कांग्रेस की ओर से अमेठी और रायबरेली में इस बार कौन लोकसभा चुनाव-2024 के लिए मैदान में होगा, इसे लेकर आखिरकार सस्पेंस खत्म हो गया है। दोनों ही सीटें कांग्रेस और गांधी परिवार के लिए आसान मानी जाती रही हैं। हालांकि, 2019 के चुनावी नतीजों ने सभी को चौंका दिया था जिसमें भाजपा की स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराया। सोनिया गांधी राज्यसभा जा चुकी हैं तो रायबरेली पर भी तस्वीर साफ नहीं थी। तमाम अटकलों के बीच कांग्रेस ने भी अमेठी और रायबरेली को लेकर आखिरी समय तक सस्पेंस बनाए रखा था और इसे लेकर भाजपा लगातार तंज भी कस रही थी।
हालांकि, अब तस्वीर साफ हो गई है। कांग्रेस ने इस बार रायबरेली से राहुल गांधी को उतारने का फैसला किया है जबकि अमेठी से गांधी परिवार के वफादार माने जाने वाले किशोरीलाल शर्मा चुनावी मैदान में होंगे। इन सबके बीच प्रियंका गांधी एक बार फिर चुनावी मैदान से बाहर नजर आ रही हैं।
प्रियंका को लेकर यह अटकलें लगातार लगाई जा रही थीं कि वे इस बार चुनाव लड़ेंगी। उनके अमेठी या रायबरेली से चुनावी मैदान में उतरने की संभावना जताई जा रही थी लेकिन कांग्रेस की ताजा लिस्ट ने इन सभी अटकलबाजियों पर विराम लगा दिया। उत्तर प्रदेश के अमेठी और रायबरेली में 20 मई को मतदान होना है। ऐसे में कांग्रेस ने इन चुनाव के लिए नामांकन के आखिरी दिन अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है। अमेठी में इस बार गांधी परिवार का कोई शख्स चुनावी मैदान में नहीं है।
अमेठी और राहुल गांधी…
अमेठी से सोनिया गांधी ने अपना चुनावी डेब्यू साल 1999 में किया था। साल 2004 में सोनिया गांधी ने रायबरेली से चुनाव लड़ा और अमेठी सीट को राहुल गांधी के चुनावी पदार्पण के लिए खाली छोड़ा गया। इसके बाद राहुल गांधी 2004, 2009 और फिर 2014 में अमेठी से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करते रहे। 2019 में यह समीकरण बदल गया। कांग्रेस को इसका आभास 2019 के आम चुनाव के दौरान ही हो गया था और इसलिए राहुल ने केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ा था, जहां से जीतकर वे आखिरकार लोकसभा पहुंचे।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कांग्रेस पार्टी के नेताओं का हवाला देते हुए कहा गया है कि राहुल के रायबरेली शिफ्ट होने के पीछे मुख्य वजह यही है कि 2019 की हार के बाद अमेठी अब गांधी परिवार के लिए सुरक्षित सीट नहीं रह गई है। साथ ही अगर राहुल गांधी इस बार वायनाड के साथ-साथ इस बार रायबरेली से भी जीतते हैं तो उनके लिए केरल की सीट छोड़ना ज्यादा आसान होगा। ऐसा इसलिए कि रायबरेली से कांग्रेस का पुराना जुड़ाव रहा है और इसका एक फैक्टर सोनिया गांधी भी हैं। वायनाड में दूसरे चरण में 26 अप्रैल को ही मतदान हो चुका है।
अमेठी से इस बार गांधी परिवार नहीं पर इस पर हंगामा क्यों?
अब बात अमेठी की कर लेते हैं क्योंकि इसकी चर्चा खूब हो रही है कि इस बार यहां से गांधी परिवार का कोई भी चुनावी मैदान में नहीं है। ऐसा करीब 25 साल बाद हो रहा है। हालांकि, सवाल है कि अमेठी से राहुल गांधी के चुनाव न लड़ने पर इतना हंगामा क्यों है। यह भी तय है कि भाजपा और उसके सहयोगी दल राहुल गांधी के इस सीट से चुनाव नहीं लड़ने को स्मृति ईरानी से हार के डर से ‘भागने’ के तौर पर प्रचारित करेंगे। वैसे, ऐसा भी नहीं है कि हर बार कांग्रेस की ओर से अमेठी में गांधी परिवार का ही कोई शख्स मैदान में उतरा हो लेकिन यह बहुत हद तक साफ है कि जो भी इस सीट पर कांग्रेस से लड़ा है वह जरूर गांधी-नेहरू परिवार का बेहद करीबी रहा है।
1999 में सोनिया गांधी अमेठी से लड़ी थी और उसके बाद से यह विरासत 2019 तक राहुल गांधी संभालते रहे। इससे पहले 1998 में कांग्रेस से जाकर भाजपा के टिकट से चुनाव लड़ने वाले संजय सिंह ने अमेठी से जीत हासिल की थी। संजय सिंह ने राजीव गांधी के बेहद करीबी रहे सतीश शर्मा को हराया था जो इससे पहले 1991 और 1996 का लोकसभा चुनाव अमेठी से जीत चुके थे।
इससे पहले 1981 से 1991 तक खुद राजीव गांधी अमेठी से जीतते रहे हैं। इसमें 1981 का उप चुनाव सहित 1984, 1989 और 1991 का लोकसभा चुनाव शामिल है। 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद अमेठी में फिर से उपचुनाव कराए गए थे जिसमें सतीश शर्मा जीतने में कामयाब रहे थे। वहीं राजीव से पहले 1980 के लोकसभा चुनाव में संजय गांधी ने अमेठी से जीत हासिल की थी।
1977 में जरूर इमरजेंसी के हटने के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ी और जनता पार्टी के रविंद्र प्रताप सिंह जीत हासिल करने में कामयाब रहे। उन्होंने तब संजय गांधी को हराया था। अमेठी सीट 1967 में अस्तित्व में आई थी और इस साल सहित 1971 के चुनाव में कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी यहां से जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे।
2024 का चुनाव…फिर गांधी परिवार के करीबी अमेठी से मैदान में
अमेठी से 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने किशोरी लाल शर्मा को टिकट दिया है। किशोरी लाल शर्मा गांधी परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। मूल रूप से पंजाब के लुधियाना से आने वाले शर्मा राजीव गांधी के साथ अमेठी और रायबरेली में बहुत करीब से काम कर चुके और यह रिश्ता तभी से चला आ रहा है। फिर चाहे 1991 का चुनाव हो, राजीव गांधी की हत्या के बाद अमेठी का उपचुनाव हो या फिर सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति में उतरने का वक्त…इन हर मौकों पर शर्मा अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस उम्मीदवार के लिए कामकाज करते रहे हैं।
सोनिया गांधी जब पहली बार चुनाव लड़ने उतरी तो अमेठी में किशोरी लाल शर्मा ने पूरी जिम्मेदारी उठाई। बाद में जब सोनिया गांधी ने राहुल गांधी के लिए अमेठी सीट को छोड़ा और खुद रायबरेली पहुंची तो शर्मा भी रायबरेली पहुंच गए। साथ ही साथ अमेठी का भी कामकाज वे देखते रहे। हर बदलते दौर के बावजूद शर्मा की विश्वसनीयता गांधी परिवार पर कायम रही और अब वे खुद अमेठी से उम्मीदवार हैं, जहां उनका मुकाबला स्मृति ईरानी से होगा। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि गांधी परिवार अमेठी से भले ही सीधा चुनाव न लड़ रहा हो, पर ईरानी का मुकाबला गांधी परिवार के ही नुमाइंदे से है।