लखनऊः उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में करीब 100 साल पुराना एक नाला बंद करने से किसानों और ग्रामीणों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। किसानों की कई फसल जहां हर साल जलभराव की समस्या से खराब हो रही है तो वहीं ग्रामीणों के घरों में पानी भरने से भी लोग परेशान हैं।
राजधानी लखनऊ से करीब 18 किलोमीटर दूर स्थित सिकंदर पुर अमोलिया ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांव कुंवर बहादुर खेड़ा में एक पुराना नाला है, जिसमें पीछे से करीब 10-15 गांवों से पानी आता है। इस नाले की जल निकासी निजी प्रॉपर्टी डीलरों द्वारा बंद कर दी गई जिससे गांव में पानी भर रहा है और ग्रामीण किसान परेशान हैं। ग्रामीणों ने बोले भारत से बताया कि यह नाला करीब 100 साल से भी अधिक पुराना है और सिंचाई विभाग समय-समय पर इसकी सफाई करता रहा है। गांव में 1977-80 के बीच एक स्थानीय विधायक संत बक्स रावत द्वारा एक पुलिया का भी निर्माण कराया गया था जो कि आज भी मौजूद है।
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3-4 सालों से फसल पूरी तरह हो रही बर्बाद
किसानों ने बताया कि पानी की निकासी बंद किए जाने से बीते 3-4 सालों से फसल पूरी तरह बर्बाद हो रही है और उन्हें नुकसान झेलना पड़ रहा है। कई किसानों ने बताया कि धान की फसल तो पूरी तरह से लगातार बर्बाद हो रही है जिससे खाने के अनाज का भी संकट होता है क्योंकि इसे लगाने में काफी मेहनत और धन लगता है लेकिन फसल नहीं हो पाती है।
ग्रामीणों ने बताया कि इस नाले में करीब 10-15 गांवो का पानी आता है और आगे निकासी बंद होने की वजह से सब पानी गांव में भर जाता है। किसानों के मुताबिक, यहां पर बरौना, राजा खेड़ा, माई जी का पुरवा, बुद्धु खेड़ा, सिकंदर पुर, सिकंदर पुर का पुरवा और अन्य गांवों का पानी आता है।
किसानों और ग्रामीणों को समस्याएं तो हो ही रही हैं। इससे जलीय जीव-जंतुओं के घरों में आने का खतरा भी बना रहता है।
इसके अलावा गांव के कई घरों में पानी भी भर जाता है जिससे लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। घरों में पानी भरने से ग्रामीणों के घरों में सांप और अन्य जलीय जीव आने का खतरा बना रहता है। इसके साथ ही मवेशियों के लिए भी बड़ी समस्या होती है। घर के बच्चों के लिए भी खतरा बना रहता है। ऐसे में किसान दोहरी मार झेल रहे हैं।
बोले भारत से बातचीत में ग्रामीण किसानों ने क्या बताया?
किसानों और ग्रामीण लोगों ने बोले भारत से इस विषय में हुई बातचीत में क्या कुछ बताया? इसके बारे में जानेंगे, उन्हें किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है? हर साल कितने रुपयों का नुकसान हो रहा है, क्या कुछ मदद मिली, प्रशासन ने क्या किया? इस रिपोर्ट में जानने का प्रयास करेंगे।
मेजर नाम के युवा किसान ने बताया कि बीते 4 सालों से लगातार यह समस्या बनी हुई है। इससे गांव के अन्य किसानों की फसल बर्बाद हो रही है। फसल बर्बादी के साथ-साथ गांव में भी जलभराव की समस्या हो रही है। गांव में बना करीब 100 से पुराना नाला बंद करने की वजह से ये समस्या हो रही है। सरकार ने कई बार इस नाले की सफाई भी करवाई है। किसान ने बताया कि खेतों में पूरी तरह से पानी भरा हुआ है जिसकी वजह से धान का एक भी पौधा नहीं दिखाई दे रहा है। हमारे पास करीब 1.5 बीघा खेत है। धान की फसल करने में प्रति बीघे करीब 10-12 हजार रुपये लगते हैं। आसपास के किसानों को भी समस्या हो रही है। गांव के घरों में पानी भर जाने के बाद ग्रामीणों ने खुद से खुदाई की जिससे कुछ हद तक पानी घरों से निकल सका। हालांकि खेतों में भरा हुआ है।
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निर्देश कुमार नाम के एक किसान ने बताया कि गांव में निजी प्लॉटिंग की शुरुआत के बाद से नाला बंद कर दिया गया जिससे फसल बर्बाद हो रही है। करीब 15-20 किसान इससे प्रभावित हैं और खेतों में पानी भर जाता है। इसके साथ ही गांव के कई घर भी पानी की चपेट में आ जाते हैं। इससे जानवरों, बच्चों और सभी को समस्या होती है। किसान इससे बुरी तरह प्रभावित हैं क्योंकि उनकी फसल अधिक पानी की वजह से डूब जाती है। उन्होंने बताया कि मेरी तीन बीघे खेती है जो लगातार 3-4 सालों से बर्बाद हो जा रही है। उन्होंने बताया कि प्रति बीघे धान रोपने की लागत करीब 10 हजार रुपये आती है, इस हिसाब से 30 हजार रुपये इस साल लगे हैं। धान के साथ-साथ गेहूं की फसल में भी किसानों को समस्या उठानी पड़ती है क्योंकि खेतों में पानी भरा रहने से गेहूं की बुआई से देरी से हो पाती है जिससे गेहूं हल्का हो जाता है। धान तो पूरी तरह से बर्बाद हो जाता है। प्लॉटिंग की शुरुआत से पहले नाला सीधा-सीधा बना था लेकिन इसे बंद कर दिया गया। उन्होंने बताया कि सबूत के तौर पर जल निकासी के लिए पाइपें (सीमेंट की बनी पंपी) बनी हैं और पुलिया भी बनी है फिर न तो स्थानीय स्तर पर न ही विधायक, एसडीएम, डीएम ने कोई कार्रवाई की है। कोई इस पर संज्ञान नहीं लेता है। सरकार ने नाले की सफाई भी की है। उन्होंने कहा कि प्रशासन को इसके लिए कुछ कदम उठाए गए हैं।
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अवनीश कुमार नाम के किसान ने बताया कि लगातार 3 सालों से धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो रही है और इस बार भी करीब 25-30 दिनों से पानी भरा हुआ है। खेतों में धान का एक भी पौधा नहीं दिख रहा है। खेत के बगल में एक गलियारा है, वह भी पूरी तरह से जलमग्न हो गया है। ऐसे में मवेशियों को रोजाना चारा देने के लिए पानी में होकर जाना पड़ता है। उन्होंने बताया कि रोजाना जानवरों तक पहुंचने के लिए कमर तक पानी में होकर जाना पड़ता है।
फसल लगाने का पैसा बर्बाद, अनाज खरीदकर खाने को मजबूर
इसी तरह की शिकायत विनय कुमार नाम के किसान ने भी बताई है। उन्होंने बताया भारी बारिश के चलते जलभराव की समस्या होने की वजह से फसल को काफी नुकसान होता है। बीते 3-4 साल से समस्या ज्यादा है। फसल की लागत में पैसे लगते हैं लेकिन कुछ नहीं मिलता है। उन्होंने बताया कि मेरी एक बीघे की फसल है। धान की फसल पूरी बर्बाद हो गई है, जबकि गेहूं की फसल में भी समस्या होती है। उन्होंने बताया कि धान की फसल लगाने में करीब 10 हजार रुपये लगे हैं और फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई है। इससे आर्थिक रूप से समस्या का सामना करना पड़ता है और फसल भी नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि फसल लगाने में पैसा भी लग रहा है फिर भी खाने के लिए अनाज खरीदना पड़ता है।
गांव के रहने वाले चंद्रेश कुमार ने बताया कि जलभराव की समस्या 4-5 सालों से हो रही है। इस साल घर में भी पानी घुस गया है। मेरे घर के आसपास के घरों और घर के पीछे अभी भी पानी भरा हुआ है। आसपास पानी भरा होने की वजह से सांप, बिच्छू और अन्य जलीय जंतु आते हैं जिससे बहुत परेशानी होती है खासकर बच्चों और मवेशियों को। पानी भरने से आवाजाही की भी समस्या हो जाती है। वहीं, जानवरों को उनके स्थान से हटाकर अन्य जगहों पर ले जाना पड़ता है। नाले से पानी की निकासी बंद होने की वजह से यह समस्या लगातार बनी हुई है। लोगों को इससे बहुत समस्या हो रही है और प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिल रही है। घरों में पानी भर जाने के बाद हम लोगों ने मिलकर आगे नाले की खुदाई की जिससे पानी कुछ हद तक कम हुआ।
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शशांक जलभराव की समस्या को लेकर कहते हैं कि बीते 25 दिनों से खेतों में पानी भरा हुआ है और यह समस्या बीते कई सालों से देखी जा रही है। नाला बंद करने की वजह से पानी खेतों और यहां तक कि गांव में भी भर जा रहा है। खेतों में पानी भरने से लगभग आधे गांव की फसल बर्बादी की कगार पर है। उन्होंने बताया कि मेरी 2 बीघे के करीब फसल है जिसकी लागत करीब 15 हजार रुपये के करीब लगी है। कई बार शिकायत हुई है लेकिन सुनवाई नहीं हुई है।
एक और किसान संदीप ने बताया कि बीते कई सालों से फसल पूरी तरह से बर्बाद हो जाने के कारण इस बार उन्होंने फसल नहीं लगाई है। उन्होंने बताया कि फसल बर्बाद हो जाती है जिससे आर्थिक रूप से भी नुकसान होता है और अनाज फिर भी खरीदना पड़ता है। ऐसे में इस साल फसल न लगाने का फैसला किया है।