प्रधानमंत्री के ओहदे से 19 मार्च 1998 को मुक्त होने के बाद इंदर कुमार गुजराल 5 जनपथ के विशाल बंगले में रहने लगे। उनके स्टडी रूम में शहीद- ए-आजम भगत सिंह का एक पोट्रेट लगा हुआ था। उसे उनके चित्रकार भाई सतीश गुजराल ने बनाया था। गुजराल साहब जिधर बैठते थे वहां के ठीक सामने की दीवार पर भगत सिंह का पोट्रेट लगा था। उनसे बातचीत के दौरान भगत सिंह का जिक्र आ ही जाता था। उनके पास भगत सिंह स जुड़े दर्जनों किस्से-कहानियां थे। उन्हें वे बड़े ही विस्तार से सुनाते थे।
देखी थी भगत सिंह की अंत्येष्टि
आपको अब भी महात्मा गांधी से लेकर पंडित जवाहर लाल नेहरू की अंत्येष्टि में शामिल हुए कुछ बुजुर्ग मिल जाएंगे। लेकिन शायद ही आपको कोई इंसान मिला हो जिसने भगत सिंह की अंत्येष्टि में भाग लिया हो। आखिर 24 मार्च, 1931 को गुजरे हुए अब एक लंबा अरसा हो रहा है। भगत सिंह को उनके दोनों साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ 23 मार्च, 1931 को लाहौर में फांसी पर लटका दिया गया था।
उसके बाद उनका 24 मार्च,1931 को अंतिम संस्कार किया गया। उस वक्त रात का अंधेरा घना था। भगत सिंह की चिता को सतलज नदी के करीब जलते हुए देखा था गुजराल साहब ने। वे तब 12-13 साल के थे। वे अपने माता-पिता और कुछ पड़ोसियों के साथ लाहौर से बसों में भगत सिंह की अंत्येष्टि में शामिल होने के लिए गए थे। उनके साथ स्वाधीनता सेनानी सत्यावती भी थीं। वो पूर्व उपराष्ट्रपति कृष्णकांत की मां थीं।
आपके सामने आंसू बहाता प्रधानमंत्री
जब भगत सिंह को फांसी हुई थी तब आज की तरह न तो खबरिया चैनल थे और न ही एक्स। ले-देकर अखबारों से लोग अपनी खबरों की प्यास बुझाते थे। पर जनता को मालूम चल गया था कि गोरी ब्रिटिश सरकार ने भगत सिंह को फांसी पर लटका दिया है और उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया है। भगत सिंह तब तक देश के नायक बन चुके थे। देश चाहता था कि उन्हें फांसी न हो। ये सब बातें साल 2006 में गुजराल साहब ने इस नाचीज लेखक को अपने 6, जनपथ स्थित बंगले में एक बातचीत के दौरान बताई थीं।
भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी पर लटकाए जाने के चलते पंजाब समेत सारे देश में गुस्सा था। अवाम गोरी सरकार से सख्त खफा था। “मेरे पिता श्री अवतार नारायण गुजराल को मालूम चला कि भगत सिंह को फांसी पर लटकाने के बाद उनका अंतिम संस्कार भी कर दिया गया है, तो वे अंत्येष्टि स्थल पर जाने के लिए तैयार होने लगे। वे लाहौर के मशहूर सामाजिक-राजनीतिक हस्ती थे। तब हमारे तक हमारे घर कई पड़ोसी भी उनके साथ अंत्येष्टि स्थल पर जाने के लिए गुजारिश करने लगे। मैं हालांकि तब बहुत छोटा था, तो भी पिता जी मुझे भगत सिंह की अंत्येष्टि में ले जाने के लिए तैयार थे। मैं भी उनके साथ अंत्येष्टि स्थल के लिए निकला। हमें अंत्येष्टि स्थल पर पहुंचने में करीब पौना घंटा लगा। मेरा छोटा भाई सतीश गुजराल घर में ही रहा। हमारा घर लाहौर के मोजांग नाम की कॉलोनी में था। हम जब वहां पर पहुंचे तो पहले से ही काफी लोग उधर पहुंच चुके थे। भगत सिंह की चिता ठंडी पड़ रही थी। दिन था 25 मार्च,1931।”
गुजराल साहब उस मंजर को याद करते हुए भावुक होने लगे। उनकी आंखें भीगने लगी थीं। वे अपने रूमाल से आंखों से बहने वाली अविरल धारा को पोंछ रहे थे। जाहिर है कि मेरी भी आंखें नम हो चुकी थीं।
गुजराल साहब का मंटो और दुल्ला भट्टी से क्या रिश्ता
अब आगे बढ़ने से पहले गुजराल साहब के लाहौर के मोजांग के घर का एक खास संदर्भ में उल्लेख जरूरी है। लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की बात ना हो यह नहीं हो सकता। लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी अवश्य सुनाई जाती है। कहते हैं कि मुगल काल में अकबर के समय में दुल्ला भट्टी मौजूदा पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब के शहर लायलपुर (अब फैसलाबाद) में रहता था। उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचने लगे थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी। इन लड़कियों में हिन्दू लड़कियां भी थीं। तब से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी को याद किया जाता है।
दुल्ला भट्टी को अकबर के दौर में फांसी पर लटका दिया गया था। उसका कसूर था अन्याय़ के खिलाफ बोलना। यह बात अकबर के दरबारियों को रास नहीं आई और दुल्ला भट्टी को बेबुनियाद आरोपों के आधार पर फांसी की सजा दे दी गई। वह मूल रूप से राजपूत मुस्लिम परिवार से था। उसका मकबरा लाहौर के ताऱीखी म्यानी साहब कब्रिस्तान में है। उसके पास ही लेखक मंटो भी चिर निद्रा में है। यह कब्रिस्तान मोजांग इलाके में है। मोजांग में ही गुजराल साहब रहे देश के बंटवारे से पहले।
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चिता के आगे बिलखते लोग
गुजराल साहब को याद था कि किस तरह से सैकड़ों लोग चिता के पास बिलख-बिलख कर रो रहे थे। “ भगत सिंह, राज गुरु और सुखदेव के शवों को गोरी सरकार ने उनके परिवारों को नहीं सौपा था। उनका पोस्ट मार्टम करवाने से पहले ही अपने आप स्तर पर अंत्येष्टि कर दी।” दरअसल सरकार को डर था कि क्रांतिकारियों के शव उनके परिवारों को सौंपे तो देश में आग लग जाएगी।
गुजराल साहब का यह भी कहना था कि इन तीनों शहीदों को फांसी पर लटकाने के बाद इनके शवों पर गोलियां भी मारी गईं थीं। यानी गोरी सरकार ने बर्बरता की सारी हदों को लांघा था। उसके कई दिनों तक गुजराल साहब के घर में चूल्हा नहीं जला था। सारे देश में मातम पसर गया था। किसी को खाना खाने की सुध नहीं थी।
गुजराल साहब जब भगत सिंह के अंतिम संस्कार से जुड़ी यादें साझा कर रहे थे तब उनकी पत्नी शीला गुजराल भी वहां आकर बैठ गईं। उन्होंने जाहिर है कि इन सब बातों को अपने पति से सुना ही होगा। शीला जी प्रतिष्ठित लेखिका, कवयित्री और समाज सेविका थीं। उन्होंने पंजाबी और हिंदी में कई कविताएँ और लेख लिखे। उनकी रचनाएँ अक्सर सामाजिक मुद्दों, महिलाओं के अधिकारों और मानवीय मूल्यों पर केंद्रित होती थीं। भगत सिंह से जुड़ी बातों के बाद गुजराल साहब ने चाय मंगवा ली। उस दौरान शीला गुजराल भी बैठी रहीं।
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जब गुजराल, 9 मोतीलाल नेहरू मार्ग
इंदिरा गांधी की सरकार में सूचना और प्रसारण मंत्री के पद पर रहते हुए गुजराल साहब 9, मोती लाल नेहरू मार्ग के बंगले में भी रहे थे। इधर अलग-अलग समय में देश के तीन भावी प्रधानमंत्री रहे। सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू, फिर नरसिंह राव और ओर अंत में गुजराल साहब। नेहरू को यह बंगला तब अलॉट हुआ था जब वे 1946 में बनी अंतरिम सरकार के मुखिया थे। उस दौर में इस जगह को यार्क रोड कहा जाता था। कहते हैं, वास्तु शास्त्र के लिहाज से यह बेहतरीन बंगला है।
कॉफी हाउस में गुजराल साहब
गुजराल साहब के साथ गुफ्तगू करते हुए लगता ही नहीं था कि आप किसी पूर्व प्रधानमंत्री के साथ बैठकर बातें कर रहे हैं। वे कनॉट प्लेस के कॉफी हाउस की भी बातें करना पसंद करते थे। वे कनॉट प्लेस के कॉफी हाउस में तब से आ रहे थे जब ये वहां होता था जिधर अब पालिका बाजार आबाद है। वे बताते थे कि कॉफी हाउस में उनके प्रिय मित्रों में श्रमिक नेता सरदार जे.एस.दारा थे। वे प्रख्यात कथाकार विष्णु प्रभाकर की टेबल पर आ जाते थे।
गुजराल साहब कॉफी हाउस में समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया से लेकर ब्रजमोहन तूफान के साथ बैठे। वे कहते है कि लोहिया जी का भारत के समाजवादी आंदोलन में उनका बहुत ऊँचा मुकाम रहा। इसी तरह से तूफान साहब हिन्द मजदूर सभा के कद्दावर नेता थे। उनके एक आह्वान पर हजारों रेल मजदूर सड़कों पर उतर आते थे। इमरजेंसी के बाद कनॉट प्लेस का कॉफी तोड़ दिया गया। उसके बाद कॉफी हाउस मोहन सिंह प्लेस में शिफ्ट हो गया।
गुजराल साहब बताते थे कि वे कुछ सालों तक मोहन सिंह प्लेस के कॉफी हाउस में भी भी जाते रहे। गुजराल साहब का निधन 5 जनपथ वाले बंगले में 30 नवंबर को हुआ था। आजकल 5 जनपथ में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल रह रहे हैं।