मेधा पाटकर। फोटोः IANS
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नई दिल्लीः नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की नेता व सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को सोमवार दिल्ली के साकेत जिला न्यायालय ने 5 महीने कैद की सजा सुनाई। दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था। दो दशक पुरानी इस लड़ाई में अदालत ने 23 साल बाद (24 मई 2024) पाटकर को दोषी ठहराया। वहीं 7 जून की सुनवाई में फैसले को सुरक्षित रख लिया था।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट राघव शर्मा ने पाटकर को मानहानि का दोषी पाया और उन्हें सक्सेना की प्रतिष्ठा को हुए नुकसान के लिए मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया। हालांकि, अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389 (3) के तहत उनकी सजा को 1 अगस्त तक के लिए निलंबित कर दिया ताकि वह आदेश के खिलाफ अपील कर सकें।
दो दशक से ज्यादा पुराने इस आपराधिक मानहानि मामले में अदालत ने पाटकर को भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 500 के तहत आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराया था। सक्सेेना की ओर मांग की गई थी कि,"पाटकर को रोकने और समाज में एक उदाहरण स्थापित करने के लिए उन्हें अधिकतम सजा दी जानी चाहिए, ताकि दूसरे लोग देश के विकास में बाधा डालने वाले कृत्यों में शामिल होने से परहेज करें।"
अदालत के फैसले को चुनौती देंगी मेधा पाटकर
पाटकर को परिवीक्षा की शर्त पर रिहा करने की उनकी प्रार्थना को सोमवार (1 जुलाई) को खारिज करते हुए न्यायाधीश ने कहा, "तथ्यों...नुकसान, उम्र और (आरोपी की) बीमारी को देखते हुए, मैं अत्यधिक सजा देने के पक्ष में नहीं हूं।" कोर्ट के आदेश पर प्रतिक्रिया देते हुए पाटकर ने कहा, "सत्य को कभी पराजित नहीं किया जा सकता। हमने किसी को बदनाम करने की कोशिश नहीं की, हम केवल अपना काम करते हैं...हम कोर्ट के फैसले को चुनौती देंगे।"
क्या है मानहानि का पूरा मामला
पाटकर और सक्सेना के बीच 2000 से कानूनी लड़ाई चल रही है, जब पाटकर ने उनके और नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) के खिलाफ विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया था। मामला जनवरी 2001 का है, जब वीके सक्सेना ने आरोप लगाया था कि पाटकर ने 25 नवंबर, 2000 को "देशभक्तों का सच्चा चेहरा" शीर्षक से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की, जिसमें उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से झूठे आरोप लगाए गए थे। उस समय सक्सेना अहमदाबाद स्थित एनजीओ के प्रमुख थे।
पाटकर के मुकदमे के जवाब में वीके सक्सेना ने भी उनके खिलाफ दो मानहानि के मामले दायर किए। एक उनके बारे में की गई अपमानजनक टिप्पणी को लेकर और प्रकाशित विज्ञप्ति को लेकर। विज्ञप्ति में कहा गया था- हवाला लेनदेन से आहत वीके सक्सेना खुद मालेगांव आए, एनबीए की प्रशंसा की और 40 हजार रुपये का चेक दिया। इसके लिए सक्सेना को रशीद भी दी गई। लेकिन चेक भुनाया नहीं जा सका क्योंकि वह बाउंस हो गया। जांच में पता चला कि बैंक में वह खाता मौजूद ही नहीं है। इस पर मेधा पाटकर ने वीके सक्सेना को ‘कायर हैं, देशभक्त नहीं’ कहा था।
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वीके सक्सेना द्वारा 2001 में शिकायत दर्ज करने के बाद, अहमदाबाद की एक एमएम अदालत ने आईपीसी की धारा 500 के तहत अपराध का संज्ञान लिया और पाटकर के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 204 के तहत प्रक्रिया जारी की। 3 फरवरी, 2003 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दिल्ली में सीएमएम कोर्ट को शिकायत प्राप्त हुई। 2011 में पाटकर ने खुद को निर्दोष बताया और मुकदमे का दावा किया।
24 मई को मेधा पाटकर को दोषी ठहराते हुए अदालत ने कहा था कि “सार्वजनिक जीवन में ऐसे आरोप काफी गंभीर होते हैं। किसी के साहस और राष्ट्रीय निष्ठा पर सवाल उठाने से उनकी सार्वजनिक छवि और सामाजिक प्रतिष्ठा को नुकसान हो सकता है।” अदालत ने कहा था कि ये शब्द न केवल भड़काऊ थे बल्कि इनका उद्देश्य सार्वजनिक आक्रोश भड़काना और लोगों की नजरों में शिकायतकर्ता के नाम को खराब करना था।