लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वकील अशोक पांडे को अदालत की अवमानना के एक गंभीर मामले में छह महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही उन पर 2,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है। यह सजा 2021 में अदालत के समक्ष जजों को 'गुंडा' कहने और अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने के मामले में सुनाई गई है।

न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि अशोक पांडे का आचरण केवल एक बार की भूल नहीं है, बल्कि यह न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचाने का क्रमिक प्रयास है। अदालत ने 2003 से 2017 तक के मामलों का हवाला देते हुए कहा कि पांडे पहले भी कई बार अवमाननापूर्ण व्यवहार कर चुके हैं।

अदालत ने कहा, "ऐसे लगातार दुर्व्यवहार से यह स्पष्ट है कि अवमाननाकर्ता भटके हुए नहीं, बल्कि जानबूझकर न्यायालय की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचा रहे हैं। न तो उन्होंने कोई जवाब दाखिल किया, न ही माफी मांगी। यह उनकी हठधर्मिता और पश्चाताप की पूर्ण अनुपस्थिति को दर्शाता है।"

क्या है पूरा मामला?

यह मामला 18 अगस्त 2021 का है, जब पांडे न्यायालय में बिना वकीली पोशाक और खुले बटन वाली शर्ट में पेश हुए थे। उस समय की पीठ - न्यायमूर्ति ऋतुराज अवस्थी और न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह-  ने जब उन्हें उचित पोशाक पहनने को कहा, तो उन्होंने उसका विरोध किया और "Decent Dress" का अर्थ पूछकर तर्क करने लगे।

इसके बाद उन्होंने न्यायालय की कार्यवाही में बाधा डाली, जजों को 'गुंडा' कहकर संबोधित किया और कोर्ट में मौजूद अधिवक्ताओं व अन्य लोगों के सामने अभद्र भाषा का प्रयोग किया।

अदालत ने बताया कि इस घटना के बाद उन्हें माफी मांगने और अवमानना के आरोपों पर जवाब देने के कई मौके दिए गए। लेकिन उन्होंने न कोई हलफनामा दाखिल किया, न ही कोई स्पष्टीकरण दिया। 

तीन साल तक वकालत पर रोक की चेतावनी

खंडपीठ ने पांडे को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए यह भी पूछा है कि क्यों न उन्हें तीन वर्षों तक हाईकोर्ट में वकालत करने से रोका जाए। खंडपीठ ने पांडे को लखनऊ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) की अदालत में चार सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है, ताकि वह अपनी सजा पूरी कर सकें। इस संबंध में अगली सुनवाई 1 मई को निर्धारित की गई है। इसके अलावा, अदालत ने उन पर 2,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है। यदि यह राशि जमा नहीं की जाती, तो उन्हें अतिरिक्त एक माह की सजा भुगतनी होगी।

अदालत ने कहा कि अवमाननाकर्ता का व्यवहार दर्शाता है कि वे न्यायिक प्रक्रिया को तुच्छ समझते हैं और संस्थान की गरिमा को निरंतर चुनौती दे रहे हैं। अदालत ने यह भी बताया कि इससे पहले भी उन पर कई बार अवमानना की कार्यवाहियां हो चुकी हैं। वर्ष 2017 में उन्हें दो वर्षों के लिए हाईकोर्ट की दोनों पीठों में प्रवेश करने से रोका गया था।