वाराणसीः अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के मुख्य आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित का शनिवार को निधन हो गया। वह पिछले कुछ दिनों से बीमार थे और गंभीर बीमारी की चपेट में थे। 86 वर्षीय दीक्षित ने शनिवार को सुबह 6:45 बजे अंतिम सांस ली। मौत की खबर फैलने के बाद काशी के लोगों में शोक की लहर दौड़ गई। उनके पारिवारिक सदस्य ने बताया कि आज अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई, जिसके कुछ ही देर बाद उनका निधन हो गया।
आचार्य लक्ष्मीकांत दीक्षित की अंतिम यात्रा उनके निवास स्थान मंगलागौरी से निकलेगी और अंतिम संस्कार मणिकर्णिका घाट पर किया जाएगा। समारोह में गणमान्य व्यक्तियों, अनुयायियों और समुदाय के सदस्यों के शामिल होने की उम्मीद है, जो पुजारी का बहुत सम्मान करते थे। अधिकारियों ने अंतिम संस्कार समारोह के सुचारू संचालन के लिए सभी आवश्यक व्यवस्थाएँ की हैं, जिसमें शोक मनाने वालों और शुभचिंतकों की अपेक्षित भीड़ को प्रबंधित करने के लिए सुरक्षा उपाय भी शामिल हैं।
मूलरूप से महाराष्ट्र के रहने वाले थे लक्ष्मीकांत दीक्षित
पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित ने अपने चाचा गणेश दीक्षित भट्ट से वेद और अनुष्ठानों की दीक्षा ली थी। दीक्षित की वंशावली परंपरा 17वीं सदी के प्रसिद्ध काशी विद्वान गागा भट्ट से जुड़ी हुई है जिन्होंने 1674 में छत्रपति शिवाजी के राज्याभिषेक की अध्यक्षता की थी। गागा भट्ट के पूर्वज महाराष्ट्र के ब्राह्मण थे, जो मूल रूप से महाराष्ट्र के पैठण के पास एक गाँव के थे। हालाँकि, बाद में वे वाराणसी में चले गए।
जहां गागा भट्ट ने छत्रपति शिवाजी महाराज के हिंदवी स्वराज्य या स्वतंत्र मराठा राज्य के स्थापना समारोह का नेतृत्व किया था, वहीं पंडित लक्ष्मीकांत मथुरानाथ दीक्षित अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का नेतृत्व किया।
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण पूजन में भी शामिल थे
जनवरी में अयोध्या के राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पूजन में पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित की मुख्य भूमिका रही थी। इनके नेतृत्व में 121 पुजारियों ने अनुष्ठान को संपन्न किया था। इस दौरान बेटे और परिवार के अन्य सदस्य भी पूजा में मौजूद रहे थे। इसके अलावा, वह काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के लोकार्पण पूजन में भी शामिल थे।
पूजा पद्धति में सिद्धहस्त थे लक्ष्मीकांत दीक्षित
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान लक्ष्मीकांत दीक्षित का प्रमुख पुजारी के रूप में चयन हुआ था। उनके पूर्वजों ने नागपुर और नासिक रियासतों में भी धार्मिक अनुष्ठान कराए थे। लक्ष्मीकांत दीक्षित पूजा पद्धति की सभी विधाओं में सिद्धहस्त माने जाते थे। डेक्कन हेराल्ड के अनुसार उनके बेटे सुनील लक्ष्मीकांत दीक्षित ने एक बातचीत में बताया था कि वैदिक विद्वान की विशेषज्ञता श्रौत, स्मार्त, यज्ञ, संस्कार और अन्य अनुष्ठानों में थी। वे वाराणसी के मीरघाट स्थित सांगवेद महाविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य भी रहे थे।
आईएएनएस इनपुट के साथ