लोकसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच बिहार से दिलचस्प बात सामने आई है। भोजपुरी सुपरस्टार और गायक पवन सिंह ने काराकाट से बतौर निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। दिलचस्प बात ये है कि इस सीट पर एनडीए से उपेंद्र कुशवाहा अपनी पार्टी ‘राष्ट्रीय लोक मोर्चा’ के साथ ताल ठोक रहे हैं। पवन सिंह को पिछले ही महीने पश्चिम बंगाल के आसनसोल सीट से भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया था। पवन सिंह ने इस पर खुशी भी जताई थी। हालांकि, अगले ही दिन उन्होंने ऐलान किया कि वे आसनसोल से चुनाव नहीं लड़ेंगे।
इसके बाद चर्चा थी कि भाजपा की ओर से पवन सिंह को उनके गृह जिले आरा या फिर किसी और जगह से चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है। हालांकि, ऐसा भी नहीं हुआ। इस बीच पवन सिंह ने बुधवार को अपने सोशल मीडिया हैंडल के जरिए बतौर निर्दलीय काराकाट से मैदान में उतरने का ऐलान कर सभी को चौंका दिया। पवन सिंह के फैसले से न केवल काराकाट सीट का चुनाव दिलचस्प हो गया है बल्कि ये चर्चा भी हो रही है कि आखिर उन्होंने ऐसा फैसला क्यों लिया?
भाजपा कर रही है कि पर्दे के पीछे से ‘खेला?’
महागठबंधन का हिस्सा बन चुकी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) की नेता सीमा कुशवाहा ने पवन सिंह के निर्दलीय चुनाव लड़ने के फैसले को उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ भाजपा की साजिश करार दिया है। सीमा कुशवाहा ने सवाल उठाते हुए कहा कि पवन सिंह ने भला अपने गृह जिला आरा या पड़ोस में बक्सर से चुनाव लड़ने का फैसला क्यों नहीं लिया। उन्होंने कहा कि
भाजपा पवन सिंह को मोहरा बनाकर उपेंद्र कुशवाहा का पत्ता साफ करने की कोशिश में जुटी है।
सीमा कुशवाहा ने कहा कि कुशवाहा समाज को भाजपा से सावधान रहना चाहिए। बकौल सीमा कुशवाहा चुनाव में भाजपा ने किसी कुशवाहा को टिकट नहीं दिया, काराकाट से एक कुशवाहा को मौका मिल रहा था तो उनके खिलाफ भी साजिश रचते हुए पवन सिंह को खड़ा कर दिया गया है।
काराकाट सीट का क्या है कास्ट कैलकुलेशन, पवन सिंह को मिलेगा फायदा?
काराकाट लोकसभा क्षेत्र 2008 में अस्तित्व में आया। इससे पहले यह बिक्रमगंज लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा था। यह जगह आरा से करीब 60 किलोमीटर दूर है और रोहतास जिले का हिस्सा है, जिसका मुख्यालय सासाराम है। काराकाट में कुल 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं- नोखा, डेहरी, काराकाट, गोह, ओबरा और नवीनगर।
इस बार लोकसभा चुनाव में काराकाट से एनडीए के उपेंद्र कुशवाहा मैदान में हैं। वहीं, महागठबंधन ने सीपीआई-एमएल से राजाराम कुशवाहा को उम्मीदवार बनाया है। यानी दोनों उम्मीदवार कुशवाहा समाज से हैं। ऐसे में पवन सिंह का मैदान में उतने का मतलब है कि दो कुशवाहा नेताओं के बीच राजपूत जाति से आने वाले एक उम्मीदवार की एंट्री।
यहां का जातीय समीकरण देखा जाए तो करीब 2 से 2.5 लाख राजपूत हैं। साथ ही ब्राह्मण वोटर्स की संख्या करीब एक से डेढ़ लाख है। इसके अलावा करीब 75 हजार भूमिहार वोटर्स भी हैं। वहीं कोइरी-कुर्मी वोटर ढाई लाख हैं। करीब इतनी ही संख्या में यादव वोटर्स भी हैं। इसके अलावा पिछड़ी, अतिपिछड़ी और अनुसूचित जातियों के वोटर भी हैं। ऐसे में पवन सिंह की एंट्री से सवर्ण जातियों के वोट खिसकने की बात कही जा रही है। उनकी लोकप्रियता की वजह से युवा वोटर्स भी उनकी ओर जा सकते हैं।
यही वजह है कि काराकाट में चुनाव अब दिलचस्प हो गया है। एक और बात गौर करने लायक है कि 2009 से यानी इस लोकसभा क्षेत्र के अस्तित्व में आने के बाद से यहां कुशवाहा उम्मीदवार ही चुनाव जीतते आए हैं। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां से जदयू के महाबली कुशवाहा चुनाव जीते थे। इसके बाद 2014 में उपेंद्र कुशवाहा और फिर 2019 में महाबली कुशवाहा चुनाव जीते। काराकाट में इस बार वोटिंग 1 जून (सातवें चरण) को होगी।