महाकुंभः संगम का पानी नहाने योग्य नहीं, फेकल कोलीफॉर्म की अत्यधिक मात्राः CPCB रिपोर्ट

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि नदी के जल की गुणवत्ता कई स्थानों पर स्नान के लिए निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई है। विशेष रूप से फेकल कोलीफॉर्म (Fecal Coliform) की अत्यधिक मात्रा के कारण जल स्नान योग्य नहीं रहा।

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महाकुंभ में स्नान के लिए अनुपयुक्त गंगा जल। Photograph: (IANS)

लखनऊः उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में जारी महाकुंभ मेले के दौरान गंगा और यमुना नदी के जल की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) को अपनी रिपोर्ट में बताया कि इन नदियों के जल में अत्यधिक मात्रा में बैक्टीरिया पाए गए हैं, जो आमतौर पर मानव और पशु मल में मौजूद होते हैं। यह रिपोर्ट 3 फरवरी को एनजीटी को सौंपी गई थी, जिसे 17 फरवरी को अधिकरण ने संज्ञान में लिया।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि नदी के जल की गुणवत्ता कई स्थानों पर स्नान के लिए निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं पाई गई है। विशेष रूप से फेकल कोलीफॉर्म (Fecal Coliform) की अत्यधिक मात्रा के कारण जल स्नान योग्य नहीं रहा।

फेकल कोलीफॉर्म की उच्च मात्रा

रिपोर्ट में कहा गया है कि महाकुंभ मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु गंगा और यमुना में स्नान कर रहे हैं। इस वजह से जल में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। यह बैक्टीरिया मुख्य रूप से मानव और पशु मल से संबंधित होते हैं और इनकी अधिक मात्रा का अर्थ है कि नदी के जल में मलजल का सीधा मिश्रण हो रहा है।

सीपीसीबी के मानकों के अनुसार, स्नान के लिए जल में फेकल कोलीफॉर्म की अधिकतम स्वीकार्य सीमा 2,500 यूनिट प्रति 100 मिलीलीटर होनी चाहिए, लेकिन प्रयागराज में कई स्थानों पर इसकी मात्रा इस सीमा से अधिक पाई गई। इसका सीधा असर श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है, क्योंकि ऐसे जल में स्नान करने से जलजनित बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD) का बढ़ना

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 12 और 13 जनवरी को गंगा और यमुना के अधिकांश स्थानों पर जल की गुणवत्ता BOD (Biochemical Oxygen Demand) मानकों के अनुरूप नहीं थी। जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग जल में मौजूद कार्बनिक पदार्थों के अपघटन की प्रक्रिया में उपयोग होने वाली ऑक्सीजन की मात्रा को दर्शाता है। यदि बीओडी का स्तर अधिक होता है, तो इसका मतलब होता है कि जल में प्रदूषण अधिक है।

हालांकि, 13 जनवरी के बाद अपस्ट्रीम से ताजा जल आने के कारण जैविक प्रदूषण में कुछ हद तक कमी देखी गई। इसके बावजूद 19 जनवरी को प्रयागराज के लॉर्ड कर्ज़न ब्रिज क्षेत्र में जल की गुणवत्ता अब भी स्नान के लिए उपयुक्त नहीं पाई गई।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) की लापरवाही

NGT ने इस मामले में उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए हैं। अधिकरण ने पाया कि UPPCB ने 23 दिसंबर को दिए गए निर्देशों का पालन नहीं किया और गंगा और यमुना के जल में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के लिए उठाए गए कदमों पर कोई विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की।

बोर्ड ने केवल एक कवर लेटर के साथ कुछ जल परीक्षण रिपोर्ट्स प्रस्तुत कीं, जिन्हें एनजीटी ने अपर्याप्त माना। अधिकरण ने 28 जनवरी, 2025 को UPPCB द्वारा भेजी गई रिपोर्ट की समीक्षा की, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि प्रयागराज में कई स्थानों पर जल में फीकल और टोटल कोलीफॉर्म की अत्यधिक मात्रा पाई गई।

प्रयागराज में भारी भीड़ और जल प्रदूषण का बढ़ता खतरा

मेला प्रशासन के अनुसार, 13 जनवरी से अब तक 54.31 करोड़ से अधिक श्रद्धालु गंगा और यमुना में स्नान कर चुके हैं। अकेले सोमवार को रात 8 बजे तक 1.35 करोड़ से अधिक श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में पवित्र डुबकी लगा चुके थे।

श्रद्धालुओं की इतनी बड़ी संख्या के कारण जल की गुणवत्ता को बनाए रखना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। मेले के दौरान अपार भीड़ के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है, और यदि उचित कदम नहीं उठाए गए तो यह श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकता है।

एनजीटी ने इस मामले में 19 फरवरी को अगली सुनवाई निर्धारित की है। उत्तर प्रदेश सरकार ने जल प्रदूषण की स्थिति पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए एक दिन का अतिरिक्त समय मांगा है।

ट्रिब्यूनल ने कहा, "सदस्य सचिव, यूपीपीसीबी और प्रयागराज में गंगा नदी में पानी की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार संबंधित राज्य प्राधिकरण को 19 फरवरी को होने वाली अगली सुनवाई में वर्चुअल रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है।"

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