मुंबईः महाराष्ट्र सरकार ने रविवार को तीन-भाषा नीति से जुड़े दो सरकारी प्रस्तावों (GR) को वापस ले लिया। ये प्रस्ताव 16 अप्रैल और 17 जून को जारी किए गए थे। विपक्षी दलों के कड़े विरोध के बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने मुंबई में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह फैसला घोषित किया।
सीएम फड़नवीस ने बताया कि प्राथमिक शिक्षा में तीन-भाषा नीति की समीक्षा के लिए सरकार ने डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की है, जो सभी हितधारकों से परामर्श के बाद अपनी सिफारिशें देगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि समिति की रिपोर्ट आने के बाद सरकार उसकी सिफारिशों को स्वीकार करेगी।
मुख्यमंत्री ने शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर निशाना साधते हुए कहा कि जब ठाकरे मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने मस हेलकर समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया था, जिसमें कक्षा 1 से मराठी, हिंदी और अंग्रेजी- तीनों भाषाओं को लागू करने की बात थी।
VIDEO | Hindi language row: Addressing a press conference in Mumbai on the eve of monsoon session of state legislature, Maharashtra CM Devendra Fadnavis (@Dev_Fadnavis) says, "When Uddhav Thackeray was the Chief Minister, he had accepted the Mashelkar panel's suggestions on… pic.twitter.com/Eoysgw1Ztb
— Press Trust of India (@PTI_News) June 29, 2025
मुख्यमंत्री फड़नवीस ने कहा, "आज उद्धव ठाकरे सरकार के तीन-भाषा प्रस्ताव की प्रति जलाकर विरोध कर रहे हैं, लेकिन सच यह है कि उन्होंने खुद अपने कार्यकाल में इसी नीति को मंजूरी दी थी। उनकी कैबिनेट ने मस हेलकर समिति की रिपोर्ट को स्वीकार किया था। अब वे केवल राजनीति कर रहे हैं।" फड़नवीस ने यह भी दोहराया कि मराठी भाषा अनिवार्य रहेगी। उन्होंने कहा, वे हिंदी का विरोध कर रहे हैं लेकिन अंग्रेजी को स्वीकार कर लिया है। यह विरोध केवल दिखावा है।
महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि राज्य सरकार ने तीन भाषा नीति के कार्यान्वयन से संबंधित 2 सरकारी संकल्प वापस ले लिए हैं और डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता वाली नई समिति इसका अध्ययन करेगी और रिपोर्ट पेश करेगी। शिंदे ने कहा कि जो लोग हमारे खिलाफ आरोप लगा रहे हैं, जब वे सत्ता में थे तो उन्होंने तीन भाषाओं- मराठी, अंग्रेजी और हिंदी की शिक्षा को अनिवार्य कर दिया था। अब वे अलग प्रतिक्रिया दे रहे हैं।
महाराष्ट्र सरकार ने सरकारी स्कूलों में पहली से पांचवी कक्षा तक के लिए हिंदी को तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में लागू करने की पहल की है। इस आदेश का राज्य में विपक्षी पार्टियों द्वारा भारी विरोध हो रहा है। विपक्ष ने इस फैसले को 'हिंदी थोपने' की कोशिश बताया। शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और मनसे प्रमुख राज ठाकरे भी इस मुद्दे पर साथ आ गए हैं। राज ठाकरे ने सरकार के फैसला वापस न लेने की स्थिति में जनआंदोलन की धमकी दी थी।
उद्धव ठाकरे ने रविवार कहा कि कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेज़ी के साथ हिंदी को अनिवार्य करना स्वीकार नहीं किया जाएगा। ठाकरे ने कहा, “अगर हिंदी का विरोध होता, तो हिंदी सिनेमा कभी महाराष्ट्र और मुंबई में नहीं फलता-फूलता। लेकिन हिंदी को जबरन थोपने की ज़रूरत नहीं है। एक दिशा, एक आदेश, एक नेता- यह एक तानाशाही की ओर बढ़ता कदम है। हम इस भाषायी आपातकाल का विरोध करेंगे। जो शिवसेना में गद्दारी कर बैठे हैं, उनके लिए यह समय है कि वे बाला साहेब के विचारों को मराठी में अभिव्यक्त करें।”
ठाकरे अपने बेटे आदित्य ठाकरे, सांसद अरविंद सावंत और पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ उस सरकारी प्रस्ताव की प्रतीकात्मक प्रति जलाने पहुँचे, जिसमें हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में शामिल करने की बात थी।
इसके बाद उन्होंने त्रिभाषा सूत्र विरोधी समन्वय समिति की बैठक में हिस्सा लिया। उन्होंने कहा, “हम किसी पर दबाव नहीं बनाना चाहते, लेकिन हम हिंदी थोपे जाने को स्वीकार नहीं करते। हमने अपने स्तर पर यह मुद्दा खत्म कर दिया है। हमने सरकारी प्रस्ताव को जला दिया है, अब यह मानने का कोई कारण नहीं है कि ऐसा कोई प्रस्ताव अस्तित्व में है।”
ठाकरे ने दोहराया, “हम हिंदी के विरोधी नहीं हैं, लेकिन उसे थोपने की इजाज़त नहीं देंगे।” उन्होंने यह भी संकेत दिया कि 5 जुलाई को आयोजित होने वाले राज ठाकरे के विरोध मार्च में वे शामिल होंगे, ताकि मराठी भाषा की अस्मिता को लेकर एकजुटता प्रदर्शित की जा सके।