लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद से बिहार में भी सियासी सरगर्मी उफान पर है। सभी पार्टियां चुनाव की तैयारी में जुटी हैं और उम्मीदवारों का ऐलान भी जारी है। बिहार में लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) महागठबंधन का हिस्सा है। ऐसे में लोकसभा की 40 सीटों में उसे 23 सीटें मिली हैं। पार्टी ने पहले चरण के चुनाव से पहले ही 22 सीटों के लिए अपने उम्मीदवार का ऐलान भी कर दिया है। हालांकि, एक सीट सिवान पर राजद ने किसी उम्मीदवार का नाम ऐलान नहीं कर सस्पेंस बढ़ा दिया है।
सिवान का जीरादेई अगर भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली है तो इसे जिले से नटवरलाल भी निकला जिसकी चालबाजियों और ठगी के किस्सों ने सभी को चौंकाया। वहीं, आगे चलकर यह जगह शहाबुद्दीन के दबदबे के किस्से भी बयां करती रही।
बहरहाल, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की बात करें तो सिवान सीट जदयू के पास गई है। इस बार जदयू ने यहां से अपना उम्मीदवार बदला है और विजय लक्ष्मी को मैदान में उतारा है। विजय लक्ष्मी पूर्व विधायक रमेश कुशवाहा की पत्नी हैं। इससे पहले 2019 में जदयू से कविता सिंह सिवान से चुनावी मैदान में उतरी थीं और जीत हासिल करने में सफल रही थीं। बहरहाल, राजद ने सिवान से अब तक किसी उम्मीदवार का ऐलान क्यों नहीं किया है, इसे लेकर सियासी अटकलबाजी जोरों पर है। इसमें शहाबुद्दीन फैक्टर की भी बात हो रही है।
सिवान, शहाबुद्दीन और लालू प्रसाद यादव
सिवान संसदीय क्षेत्र के तहत 6 विधानसभा सीटें आती हैं। इसमें शामिल है- सिवान, जीरादेई, दरौली, रघुनाथपुर, दरौंदा और बरहड़िया। भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जन्मस्थली रहा सिवान राजनीतिक सरगर्मियों के लिए हमेशा से चर्चा में रहा है। सीवान लोकसभा संसदीय क्षेत्र के लिए चुनाव 25 मई (छठे चरण) में कराए जाएंगे।
1976 में सारण से अलग होने के बाद पूर्ण जिला बने सिवान में मुस्लिम मतदाता हमेशा से अहम भूमिका निभाते रहे हैं। साथ ही एक समय यह जगह पूर्व सांसद जर्नादन तिवारी के नेतृत्व में जनसंघ का गढ़ भी हुआ करता था। हालांकि साल 1990 के दशक में बाहुली मोहम्मद शहाबुद्दीन के उदय के बाद जिले में सियासी तस्वीर तेजी से बदलती चली गई। लालू प्रसाद यादव के कभी बेहद करीबी माने जाने वाले शहाबुद्दीन 1996 से लगातार चार बार यहां से सांसद बने।
शहाबुद्दीन जिस तेजी से बाहुबल के दम पर उभरे, उसी तेजी से उनका पतन भी शुरू हुआ जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2005 में बिहार में सत्ता बदली। शहाबुद्दीन के जेल जाने के बाद 2009 में ओमप्रकाश यादव का उभार हुआ और वे पहली बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीते। साल 2014 में ओमप्रकाश यादव बीजेपी के टिकट पर दोबारा जीते।
शहाबुद्दीन फैक्टर अब भी सिवान पर हावी?
शहाबुद्दीन का साल 2021 में निधन हो गया। इसके बाद भी क्या शहाबुद्दीन फैक्टर सिवान में काम कर रहा है? ऐसी अटकलें हैं कि लालू यादव राजद के टिकट पर शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को सिवान से चुनावी मैदान में उतारने के पक्ष में हैं और इसलिए उन्हें मनाने की कोशिश की जा रही है। इसी वजह से राजद ने अभी तक सिवान से किसी उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया है। हिना शहाब पहले ही सिवान से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं। दूसरी ओर राजद की ओर से इस सीट पर बिहार विधानसभा के पूर्व स्पीकर अवध बिहारी चौधरी भी ताल ठोक रहे हैं।
दरअसल, शहाबुद्दीन के जेल जाने के बाद उनकी सियासी जमीन को अब तक हिना शहाब ही संभाल रही हैं। हिना शहाब राजद के टिकट पर तीन बार (2009, 2014, 2019) सिवान सीट से चुनाव लड़ चुकी हैं। तीनों ही चुनाव में हिना को हार का सामना करना पड़ा। इस बीच शहाबुद्दीन की मृत्यु के बाद उनके और लालू परिवार के बीच मनमुटाव की भी बातें सामने आईं। ऐसे में राजद के किसी फैसले का इंतजार किए बगैर हिना शहाब ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। राजद के लिए यही बात गले की फांस बन गई है।
लालू और राजद के लिए क्यों अहम से सिवान सीट?
माना जा रहा है कि हिना शहाब अगर रण में निर्दलीय उतरती हैं तो लालू के माय (M+Y) समीकरण को तगड़ा नुकसान हो सकता है, जिसका सीधा फायदा जदयू को मिलेगा। मुस्लिम वोट बटेंगे। लालू का गृह जिला गोपालगंज भी सीवान से सटा हुआ है। साथ ही सटा हुआ सारण सीट भी है जहां से लालू यादव की सिंगापुर से आई बेटी रोहिणी आचार्य पहली बार चुनावी मैदान में है। मुस्लिमों की नाराजगी का असर इन सीटों पर भी पड़ सकता है।