार अगले सप्ताह इस विधेयक को चर्चा और मंजूरी के लिए संसद में पेश कर सकती है।
सूत्रों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने अपने सभी सांसदों को तीन लाइन का व्हिप जारी किया है, जिसमें उनसे कुछ महत्वपूर्ण विधायी कार्यों पर चर्चा के लिए 13 और 14 दिसंबर को सदन में उपस्थित रहने को कहा गया है।
इससे पहले बुधवार को केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ की जोरदार वकालत करते नजर आए थे। उन्होंने तर्क दिया कि बार-बार होने वाले चुनाव से देश की प्रगति में बाधाएं पैदा होती हैं।
‘लगातार चुनाव देश की प्रगति में बाधा’
कुरुक्षेत्र में चल रहे अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के तहत एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश तेजी से आगे बढ़ रहा है। शिवराज सिंह चौहान ने कहा था, ‘प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गौरवशाली, समृद्ध और शक्तिशाली भारत का निर्माण हो रहा है। जल्द ही, भारत हमारी आंखों के सामने “विश्व गुरु” बन जाएगा। इसमें कोई संदेह नहीं है और पूरी दुनिया इसे जानती है।’
चौहान ने आगे कहा, ‘लेकिन भारत की प्रगति और विकास में एक बाधा है, वह है बार-बार चुनाव होना। देश में और कुछ हो या न हो, लेकिन चुनाव की तैयारियां पूरे पांच साल में बारह महीने चलती रहती हैं।’
उन्होंने आगे कहा, ‘जब लोकसभा चुनाव खत्म हुए, तो विधानसभा चुनाव आ गए। हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र और झारखंड के हो चुके हैं। अब दिल्ली विधानसभा चुनाव आ रहे हैं।’
गौरतलब है कि ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ योजना पर आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार ने रामनाथ कोविंद समिति की रिपोर्ट को पहले ही मंजूरी दे दी है। समाचार एजेंसी IANS ने 9 दिसंबर को सूत्रों के हवाले से बताया था कि नरेंद्र मोदी सरकार अपनी ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पहल के साथ आगे बढ़ रही है और मौजूदा सत्र के दौरान संसद में एक विधेयक पेश करने की तैयारी है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए संविधान में संशोधन की जरूरत
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन के लिए कम से कम छह विधेयक लाने होंगे और सरकार को संसद में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी। एनडीए को संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में साधारण बहुमत प्राप्त है। लेकिन, सदन में दो तिहाई बहुमत प्राप्त करना केंद्र सरकार के लिए चुनौती भरा कदम है।
ऐसे में संविधान संशोधन के लिए मोदी सरकार को एनडीए से बाहर के दलों के सहयोग की भी जरूरत होगी। संविधान संशोधन के लिए सदन की सदस्य संख्या के 50 प्रतिशत के साथ ही सदन में मौजूद सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई का विधेयक के पक्ष में मतदान करना जरूरी होता है।
राज्य सभा की 245 सीटों में से एनडीए के पास 112 और विपक्षी दलों के पास 85 सीटें हैं। दो तिहाई बहुमत के लिए सरकार को कम से कम 164 वोटों की जरूरत है। वहीं अगर हम लोकसभा की बात करें तो एनडीए के पास 545 में से 292 सीटें हैं और इस सदन में दो तिहाई बहुमत का आंकड़ा 364 है।
इसके अलावा केंद्र सरकार को राज्य सरकारों तक भी पहुंचना होगा। स्थानीय निकायों के भी चुनाव एक साथ कराने को सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है कि कुल राज्यों में से कम से कम आधे राज्य संविधान में इस संशोधन पर राजी हों।
ऐसा इसलिए क्योंकि सातवीं अनुसूची के अनुसार ‘स्थानीय सरकार’ का विषय राज्य सरकार के तहत आता है। इसका मतलब ये हुआ कि इस विषय पर केवल राज्यों के पास कानून पारित करने के अधिकार हैं। ऐसे में स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान में संशोधन को लेकर अनुच्छेद 368 में कहा गया है- ‘ऐसे राज्यों वाले विषयों से जुड़े संशोधन को लागू करने के लिए देश में कम से कम आधे राज्यों की विधान सभा की भी सहमति जरूरी है।’