भ्रामक विज्ञापनों के मामले में मुश्किलें झेल रहे बाबा रामदेव को एक और झटका लगा है। उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (एसएलए) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि उसने ‘बार-बार उल्लंघन के लिए’ पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड और दिव्य फार्मेसी के 14 उत्पादों के विनिर्माण लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। औषध एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम- 1945 के तहत यह कार्रवाई की गई है।
एसएलए ने कोर्ट को दिए अपने हलफनामे में कहा कि उसने दिव्य फार्मेसी और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड को 15 अप्रैल, 2024 को आदेश जारी किया था। इस आदेश में कहा गया था कि उनके 14 उत्पादों- स्वसारि गोल्ड, स्वसारि वटी, ब्रोंकोम, स्वसारि प्रवाही, स्वसारि अवलेह, मुक्ता वटी एक्स्ट्रा पावर, लिपिडोम, बीपी ग्रिट, मधुग्रिट, मधुनाशिनी वटी एक्स्ट्रा पावर, लिवमृत एडवांस, लिवोग्रिट, आईग्रिट गोल्ड और पतंजलि दृष्टि आई ड्रॉप के विनिर्माण लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया जाता है।’
सुप्रीम कोर्ट के सख्त रवैये के बाद कार्रवाई
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए 10 अप्रैल को जस्टिस हिमा कोहली और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने एसएलए से कंपनी के कथित भ्रामक दावों के लिए उसके खिलाफ की गई कार्रवाई के बारे में जानकारी देने को कहा था। इसके बाद से प्राधिकरण की ओर से लाइसेंस रद्द सहित अन्य कदम उठाए गए हैं।
अपने ताजा जवाब में एसएलए ने यह भी कहा कि 16 अप्रैल को हरिद्वार के ड्रग इंस्पेक्टर/जिला आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारी ने स्वामी रामदेव, आचार्य बालकृष्ण, दिव्य फार्मेसी और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के खिलाफ सीजेएम हरिद्वार के समक्ष डीएमआर अधिनियम की धारा 3, 4 और 7 के तहत एक आपराधिक शिकायत दर्ज की है।
पतंजलि देश भर अखबारों में छपवा चुकी है माफीनामा
सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों और अवमानना मामले की सुनवाई के बीच पतंजलि आयुर्वेद की ओर से पिछले ही हफ्ते
भ्रामक विज्ञापन देने के लिए अखबारों में सार्वजनिक माफीनामा प्रकाशित कराया गया है। पतंजलि ने इस बारे में जानकारी सुप्रीम कोर्ट को भी दे दी है। पतंजलि की ओर से बताया गया कि कंपनी ने 67 दैनिक समाचार पत्रों में माफीनामा प्रकाशित किया है।
कोर्ट ने तब पतंजलि को सुनवाई की अगली तारीख 30 अप्रैल तक मुद्रित माफीनामा रिकॉर्ड पर रखने के लिए कहते हुए केंद्रीय उपभोक्ता मामलों और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, तथा सभी राज्यों के ड्रग लाइसेंसिंग प्राधिकरण को मामले में पक्षकारों के रूप में जोड़ने का निर्देश दिया था। पहले की सुनवाई में, बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मौखिक रूप से “बिना शर्त माफी” मांगी थी।
गौरतलब है कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के उल्लंघन के लिए पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है – जो मधुमेह, हृदय रोग, उच्च या निम्न रक्तचाप और मोटापा सहित विशिष्ट बीमारियों और विकारों के इलाज के लिए कुछ उत्पादों के विज्ञापन पर रोक लगाता है।
पतंजलि से जुड़ा पूरा विवाद क्या है?
दरअसल, जून 2020 में पतंजलि की ओर से एक प्रोडक्ट ‘कोरोनिल’ को लॉन्च किया गया। ऐसा दावा किया गया कि इससे कोविड का इलाज संभव है और इसने प्रभावित मरीजों पर क्लिनिकल ट्रायल में 100 प्रतिशत सकारात्मक नतीजे दिखाए हैं। इसे कोविड के इलाज के लिए प्रभावी बताते हुए प्रचारित करने पर तभी विवाद शुरू हो गया था। तब कुछ ही दिनों बाद भारत सरकार के हस्तक्षेप से इसे कोविड की दवा बताकर मार्केटिंग करने पर रोक लगा दी गई। हालांकि, भारत सरकार की ओर से कहा गया कि इसे ‘इम्यूनिटी बूस्टर’ बताकर बेचा जा सकता है।
बाद में साल 2021 की शुरुआत में कोविड के घातक डेल्टा लहर आने से ठीक पहले पतंजलि ने इसे फिर बड़े पैमाने पर लॉन्च किया। यहां भी इसे रामदेव और पतंजलि की ओर से ‘कोविड-19 के लिए पहला साक्ष्य-आधारित दवा’ बताया गया। सबसे अहम बात ये भी थी कि इस मेगा लॉन्च में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन जो खुद एक डॉक्टर भी है, शामिल हुए थे। प्रोडक्ट लॉन्च के पोस्टर में यहां तक दावा किया गया कि कोरोनिल के पास फार्मास्युटिकल उत्पाद का प्रमाण पत्र है और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिसस द्वारा मान्यता प्राप्त है।
हालांकि, WHO ने बाद में साफ किया कि उसने COVID-19 के इलाज या रोकथाम के लिए किसी भी पारंपरिक दवा की समीक्षा या उसे प्रमाणित नहीं किया है। इसे पूरे विवाद के बीच आईएमए ने कहा कि वह स्वास्थ्य मंत्री की मौजूदगी में अचानक लॉन्च की गई ‘दवा’ के लिए डब्ल्यूएचओ प्रमाणन संबंधी ‘बड़े झूठ’ की बात देखकर हैरान है। आईएमए की ओर से यह भी कहा गया इसे लेकर देश के स्वास्थ्य मंत्री को भी स्पष्टीकरण देना चाहिए।
इसके महीनों बाद रामदेव का एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें उन्हें यह कहते हुए सुना गया कि एलोपैथी एक ‘मूर्खतापूर्ण और दिवालिया विज्ञान’ है जो ‘लाखों लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार है।’ उन्होंने कहा कि कोई भी आधुनिक दवा कोविड का इलाज नहीं कर रही है। इस पर आईएमए ने रामदेव को कानूनी नोटिस भेजकर माफी मांगने और बयान वापस लेने की मांग की। साथ ही एक बयान जारी कर तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन से रामदेव के खिलाफ महामारी रोग अधिनियम के तहत कार्रवाई की भी अपील की।
बहरहाल, आलोचनाओं के बीच पतंजलि योगपीठ ने जवाब दिया कि रामदेव केवल एक फॉर्वर्ड किए गए व्हाट्सएप मैसेज को पढ़ रहे थे और आधुनिक विज्ञान के प्रति उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट कैसे पहुंचा मामला?
अगस्त 2022 में पतंजलि की ओर से समाचार पत्रों में ‘एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमी: फार्मा और मेडिकल उद्योग द्वारा फैलाई गई गलत धारणाओं से खुद को और देश को बचाएं’ शीर्षक से एक विज्ञापन प्रकाशित करने के बाद आईएमए एक्शन में आया और उसने पतंजलि के खिलाफ एक याचिका दायर की। अखबारों में दिए गए विज्ञापन में दावा किया गया था कि पतंजलि की दवाओं से लोगों को मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, लीवर सिरोसिस, गठिया और अस्थमा जैसी बीमारियों से छुटकारा मिला है।
बहरहाल, आईएमए की याचिका में आधुनिक चिकित्सा पद्धति पर रामदेव की पिछली टिप्पणियों का भी उल्लेख किया गया था और कहा गया कि पतंजलि कंपनी लगातार गलत सूचना का प्रसार व्यवस्थित और बेरोकटोक तरीके से कर रही है। 21 नवंबर, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को उन दावों के खिलाफ चेतावनी दी कि उसके उत्पाद मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों को पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं। साथ ही भारी जुर्माना लगाने की भी चेतावनी दी।
कोर्ट की सख्ती के बाद पतंजलि के वकील ने तब आश्वासन दिया कि अब से, किसी भी कानून- विशेष रूप से उत्पादों के विज्ञापन और ब्रांडिंग से संबंधित नियमों का उल्लंघन नहीं होगा।
कोर्ट की अवमानना का लगा पतंजलि पर आरोप
पतंजलि की ओर से कोर्ट को ये तो आश्वासन दिया गया कि वह अब उत्पादों के विज्ञापन और ब्रांडिंग से संबंधित नियमों का उल्लंघन नहीं करेगा। हालांकि, आरोप लगे इसका पालन कंपनी ने नहीं किया। इसी साल 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ को संबोधित एक पत्र मिला, जिसकी प्रतियां न्यायमूर्ति कोहली और अमानुल्लाह को भी भेजी गई थीं।
पत्र में पतंजलि द्वारा लगातार जारी किए जा रहे भ्रामक विज्ञापनों का जिक्र किया गया था। आईएमए के वकील पीएस पटवालिया ने भी अदालत को 21 नवंबर, 2023 की चेतावनी के बाद के अखबारों के विज्ञापन और अदालत की सुनवाई के ठीक बाद रामदेव और बालकृष्ण की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की बातों को भी सामने रखा।
इस पर अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया उसकी राय यही है कि पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड ने उसके द्वारा दिए गए वचन का उल्लंघन किया है। साथ ही कोर्ट ने कंपनी से जवाब मांगा कि क्यों न अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए। कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी करते हुए तब कहा था कि ‘देश को धोखा दिया जा रहा है।’ साथ ही कोर्ट ने कहा कि सरकार ‘अपनी आँखें बंद करके बैठी है।’
बाबा रामदेव ने हाथ जोड़कर जब मांगी माफी
अगली सुनवाई में 19 मार्च, 2024 को कोर्ट को बताया गया कि पतंजलि ने अवमानना नोटिस का जवाब दाखिल नहीं किया है। इसके बाद कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के लिए कहा। बाद में रामदेव और बालकृष्ण कोर्ट में पेश भी हुए और माफी मांगी।
न्यूज एजेंसी IANS के अनुसार बाबा रामदेव ने कोर्ट में हाथ जोड़कर कहा था कि उन्हें इस तरह के सार्वजनिक बयान नहीं देने चाहिए थे और भविष्य में अधिक सावधान रहेंगे। उन्होंने कहा था, ‘ऐसा हमसे उत्साह में हो गया, आगे हम नहीं करेंगे।’ इसी तर्ज पर, आचार्य बालकृष्ण ने कहा था, ‘यह गलती अज्ञानता में हुई है। आगे से बहुत ध्यान रखेंगे। उस गलती पर हम क्षमा प्रार्थना करते हैं।’
हालांकि कोर्ट ने पतंजलि की ओर से बिना शर्त माफी को खारिज करते हुए खारिज करते हुए कहा कि वह मानता है कि आदेश का इस तरह उल्लंघन जानबूझकर किया गया। बाद में पतंजलि ने देशभर के अखबारों में माफीनामे छपवाए। इस मामले की सुनवाई अभी जारी है।