नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को गिरफ्तार कर लिया। दो दिन पहले दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना द्वारा उनके खिलाफ दायर 24 साल पुराने मानहानि के मामले में प्रोबेशन बॉन्ड जमा न करने के लिए अदालत ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) जारी किया था।
साकेत कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एएसजे) विशाल सिंह ने 23 अप्रैल को अपने आदेश में कहा था, 'अगली तारीख पर, अगर दोषी 08/04/2025 के सजा के आदेश की शर्तों (व्यक्तिगत रूप से प्रोबेशन बॉन्ड जमा करना) का पालन करने में विफल रहता है, तो अदालत दी गई उदार सजा पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य होगी और सजा के आदेश को बदलना होगा।'
निजामुद्दीन में मौजूद आवास से मेधा पाटकर की गिरफ्तारी
शुक्रवार को पुलिस अधिकारियों की एक टीम सुबह निजामुद्दीन स्थित मेधा पाटेकर के आवास पर पहुंची और उन्हें हिरासत में ले लिया। बाद में दक्षिण पूर्व के पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) रवि कुमार सिंह ने कहा, 'हमने गैर जमानती वारंट का इस्तेमाल कर दिया है और मेधा पाटकर को गिरफ्तार कर लिया गया है।'
पाटकर को दोपहर में साकेत कोर्ट में पेश किए जाने की संभावना है। एक सूत्र ने बताया कि चूंकि एएसजे सिंह छुट्टी पर हैं, इसलिए उन्हें लिंक जज के समक्ष पेश किया जाएगा।
8 अप्रैल को एएसजे सिंह ने इस मामले में कार्यकर्ता को एक साल का प्रोबेशन दिया था। इसमें कहा गया था कि नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की नेता पाटकर को उनके काम के लिए पुरस्कार मिले थे और अपराध इतना गंभीर नहीं था कि उन्हें कारावास की सजा दी जाए। उन्हें 23 अप्रैल तक प्रोबेशन बांड भरने का निर्देश दिया गया था।
इससे पहले, अदालत ने साल 2000 में दायर मानहानि मामले में पाटकर की दोषसिद्धि के खिलाफ उनकी अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर एलजी सक्सेना को 'कायर' कहा था और आरोप लगाया था कि हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता है। एलजी सक्सेन उस समय गुजरात में एक एनजीओ के प्रमुख थे।
पिछले साल मानहानि मामले में आया था फैसला
पिछले साल 24 मई, 2024 को एक मजिस्ट्रेट अदालत ने पाटकर के बयानों को मानहानिकारक माना था और 1 जुलाई को उन्हें पांच महीने की जेल की सजा सुनाई थी। हालांकि, एएसजे सिंह ने सजा को निलंबित कर दिया था और पिछले साल 29 जुलाई को उन्हें जमानत दे दी थी।
मानहानि का मामला 25 नवंबर, 2000 को पाटकर द्वारा दिये गए किए गए एक बयान से जुड़ा है। एलजी सक्सेना के एनजीओ ने गुजरात सरकार की सरदार सरोवर परियोजना का सक्रिय रूप से समर्थन किया था, जबकि एनबीए इसके विरोध में आंदोलन चला रहा था।
इस दौरान प्रेस बयान में पाटकर ने आरोप लगाया था कि सक्सेना, जो उस समय एनजीओ नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के अध्यक्ष थे, वे एनबीए का गुप्त रूप से समर्थन कर रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि उन्होंने एनबीए को एक चेक दिया था जो बाउंस हो गया था।