लेटरल एंट्री को लेकर केंद्र सरकार ने पीछे खींचे कदम (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: लेटरल एंट्री (सीधी भर्ती) को लेकर मचे सियासी बवाल के बीच कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ जितेंद्र सिंह ने संघ लोक सेवा आयोग को पत्र लिखा है। मंत्री ने पत्र में संघ लोक सेवा आयोग से लेटरल एंट्री के आधार पर 45 पदों के लिए निकाली गई भर्तियों को वापस लेने को कहा है।
पीएम नरेंद्र मोदी का निर्देश
जितेंद्र सिंह की ओर से लिखे पत्र में कहा गया है कि लेटरल एंट्री के आधार पर निकाली गई भर्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं किया गया है, जिसे ध्यान में रखते हुए इसे वापस लिया जाए। पत्र में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उच्च पदों पर लेटरल एंट्री के लिए संविधान में निहित सामाजिक न्याय और आरक्षण पर जोर देना चाहते हैं। इसलिए इस विज्ञापन को वापस लिया जाय।
केंद्र ने पत्र में कहा कि हाशिए पर मौजूद योग्य उम्मीदवारों को सरकारी सेवाओं में उनका उचित प्रतिनिधित्व मिले, इसकी जरूरत है।
गौरतलब है कि 17 अगस्त को संघ लोक सेवा आयोग ने लेटरल एंट्री के आधार पर नियुक्तियों के लिए विज्ञापन जारी किए थे जिसका कांग्रेस सहित विपक्ष ने पुरजोर विरोध किया था। विपक्ष का कहना है कि इससे आरक्षण खत्म हो जाएगा और सामाजिक न्याय की बात अधूरी रह जाएगी।
बीते दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर इसका विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार लेटरल एंट्री के जरिए दलितों, आदिवासियों और पिछड़ा वर्ग से उनका आरक्षण छीनने की कोशिश कर रही है, जो कि स्वीकार्य नहीं है।
एनडीए के भीतर से भी उठ रही थी आवाज
विपक्ष के अलावा एनडीए के कुछ सहयोगी दलों ने भी लेटरल एंट्री को लेकर विरोध जताया था। खासकर बिहार के दो प्रमुख एनडीए सहयोगी दलों – जनता दल (युनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) – ने इस कदम का विरोध किया था। वहीं, तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने लेटरल एंट्री पर कोई विरोध नहीं जताया था।
एनडीए के सहयोगियों में एलजेपी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने कहा था, 'किसी भी सरकारी नियुक्ति में आरक्षण का प्रावधान होना चाहिए। निजी क्षेत्रों में ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में कोई भी सरकारी नियुक्ति होती है, चाहे किसी भी स्तर पर हो, उसमें आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान रखना चाहिए। इसमें नहीं रखा गया है, यह हमारे लिए चिंता का विषय है। मैं खुद सरकार का हिस्सा हूं और मैं इसे सरकार के समक्ष रखूंगा।'
दूसरी ओर जदयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा, 'हम एक ऐसा दल हैं जो शुरू से ही सरकारों से कोटे भरने की मांग करते रहे हैं। हम राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं। जब लोगों को सदियों से सामाजिक रूप से वंचित किया गया है, तो आप योग्यता क्यों खोज रहे हैं? सरकार का यह आदेश हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है।'
क्या है लेटरल एंट्री का मामला?
दरअसल, इस सिस्टम के माध्यम से कुछ उच्च पदों पर यूपीएससी अनुबंध आधार पर सीधी भर्ती करता है। इसमें उम्मीदवार बिना परीक्षा दिए पदों पर दावा कर सकते हैं। हाल में 18 अगस्त को यूपीएससी द्वारा केंद्र सरकार के 24 मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उप सचिव जैसे 45 पदों पर ‘लेटरल एंट्री’ के लिए विज्ञापन जारी किए गए थे। आमतौर पर इन पदों पर नियुक्ति संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा के जरिए होती है। यह देश की सर्वाधिक कठिनतम परीक्षाओं में शुमार है।
18 अगस्त को जारी विज्ञापन में कहा गया था कि राज्य/केंद्र शासित प्रदेश सरकारों, पीएसयू, वैधानिक संगठनों, अनुसंधान संस्थानों और विश्वविद्यालयों और यहां तक कि प्राइवेट से उचित योग्यता और अनुभव रखने वाले व्यक्ति इसके लिए अप्लाई कर सकते हैं।
हालांकि इसमें आरक्षण का विकल्प नहीं था। इसे लेकर विपक्ष ने सवाल खड़े किए थे। 'लेटरल एंट्री' की शुरुआत 2018 में की गई थी। सरकार ने हाल में संसद में बयान दिया था कि इसके तहत अभी तक 63 नियुक्तियां हुई हैं। वर्तमान में इसमें 57 अधिकारी विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं। 'लेटरल एंट्री' के जरिए नियुक्त होने वाले लोग तीन साल के अनुबंध पर रखे जाते हैं और इसे अधिकतम 5 साल तक बढ़ाया जाता है।
सरकार ने 2019 में लेटरल एंट्री को लेकर तर्क दिया था इसका उद्देश्य नई प्रतिभाओं को लाने के साथ-साथ और लोगों की उपलब्धता को बढ़ाना है। साथ ही इससे नए विचार आएंगे और काम का तरीका बदलेगा।
(समाचार एजेंसी IANS इनपुट के साथ)
यह भी पढ़ें- ‘लेटरल एंट्री’ पर विवाद क्यों है और क्यों नहीं है इसमें आरक्षण का प्रावधान?